HI/750423 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"शोक-मोह-भया, ये चीजें हमारे निरंतर साथी हैं। शोक का अर्थ है विलाप, और मोह का अर्थ है भ्रम। और भय, भय का अर्थ है भयानकता। इसलिए हम हमेशा इन चीजों से शर्मिंदा होते हैं: शोक, मोह और भय। शोक: हम हमेशा विलाप करते हैं, "यह चीज़ मैंने खो दी है।" "मैंने यह व्यवसाय खो दिया है," "मैंने अपना बेटा खो दिया है," "मैंने खो दिया है . . . इतने सारे। क्योंकि यह, आखिरकार, एक हानि का व्यवसाय है। इस भौतिक दुनिया में रहने का मतलब है कि यह एक हानि का व्यवसाय है। कोई लाभ नहीं होगा। इसलिए हम जिस के लिए भी काम कर रहे हैं, खोज रहे हैं, असली खुशी, अगर यह भक्ति सेवा नहीं है, तो भागवत कहता है, श्रम एव ही केवलम (श्री. भा. १.२.८): "बस बिना कुछ लिए काम करना, और लाभ श्रम है।"

इस तरह से लोग कष्ट भोग रहें हैं। हालांकि वे नहीं जानते हैं, लेकिन वे इसे आनंद के रूप में ले रहे हैं। वह भ्रम है। मोहा। वही मोह कहलाता है।

750423 - प्रवचन श्री.भा. ०१.०७.०६ - वृंदावन