HI/BG 6.29

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 29

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि ।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥२९॥

शब्दार्थ

सर्व-भूत-स्थम्—सभी जीवों में स्थित; आत्मानम्—परमात्मा को; सर्व—सभी; भूतानि—जीवों को; च—भी; आत्मनि—आत्मा में; ईक्षते—देखता है; योग-युक्त-आत्मा—कृष्णचेतना में लगा व्यक्ति; सर्वत्र—सभी जगह; सम-दर्शन:—समभाव से देखने वाला।

अनुवाद

वास्तविक योगी समस्त जीवों में मुझको तथा मुझमें समस्त जीवों को देखता है | निस्सन्देह स्वरूपसिद्ध व्यक्ति मुझ परमेश्र्वर को सर्वत्र देखता है |

तात्पर्य

कृष्णभावनाभावित योगी पूर्ण द्रष्टा होता है क्योंकि वह परब्रह्म कृष्ण को हर प्राणी के हृदय में परमात्मा रूप में स्थित देखता है | ईश्र्वरः सर्वभूतानां हृद्देशोऽर्जुन तिष्ठति | अपने परमात्मा रूप में भगवान् एक कुत्ते तथा एक ब्राह्मण दोनों के हृदय में स्थित होते हैं | पूर्णयोगी जानता है कि भगवान् नित्यरूप में दिव्य हैं और कुत्ते या ब्राह्मण में स्थित होने से भी भौतिक रूप से प्रभावित नहीं होते | यही भगवान् की परम निरपेक्षता है | यद्यपि जीवात्मा भी एक-एक हृदय में विद्यमान है, किन्तु वह एकसाथ समस्त हृदयों में (सर्वव्यापी) नहीं है | आत्मा तथा परमात्मा का यही अन्तर है | जो वास्तविक रूप से योगाभ्यास करने वाला नहीं है, वह इसे स्पष्ट रूप में नहीं देखता | एक कृष्णभावनाभावित व्यक्ति कृष्ण को आस्तिक तथा नास्तिक दोनों में देख सकता है | स्मृति में इसकी पुष्टि इस प्रकार हुई है – आततत्वाच्च मातृत्वाच्च आत्मा हि परमो हरिः| भगवान् सभी प्राणियों का स्त्रोत होने के कारण माता और पालनकर्ता के समान हैं | जिस प्रकार माता अपने समस्त पुत्रों के प्रति समभाव रखती है, उसी प्रकार परम पिता (या माता) भी रखता है | फलस्वरूप परमात्मा प्रत्येक जीव में निवास करता है |

बाह्य रूप से भी प्रत्येक जीव भगवान् की शक्ति (भगवद्शक्ति) में स्थित है | जैसा कि सातवें अध्याय में बताया जाएगा, भगवान् की दो मुख्य शक्तियाँ हैं – परा तथा अपरा | जीव पराशक्ति का अंश होते हुए भी अपराशक्ति से बद्ध है | जीव सदा ही भगवान् की शक्ति में स्थित है | प्रत्येक जीव किसी न किसी प्रकार भगवान् में ही स्थित रहता है | योगी समदर्शी है क्योंकि वह देखता है कि सारे जीव अपने-अपने कर्मफल के अनुसार विभिन्न स्थितियों में रहकर भगवान् के दास होते हैं | अपराशक्ति में जीव भौतिक इन्द्रियों का दास रहता है जबकि पराशक्ति में वह साक्षात् परमेश्र्वर का दास रहता है | इस प्रकार प्रत्येक अवस्था में जीव ईश्र्वर का दास है | कृष्णभावनाभावित व्यक्ति में यह समदृष्टि पूर्ण होती है |