HI/750903b - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जैसे ही आप "हिंदू धर्म," "मुस्लिम धर्म," "ईसाई धर्म," बनाते हैं, तुरंत यह धर्म नहीं है। तुरंत। क्योंकि कृष्ण कहते हैं, सर्व-धर्माण परित्याज्य ( भ. गी. १८.६६) वे क्यों कहते हैं, सर्व-धर्मान् परित्यज्य? (स्वगत कथन:) हरे कृष्ण। जय। क्योंकि वह धर्म नहीं है। तथाकथित धर्म जो चल रहे हैं, वे धर्म नहीं हैं। वर्तमान क्षण में यह हम नहीं कहते हैं, क्योंकि आप इतने मजबूत नहीं हैं। लेकिन हमें यह कहना होगा। कोई धर्म नहीं है। सभी धोखा। कृष्ण क्यों कहते हैं, सर्व-धर्माण परित्याज्य (भ. गी. १८.६६)? क्यों?

अक्षयानंद: क्योंकि कोई दूसरा धर्म नहीं है।

प्रभुपाद: हाँ। कोई धर्म नहीं है।

अक्षयानंद: यही वास्तविक धर्म है, कृष्ण को आत्मसमर्पण करना। बाकी सब धोखा है।

प्रभुपाद: हाँ।"

750903 - सुबह की सैर - वृंदावन