HI/770428 - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"निष्किञ्चनस्य। भक्ति उनके लिए है जिन्होंने ये निश्चय कर लिया की, "भौतिक दुनिया बेकार है। मुझे बार बार किसी नए शरीर में जन्म लेना पड़ता है और फिर दुःख-क्लेश ही भोगने को मिलता है। " ऎसे व्यक्ति को संसार से बिलकुल घृणा हो जानी चाहिए। यदि कोई इन्द्रिय तृप्ति की इच्छा रखता हो और उसे प्राप्त करने के लिए भगवान का इस्तेमाल करे, "मुझे अच्छी नौकरी दीजिये, अच्छी पत्नी दीजिये, अच्छा खाना, बहुत सारा सुख इत्यादि, " तो वह अभी भक्ति के पथ पर नहीं है। वह अत्यंत कनिष्ठ अवस्था में है।"
770428 - बातचीत A - बॉम्बे