HI/770324 - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हमे कृष्ण को तत्त्वतः समझना है, अर्थात बिना किसी विकृति के। इस तत्त्वतः शब्द का प्रयोग भगवद-गीता में कई बार हुआ है। जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो जानाति तत्त्वतः (भ गी ४.९). यह एक उदाहरण है। कृष्ण का आविर्भाव और तिरोभाव कोई सामान्य बात नहीं है। यो जानाति तत्त्वतः: "कोई भी यदि सम्पूर्ण सत्य को समझ ले" तो उसका परिणाम क्या होता है? त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति कौन्तेय (भ गी ४.९): तुरंत उसे मुक्ति प्राप्त हो जाती है। उसी क्षण वह इस योग्य बन जाता है कि उसे किसी भौतिक शरीर में पुनः जन्म नही लेना पढ़ेगा। सबको इस देह का त्याग करना होता है। आप सदा के लिए भारतीय अथवा किसी अन्य समुदाय का सदस्य नहीं रह सकते। शरीर तो आपको बदलना ही होगा, तथा देहान्तरप्राप्ति: (भ गी २.१३)."
770324 - प्रवचन SB 02.03.20 क्रॉस मैदान पंडाल में - बॉम्बे