HI/BG 14.4

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 4

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ॥४॥

शब्दार्थ

सर्व-योनिषु—समस्त योनियों में; कौन्तेय—हे कुन्तीपुत्र; मूर्तय:—स्वरूप; सम्भवन्ति—प्रकट होते हैं; या:—जो; तासाम्—उन सबों का; ब्रह्म—परम; महत् योनि:—जन्म स्रोत; अहम्—मैं; बीज-प्रद:—बीजप्रदाता; पिता—पिता।

अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र! तुम यह समझ लो कि समस्त प्रकार की जीव-योनियाँ इस भौतिक प्रकृति में जन्म द्वारा सम्भव हैं और मैं उनका बीज-प्रदाता पिता हूँ |

तात्पर्य

इस श्लोक में स्पष्ट बताया गया है कि भगवान् श्रीकृष्ण समस्त जीवों के आदि पिता हैं | सारे जीव भौतिक प्रकृति तथा आध्यात्मिक प्रकृति के संयोग हैं | ऐसे जीव केवल इस लोक में ही नहीं, अपितु प्रत्येक लोक में, यहाँ तक कि सर्वोच्च लोक में भी, जहाँ ब्रह्मा आसीन हैं, पाये जाते हैं | जीव सर्वत्र हैं – पृथ्वी, जल तथा अग्नि के भीतर भी जीव हैं | ये सारे जीव माता भौतिक प्रकृति तथा बीजप्रदाता कृष्ण के द्वारा प्रकट होते हैं | तात्पर्य यह है कि भौतिक जगत् जीवों को गर्भ में धारण किये है, जो सृष्टिकाल में अपने पूर्वकर्मों के अनुसार विविध रूपों में प्रकट होते हैं |