HI/BG 18.28

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 28

अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोऽलसः ।
विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते ॥२८॥

शब्दार्थ

अयुक्त:—शास्त्रों के आदेशों को न मानने वाला; प्राकृत:—भौतिकवादी; स्तब्ध:—हठी; शठ:—कपटी; नैष्कृतिक:—अन्यों का अपमान करने में पटु; अलस:—आलसी; विषादी—खिन्न; दीर्घ-सूत्री—ऊँघ-ऊँघ कर काम करने वाला, देर लगाने वाला; च—भी; कर्ता—कर्ता; तामस:—तमोगुणी; उच्यते—कहलाता है।

अनुवाद

जो कर्ता सदा शास्त्रों के आदेशों के विरुद्ध कार्य करता रहता है, जो भौतिकवादी, हठी, कपटी तथा अन्यों का अपमान करने में पटु है और तथा जो आलसी, सदैव खिन्न तथा काम करने में दीर्घसूत्री है, वह तमोगुणी कहलाता है |

तात्पर्य

शास्त्रीय आदेशों से हमें पता चलता है कि हमें कौन सा काम करना चाहिए और कौन सा नहीं करना चाहिए | जो लोग शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करके अकरणीय कार्य करते हैं, प्रायः भौतिकवादी होते हैं | वे प्रकृति के गुणों के अनुसार कार्य करते हैं, शास्त्रों के आदेशों के अनुसार नहीं | ऐसे कर्ता भद्र नहीं होते और सामान्यतया सदैव कपटी (धूर्त) तथा अन्यों का अपमान करने वाले होते हैं | वे अत्यन्त आलसी होते हैं, काम होते हुए भी उसे ठीक से नहीं करते और बाद में करने के लिए उसे एक तरफ रख देते हैं, अतएव वे खिन्न रहते हैं | जो काम एक घंटे में हो सकता है, उसे वे वर्षों तक घसीटते हैं-वे दीर्घसूत्री होते हैं | ऐसे कर्ता तमोगुणी होते हैं |