HI/BG 8.26

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 26

शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते ।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः ॥२६॥

शब्दार्थ

शुक्ल—प्रकाश; कृष्णे—तथा अंधकार; गती—जाने के मार्ग; हि—निश्चय ही; एते—ये दोनों; जगत:—भौतिक जगत् का; शाश्वते—वेदों के; मते—मत से; एकया—एक के द्वारा; याति—जाता है; अनावृत्तिम्—न लौटने के लिए; अन्यया—अन्य के द्वारा; आवर्तते—आ जाता है; पुन:—फिर से।

अनुवाद

वैदिक मतानुसार इस संसार से प्रयाण करने के दो मार्ग हैं – एक प्रकाश का तथा दूसरा अंधकार का | जब मनुष्य प्रकाश के मार्ग से जाता है तो वह वापस नहीं आता, किन्तु अंधकार के मार्ग से जाने वाला पुनः लौटकर आता है |

तात्पर्य

आचार्य बलदेव विद्याभूषण ने छान्दोग्य उपनिषद् से (५.१०.३-५) ऐसा ही विवरण उद्धृत किया है | जो अनादि काल से सकाम कर्मों तथा दार्शनिक चिन्तक रहे हैं वे निरन्तर आवगमन करते रहे हैं | वस्तुतः उन्हें परममोक्ष प्राप्त नहीं होता, क्योंकि वे कृष्ण की शरण में नहीं जाते |