HI/730808 - महांश को लिखित पत्र, भक्तिवेदान्त मैनर

Letter to Mahamsa - text missing


त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी

संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ

केंद्र: भक्तिवेदान्त मैनर,
(पूर्व में पिगोट्स मैनर)
लेटचमोर हैथ, हर्ट्स, इंग्लैंड
रेडलेट, हर्ट्स के पास

8 अगस्त, 1973

मेरे प्रिय महांश,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा 2 अगस्त, 1973 का पत्र, उसके साथ संलग्न कागज़ों समेत प्राप्त हुआ है और मैंने उसे ध्यानपूर्वक पढ़ा।

श्रीमान् पन्नालाल पित्ती व श्रीमान् सेशु बिलकुल ठीक कह रहे हैं कि दस्तावेज़ में से अनुच्छेद संख्या पांच अवश्य ही हटाया जाना चाहिए। तमाल कृष्ण गलत है। उसका कहना है कि हम कभी भी न्यायालयों में सिद्ध कर सकते हैं कि हम जो कुछ भी करते हैं वह हमारे संघ के नियम कानूनों के अंतर्गत ही होता है। किन्तु वह अनुच्छेद संख्या पांच, पूरी योजना में एक कांटा बना रहेगा। हैदराबाद के जाति ब्राह्मण मुझसे झगड़ा करने आए थे कि ब्राह्मण जन्म द्वारा निर्धारित होते हैं। हम इस धारणा को स्वीकार नहीं करते हैं। इसलिए, यदि हम अभी इस त्रुटिपूर्ण दान को स्वीकार कर लेते हैं और भविष्य में प्रश्न उठाया जाता है कि हम विग्रह सेवा युरोप व अमरीका वसियों द्वारा करवा रहे हैं जिनका जन्म ब्राह्मण परिवारों में नहीं हुआ है, तो इस पर बड़ा मुकदमा हो सकता है। ऐसे में परिणाम हमारे विरुद्ध आ सकता है और फिर तब हम क्या करेंगे। हमें इस मन्दिर निर्माण कार्य में लाखों रुपए व्यय करने हैं और तब यदि यह खारिज हो गया तो तुमने स्पष्ट लिखा है कि ट्रस्ट का दस्तावेज़ खारिज माना जाएगा और यहां पर ट्रस्ट के सुपुर्द की गई सम्पत्ति वापस ट्रस्ट के प्रणेता को लौटा दी जाएगी। तो तुम्हें लगता है कि हम ऐसा जोखिम उठाएंगे। मान लो कि यह ट्रस्ट के प्रणेता को लौटाई जा रही है, तो अर्थात् उसे हमारे द्वारा लाखों की लागत लगी हुई सम्पत्ति प्राप्त होगी। तमाल कृष्ण को अक्ल नहीं है कि वह न्यायालय में मामले को सुलटाना चाहता है, जैसे उसने हमारे बम्बई के मामले के साथ किया। उसने बेवजह श्रीमती नैयर के साथ हमारा सेल्स अग्रीमेंट खारिज कर दिया और अब हमारा कचहरी में इतना नुक्सान हो रहा है। अर्थात् ,न्यायालय जाने के क्या माने हैं, इस बारे में उसने कोई सीख नहीं ली है। इस कारणवश मैं उसकी इस बात को स्वीकार नहीं कर सकता कि हम न्यायालय में सिद्ध कर देंगे कि जो कुछ हम कर रहे हैं वह सही है। हम दान अनुबंध में ऐसा कोई परिच्छेद नहीं रखना चाहते जिससे भविष्य में दानकर्ता के साथ कोर्ट-कचहरी की कोई संभावना उठती हो। ट्रस्ट को दान बिना किसी शर्त के किया जाना चाहिए। तो श्री पन्नालाल पित्ती सही हैं और मैं उनसे सहमत हूँ। जब मैं भारत में था, तब तमाल कृष्ण ने कहा था कि अनुबंध के ड्राफ्ट को पहले पन्नालाल पित्ती स्वीकार करेंगे और इसके बाद वह बम्बई में हमारे वकील से उसकी स्वीकृति करवाएगा। पर मैं नहीं जानता कि इतनी महत्त्वपूर्ण मामले का निबटारा तुम फ़ोन पर बात करके कैसे कर सकते हो। मुझे आशा है कि तुम या तमाल कृष्ण इस संदर्भ में, पन्नालाल पित्ती सरीखे हमारे मित्रों के साथ मशविरा किए बिना और मेरी अन्त में मेरी स्वीकृति के बगैर, कोई कदम नहीं उठाओगे। इस निर्माण की शुरुआत में पहले एक लाख रुपए देने का जो मैंने वचन दिया था, वह अभी भी मानता हूँ। और अनुबंध पक्का कर दिए जाते ही मैं निर्माण के लिए एक लाख रुपए दे दूंगा।

मैं आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।

(पृष्ठ गायब)