HI/750520 बातचीत - श्रील प्रभुपाद मेलबोर्न में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"फिर भी, मुझे कोई रोजगार नहीं चाहिए," हमें अपनी शरीर का अनुरक्षण करने के लिए कुछ सेवा दीजिये। . . . "नहीं, हम ऐसा नहीं करते हैं। हम ऐसा कभी नहीं करते हैं। जब मैं अकेला था, तो मैं ऐसा नहीं कर रहा था। मैं अकेला रह रहा था। मेरे पास कोई आय नहीं थी, कोई दोस्त नहीं था, कोई आश्रय नहीं था। जब से मैंने अपना घर छोड़ा था, तब से 1954, मैंने कभी किसी की परवाह नहीं की मुझे बनाए रखने के लिए। और कोई संसाधन नहीं था, निश्चित आय, ऐसा कुछ भी नहीं था। मैं कृष्ण पर निर्भर था। इसी तरह, पूरे समाज में हम रोजाना दस हजार जीवों की भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं। हमारे पास लगभग एक सौ केंद्र हैं। और हम . . . के अनुरक्षण में हैं जैसे की यूरोपीय, अमेरिकी मानक की तरह, आवारा मानक नहीं। लेकिन फिर भी, हमारी कोई निश्चित आय नहीं है। कृष्ण पर निर्भर रहें। अगर वे चाहते हैं, तो वे हमें भोजन देंगे; अगर वे चाहते हैं, तो हम भूखे रहेंगे। यह ब्राह्मण है, व्यावहारिक। और "अब मेरे पास सभी डिग्री हैं, और जब तक मुझे एक अच्छा गुरु नहीं मिलता है, तो मैं गली का कुत्ता हूं।" (डॉ कोपलैंड हंसते हुए) वह शूद्र है।
750520 - वार्तालाप - मेलबोर्न