HI/730727 - करणधार को लिखित पत्र, भक्तिवेदान्त मैनर

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त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी

संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ

केंद्र: भक्तिवेदान्त मैनर,
(पूर्व में पिगोट्स मैनर)
लेटचमोर हैथ, हर्ट्स, इंग्लैंड

27 जुलाई, 1973

मेरे प्रिय करणधार,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 22 जुलाई, 1973 का पत्र मिल गया है। तुम्हें बधाई मिलनी चाहिए-तुमने बिग युनिवर्सिटी के मि.रोजर रेविल नामक धूर्त वैज्ञानिक का पराजित कर दिया है। वास्तव में यह कोई कठिन कार्य नहीं है। उनके कोई ठोस विचार तो हैं नहीं। उनके द्वारा रखी गई प्रत्येक बात शंका के दायरे में होती है। वे इसी प्रकार बोलते हैं कि-“मैं सोचता हूँ”, “शायद”, “हो सकता है”, “सैद्धान्तिक तौर पर कहूँ तो”, आदि।

वैदिक ज्ञान सुस्पष्ट है। उदाहरण के तौर पर पद्म पुराण को देखो। उसमें कहा गया है कि 8,400,000 प्रकार की जीव प्रजातियां होतीं हैं, बीस लीख पेड़, दस लाख कीड़े, चार लाख मनुष्य। कहीं पर भी हमे ये या वो नहीं मिलता, बल्कि एक स्पषट संख्या दी गई है। या फिर हम कलियुग का विवरण पढ़ते हैं और वह हम देख पा रहे हैं।–“इस युग में लोग लंबे-लंबे बाल रखेंगे और इस प्रकार से वे स्वयं को बहुत सुन्दर मानेंगे”-। तो यह चल रहा है।–“न नहाने के कारण, इस युग में जनता जनसाधारण पिशाचों जैसा दिखाई देगा”।–हिप्पी। वेदों सभी कुछ स्पष्ट रूप से दिया गया है। हमें ज्ञान के लिए ऐसे व्यक्तियों के पास जाने की भला क्या आवश्यकता है। वे स्वयं को बड़े नेता व दार्शनिक के रूप में प्रदर्शित करते हैं। किन्तु हमें हमारे नेता को मानक लक्षणों या योग्यातों के आधार पर स्वीकार करना होगा। सभ्य संचालन हेतू मानक पाठ्यपुस्तकें भगवद्गीता व श्रीमद्भागवतम् हैं। एक नेता को शांत, जितेन्द्रीय, तपस्वी, शुद्ध, सहिष्णु, सत्यवादी, बुद्धिमान, विद्वान एवं धार्मिक होना चाहिए। तुम्हारे प्रेज़िडेंट निक्सन की तरह धूर्त व चोर नहीं। ऐसे व्यक्ति समाज का कोई भला नहीं कर सकते। चूंकि मनुष्य जीवन केवल भगवद्धाम लौटने के लिए ही है, इसलिए केवल वही लोग नेता बन सकते हैं जिन्हें मनुष्य जीवन के परम लक्ष्य के संदर्भ में प्रशिक्षण मिला हो। मानव सभ्यता की आदर्श प्रगति के लिए, उसका एक आवश्यक अनुपस्थित भाग मुहैया करवाकर, हमारा संघ पूरे विश्व की सेवा कर रहा है। हम उसे उसका शीष दे रहे हैं। पांव इत्यादि सभी अवयव उपस्थित रहने पर भी, पूरी स्थिति केवल एक सिर के होने से ही उपयोगी बनती है। सबकुछ तो पहले से ही मौजूद है, लेकिन विश्रंखल है। सभी प्रकार के मनुष्यों को ठीक-ठीक निर्देश देकर, हम पूरे विश्व को सुव्यवस्थित करना चाह रहे हैं। सही निर्देशों का मतलब है कृष्ण के उपदेशों को उनतक पंहुचा देना। क्योंकि कृष्ण स्वयं परिपूर्ण हैं, इसलिए यदि तुम कहीं पर भी यह ज्ञान प्रस्तुत करोगे तो वह स्वतः ही, तथाकथित वैज्ञानिकों व दार्शनिकों या अन्य किसी के भी मंद मस्तिष्क में ढ़ेर लगे हुए खिचड़ीनुमा विचारों को पराजित कर देगा।

जब मेरे गुरु महाराज उपस्थित थे, तो बड़े-बड़े विद्वान भी, उनके तरुण शिष्यों से वार्ता करने से घबराते थे। मेरे गुरु महाराज को “जीवित विश्वकोश” कहा जाता था। वे किसी के भी साथ, किसी भी विषय पर बात कर सकते थे। वे इतने विद्वान थे। तो जहां तक संभव हो, हमें भी वैसा ही होना चाहिए। किसी के साथ भी कोई समझौता नहीं। रामकृष्ण, अवतार, योगी, सभी गुरु महाराज के शत्रु थे। लेकिन उन्होंने कभी भी समझौता नहीं किया। कुछ गुरुभाईयों ने शिकायत की कि यह प्रचार तो एक कटाई की शैली है और यह कभी भी सफल नहीं होगी। लेकिन हमने देखा है कि जिस किसी ने निंदा की, उनका पतन हो गया। जहां तक हमारी बात है, तो हमने अपने गुरु महाराज की नीति अंगिकार की है-कोई समझौता नहीं। ये सारे तथाकथित विद्वान, वैज्ञानिक, दार्शनिक, जो कृष्ण को स्वीकार नहीं करते, वे धूर्त एवं मनुष्यों में सबसे निम्न कोटि के होने के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं।


सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षरित)

ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी

पश्चलेख: आज शाम मैंने ऑक्सफोर्ड केसर एलिस्टर हार्डी, एम.ए, डी.एस सी के साथ चर्चा की। वे एक अच्छे सज्जन वयक्ति हैं।(हस्तलिखित)

एसीबी/एचडीए

करंधर दास अधिकारी
इस्कॉन
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