HI/BG 10.29

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 29

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥२९॥

शब्दार्थ

अनन्त:—अनन्त; च—भी; अस्मि—हूँ; नागानाम्—फणों वाले सर्पों में; वरुण:—जल के अधिष्ठाता देवता; यादसाम्—समस्त जलचरों में; अहम्—मैं हूँ; पितृृणाम्—पितरों में; अर्यमा—अर्यमा; च—भी; अस्मि—हूँ; यम:—मृत्यु का नियामक; संयमताम्—समस्त नियमनकर्ताओं में; अहम्—मैं हूँ।

अनुवाद

अनेक फणों वाले नागों में मैं अनन्त हूँ और जलचरों में वरुणदेव हूँ | मैं पितरों में अर्यमा हूँ तथा नियमों के निर्वाहकों में मैं मृत्युराज यम हूँ |

तात्पर्य

अनेक फणों वाले नागों में अनन्त सबसे प्रधान हैं और इसी प्रकार जलचरों में वरुण देव प्रधान हैं | ये दोनों कृष्ण का प्रतिनिधित्व करते हैं | इसी प्रकार पितृलोक के अधिष्ठाता अर्यमा हैं जो कृष्ण के प्रतिनिधि हैं | ऐसे अनेक जीव हैं जो दुष्टों को दण्ड देते हैं, किन्तु इनमें यम प्रमुख हैं | यम पृथ्वीलोक के निकटवर्ती लोक में रहते हैं | मृत्यु के बाद पापी लोगों को वहाँ ले जाया जाता है और यम उन्हें तरह-तरह का दण्ड देने की व्यवस्था करते हैं |