HI/BG 15.13

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 13

गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ॥१३॥

शब्दार्थ

गाम्—लोक में; आविश्य—प्रवेश करके; च—भी; भूतानि—जीवों को; धारयामि—धारण करता हूँ; अहम्—मैं; ओजसा—अपनी शक्ति से; पुष्णामि—पोषण करता हूँ; च—तथा; औषधी:—वनस्पतियों का; सर्वा:—समस्त; सोम:—चन्द्रमा; भूत्वा—बनकर; रस-आत्मक:—रस प्रदान करनेवाला।

अनुवाद

मैं प्रत्येक लोक में प्रवेश करता हूँ और मेरी शक्ति से सारे लोक अपनी कक्षा में स्थित रहते हैं । मैं चन्द्रमा बनकर समस्त वनस्पतियों को जीवन-रस प्रदान करता हूँ ।

तात्पर्य

ऐसा ज्ञात है कि सारे लोक केवल भगवान् की शक्ति से वायु में तैर रहे हैं । भगवान् प्रत्येक अणु, प्रत्येक लोक तथा प्रत्येक जीव में प्रवेश करते हैं । इसकी विवेचना ब्रह्मसंहिता में की गई है । उसमें कहा गया है – परमेश्र्वर का एक अंश, परमात्मा, लोकों में, ब्रह्माण्ड में, जीव में, तथा अणु तक में प्रवेश करता है । अतएव उनके प्रवेश करने से प्रत्येक वस्तु ठीक से दिखती है । जब आत्मा होता है तो जीवित मनुष्य पानी मैं तैर सकता है । लेकिन जब जीवित स्पूलिंग इस देह से निकल जाता है और शरीर मृत हो जाता है तो शरीर डूब जाता है । निस्सन्देह सड़ने के बाद यह शरीर तिनके तथा अन्य वस्तुओं के समान तैरता है । लेकिन मरने के तुरन्त बाद शरीर पानी में डूब जाता है । इसी प्रकार ये सारे लोक शून्य में तैर रहे हैं और यह सब उनमें भगवान् की परम शक्ति के प्रवेश के कारण है । उनकी शक्ति प्रत्येक लोक को उसी तरह थामे रहती है, जिस प्रकार धूल को मुट्ठी । मुट्ठी में बन्द रहने पर धूल के गिरने का भय नहीं रहता, लेकिन ज्योंही धूल को वायु में फैंक दिया जाता है, वह नीचे गिर पड़ती है । इसी प्रकार ये सारे लोक, जो वायु में तैर रहे हैं, वास्तव में भगवान् के विराट रूप की मुट्ठी में बँधे हैं । उनके बल तथा शक्ति से सारी चर तथा अचर वस्तुएँ अपने-अपने स्थानों पर टिकी हैं । वैदिक मन्त्रों में कहा गया है कि भगवान् के कारण सूर्य चमकता है और सारे लोक लगातार घूमते रहते हैं । यदि ऐसा उनके कारण न हो तो सारे लोक वायु में धूल के समान बिखर कर नष्ट हो जाएँ । इसी प्रकार से भगवान् के ही कारण चन्द्रमा समस्त वनस्पतियों का पोषण करता है । चन्द्रमा के प्रभाव से सब्जियाँ सुस्वादु बनती हैं । वास्तव में मानव समाज भगवान् की कृपा से काम करता है, सुख से रहता है और भोजन का आनन्द लेता है । अन्यथा मनुष्य जीवित न रहता । रसात्मकः शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । प्रत्येक वस्तु चन्द्रमा के प्रभाव से परमेश्र्वर के द्वारा स्वादिष्ट बनती है ।