HI/Prabhupada 0090 - व्यवस्थित प्रबंधन अन्यथा इस्कॉन कैसे चलेगा



Morning Walk -- December 5, 1973, Los Angeles

प्रभुपाद: हर कोई कृष्ण के परिवार के अंतर्गत आता है, लेकिन हमें वह कृष्ण के लिए क्या कर रहा है, यह देखना चाहिए । जैसे हर कोइ राज्य का नागरिक है । क्यों एक आदमी को उच्च स्थिति और बड़ा शीर्षक दिया जाता है ? क्यों ? वह मान्यता प्राप्त है ।

सुदामा: सही है ।

प्रभुपाद: तो हमें सेवा देना चाहिए । बस महसूस करने से, "मैं कृष्ण के परिवार का हूं" और कृष्ण के लिए कुछ नहीं करना, यह नहीं...

सुदामा: यह अच्छी बात नहीं है ।

प्रभुपाद: यह अच्छी बात नहीं है । इसका मतलब है कि वह... बहुत जल्द ही वह फिर से कृष्ण को भूल जाएगा । वह फिर से भूल जाएगा । सुदामा: असल में, दूसरा तत्व इतना शक्तिशाली है । यह लोग, क्योंकि, हालांकि वे कृष्ण के परिवार का हिस्सा हैं, लेकिन क्योंकि वे भूल गए हैं , तब हम उनके भुलक्कड़पन से प्रभावित हो जाते हैं ।

प्रभुपाद: हाँ । भुलक्कड़पन का अर्थ है माया ।

सुदामा: हाँ ।

प्रभुपाद: माया कुछ भी नहीं है । यह एक विस्मरण है । बस । इसका कोई अस्तित्व नहीं है । विस्मृति, इसका कोई अस्तित्व नहीं । लेकिन जब तक यह है, यह बहुत उपद्रवी है ।

सुदामा: मुझे कभी कभी कुछ भक्तों नें एक सवाल पूछा है, वे खुश नहीं हैं । वे दुखी हैं तो भी, अगर मानसिक रूप से, उन्हें फिर भी कृष्ण भावनामृत को जारी रखना चाहिए । मैं उन्हें बताता हूँ, भले ही कोई दुखी है ...

प्रभुपाद: लेकिन तुम्हें उदाहरण बनना चाहिए । अगर तुम उदाहरण अलग दिखाअोगे, कैसे वे तुम्हारा अनुसरन करेंगे ? उदाहरण उपदेश की तुलना में बेहतर है । तुम बाहर क्यों रह रहे हो ?

सुदामा: ठीक है, मैं ..

प्रभुपाद: (तोड़) ... पिछली बार मैं इतना स्वास्थ्य में खराब हो गया था, मुझे इस जगह को छोड़ना पड़ा । इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं संघ छोड़ दूँगा । मैं भारत गया और संभला । या लंदन आया । बस इतना ही । तो स्वास्थ्य कभी कभी हो सकता है ... लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम संघ को छोड दें । अगर मेरा स्वास्थ्य यहाँ अनुपयुक्त है, तो मैं जाऊँगा ... मेरे एक सौ केंद्र हैं । और तुम अपने स्वास्थ्य को संभालने के लिए इस ब्रह्मांड से बाहर तो नहीं जाअोगे । तुम्हें इस ब्रह्मांड के भीतर रहना ही है । तो फिर तुम्हे क्यों संघ से बाहर जाना है ? श्री नरोत्तम दास ठाकुर । हमें भक्तों के साथ रहना होगा । क्यों मैंने अपने परिवार को छोड़ दिया ? क्योंकि वे भक्त नहीं थे । इसलिए मैं आ गया ... अन्यथा, बुढ़ापे में, मैं अाराम में रहता । नहीं । हमें अभक्तों के साथ नहीं रहना चाहिए, परिवार के लोग या कोई अौर । जैसे महाराज विभीषण कि तरह । क्योंकि उनके भाई भक्त नहीं थे, तो उसे छोड़ दिया, उसे छोड़ दिया । वे रामचंद्र के पास आए । विभीषण । तुम जानते हो ?

सुदामा: हाँ ।

हृदयानंद: तो प्रभुपाद, कहा गया है एक सन्यासी को अकेले रहना चाहिए, इसका अर्थ है कि केवल भक्तों के साथ ।

प्रभुपाद: कौन ...! कहाँ कहा गया है कि सन्यासी को अकेले रहना चाहिए ?

हृदयानंद: मेरे कहने का मतलब है, कभी कभी अापकी किताबों में ।

प्रभुपाद: क्या ?

हृदयानंद: कभी कभी अापकी किताबों में । तो अर्थ है कि भक्तों के साथ ?

प्रभुपाद: सामान्यता, सन्यासी अकेले रह सकता है । लेकिन संन्यासी का धर्म प्रचार करना है ।

सुदामा: यह मैं कभी भी बंद नहीं करना चाहुँगा ।

प्रभुपाद: क्या ?

सुदामा: मैं कभी उपदेश देना रोकना नहीं चाहता ।

प्रभुपाद: उपदेश, तुम उपदेश का निर्माण नहीं कर सकते हो । तुम्हें अपने आध्यात्मिक गुरु के दिए गए सिद्धांतों के अनुसार उपदेश करना चाहिए । तुम उपदेश का अपने तरीके से निर्माण नहीं कर सकते । यह आवश्यक है । कोइ नेता होना चाहिए । नेतृत्व के तहत । यस्य प्रसादाद् भगवत.....यह क्यों कहा जाता है ? हर जगह, कार्यालय में, कोइ तत्काल मालिक है । तो तुम्हे उसे खुश करना होगा । यही सेवा है । मान लो कार्यालय में, एक विभाग में कार्यालय अधीक्षक है । अौर तुम अपने तरीके से करते हो, "हां, मैं अपना काम कर रहा हूँ," और कार्यालय अधीक्षक खुश नहीं है, तो क्या यह सेवा अच्छी है ? इसी तरह, हर जगह हमारा ऊपरी मालिक होता है । तो हमें काम करना चाहिए । यही व्यवस्थित है । अगर हर कोई अपना निर्माण करे, जीवन का अपना तरीका आविष्कार करे, तो अराजकता होगी ही ।

सुदामा: हाँ, यह सच है ।

प्रभुपाद: हाँ । अब हम विश्व संगठन हैं । आध्यात्मिक पहलू भी है, और भौतिक पहलू भी है । यह भौतिक पहलू नहीं है । यह भी आध्यात्मिक पक्ष है, अर्थ है व्यवस्थित प्रबंधन । अन्यथा यह कैसे किया जाएगा ? जैसे गौरसुंदर नें घर बेच दिया, और पैसे का कोई निशान नहीं है । यह क्या है ? उसनें किसी से भी नहीं पूछा था । उसने घर बेच दिया, और पैसा कहाँ है, कोई निशान नहीं है ।