HI/740504 - भवतारिणी को लिखित पत्र, बॉम्बे

Letter to Bhavatarini


त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी

संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ

केन्द्र: हरे कृष्ण लैंड,
गांधी ग्राम रोड,
जुहू, बॉम्बे 54

4 मई, 1974

मेरी प्रिय भवतारिणी,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे दिनांक 23 अप्रैल का तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ है और मैंने उसे पढ़ा है।

मेरे निर्देशों के प्रति तुम्हारी सकारात्मक प्रतिक्रिया बहुत उत्साहवर्धक है। वास्तव में, एक शिष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने गुरु के आदेशों के पालन मात्र से, अपनी सभी परेशानियों से मुक्ति का अनुभव करे। जैसे शुरुआत में अर्जुन पूरी तरह से भ्रमित व शोकातुर थे। किन्तु कृष्ण की शरण ग्रहण करने और उनसे श्रवण करने के उपरांत, वे बोले कि “अब मेरा मोह नष्ट हो गया है और आप जो कुछ भी कहें, मैं वह करने को तैयार हूँ।” यदि गुरु, प्रामाणिक परम्परा में स्थित, परम भगवान का प्रतिनिधि है, और यदि शिष्य निष्कपट व गंभीर है, केवल तब ही वह स्वयं को भौतिक प्रकृति के पाश से मुक्त कर, कृष्णभावनामृत में, समस्त भौतिक इच्छाओं के परे, आध्यात्मिक आनंद मे स्थित कर सकता है।

चूंकि तुम बता रही हो कि तुम्हारे हाथ में $41,880.83 का एक चेक है, तो मैं तुमसे अनुरोध करता हूँ, कि तुम इसे मायापुर वृंदावन ट्रस्ट फंड में जमा करवा दो। पिछली बार जब मैं हवाई में था, उस समय मैंने होनोलूलू के एक बैंक में इस नाम से खाता खुलवाया था। तुम्हें एक जमा रसीद यहां संलग्न प्राप्त होगी। तुम बस सटीक राशी इस पर्ची में लिखकर, इसे मायापुर वृंदावन ट्रस्ट के नाम पर, होनोलूलू के लिबर्टी बैंक की मुख्य शाखा, खाता संख्या 35785, में जमा कर दो। जहां तक तुम्हें अगले पांच वर्ष के लिए प्रति माह मिलने वाले $150 की बात है, तो मैं सोचता हूँ कि उनसे तुम्हारे दोनो बच्चों की गुरुकुल फ़ीस पूरी पड़ जाएगी और गुरुकुल के प्रति तुम्हारा आभारपूर्ति हो जाएगी। जहां तक सुदामा महाराज की बात है, तो बेहतर रहेगा कि वे स्वयं अलग से मुझे लिखें। मैं उनकी योजनाओं के लिए आवश्यक धन यहां से भिजवा दूंगा।

यदि तुम भारत आना चाहो, तो तुम्हारा पूरा स्वागत है। मायापुर एवं वृंदावन की जगहें अवश्य ही मेरे अमेरीकी व युरोपी शिष्यों ही के लिए हैं, जो यहां पर आकर इन तीर्थस्थानों का लाभ उठा सकते हैं। मालूम पड़ता है कि तुम कृष्णभावनामृत के एक नए ही स्तर पर पंहुच गईं, जब तुमने यह लिखा कि ”जहां तक रहने का प्रश्न है, तो अब मेरा एकमात्र लक्ष्य है, कि किसी ऐसे स्थान पर रहूँ जहां रहकर मैं आपकी सबसे अच्छे ढ़ंग से कर पाऊं।” वास्तव में एक शुद्ध भक्त के लिए कोई व्यक्तिगत समस्या ही नहीं होती। चूंकि वह जहां कहीं पर भी हो, वह कृष्ण पुस्तक जैसी पुस्तकें पढ़कर, हरे कृष्ण का जप करके, थोड़ा प्रसाद पाकर रह सकता है और सदैव कृष्ण का स्मरण कर सकता है। प्रह्लाद महाराज ने इसी प्रकार से प्रार्थना की थी किः मुझे स्वयं अपने आप के लिए कोई परेशानी नहीं है। भक्तों की एकमात्र चिंता है कि, मिथ्या इंद्रीय सुख पर आधारित इस कृत्रिम सभ्यता में ये जो इतने सारे धूर्त कष्ट पा रहे हैं, भला इन्हें कैसे बचाया जाए? तो इन धूर्तों को बचाने के लिए ही हमारा कृष्णभावनामृत आंदोलन चलाया गया है। ऐसे सच्चे भाव से जो तुम यह योगदान दे रही हो, वह भी हमें आगे बढ़ने और लोगों को वापस भगवद्धाम लौटा ले जाने में कुछ सहायक होगा। मुझे तुमसे समाचार पाकर प्रसन्नता होगी कि, किस प्रकार से तुमने धन व्यय किया है और किस प्रकार स्वयं अपनी स्थिति को व्यवस्थित कर रही हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षरित)

ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी

एसीबीएस/एसडीजी

भवतारिनदेवी दासी
1568 मिलर सेंट. # 5
होनोलुलु, हवाई 96813

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