HI/751202 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कृष्ण की यह उपासना: पूरा दिन कृष्ण की मंगल आरती में, कृष्ण के जप में, कृष्ण के लिए भोग तैयार में, कृष्ण के प्रसाद वितरण में, कई भक्तिमय सेवा के अंगों में लगा रहता है। तो दुनिया भर में हमारे भक्त-102 केंद्र है-वे बस कृष्ण चेतना में लगे हुए हैं। यह हमारा प्रचार है। हमेशा, कोई अन्य व्यवसाय नहीं। हम कोई व्यवसाय नहीं करते हैं, लेकिन हम हर महीने कम से कम पच्चीस लाख रुपये, पच्चीस लाख रुपये खर्च कर रहे हैं, लेकिन कृष्ण आपूर्ति कर रहें हैं। तेषां नित्याभियुक्तानां योग-क्षेमं वहामि अहम् (भ. गी. ९.२२)। यदि आप कृष्ण भावनामृत में बने रहें, पूरी तरह से कृष्ण पर निर्भर रहें, तो कोई कमी नहीं होगी। मैंने यह कृष्ण का संगठन चालीस रुपये के साथ शुरू किया। अब हमारे पास चालीस करोड़ रुपये हैं। क्या पूरी दुनिया में कोई ऐसा व्यापारी है जो दस साल के भीतर चालीस रुपये से चालीस करोड़ रुपये तक बढ़ा सके? इसका कोई उदाहरण नहीं है।"
751202 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०६.०१ - वृंदावन