HI/Prabhupada 0119 - आत्मा सदाबहार है



Lecture on BG 2.1-10 and Talk -- Los Angeles, November 25, 1968

प्रभुपाद: हाँ।

श्रीमती: क्या यही उम्र है, जब आत्मा शरीर को छोड़ रही है जैसे , तो क्या तुम बड़े हो जाते हो?

प्रभुपाद: नहीं, आत्मा पुराना नहीं है। शरीर बदल रहा है, यह ही प्रक्रिया है। यह समझाया जाएगा,

देहिनो अस्मिन् यथा देहे
कौमारम् यौवनम् जरा
तथा देहान्तर प्राप्तिर्
धीरस् तत्र न मुह्यति
(भ गी २.१३)

आत्मा सदाबहार है। शरीर बदल रहा है। यही समझ में अाना चाहिए। शरीर बदल रहा है। यह हर कोई समझ सकता है। जैसे तुम्हारे बचपन में तुम्हारा शरीर था ... इस बच्ची के समान, एक अलग शरीर। और जब यही बच्ची युवा लड़की हो जाएगी, तो अलग शरीर हो जाएगा। लेकिन आत्मा इस शरीर और उस शरीर में है। तो यही सबूत है कि आत्मा का परिवर्तन नहीं होता है, शरीर बदलता है। यही सबूत है। मैं अपने बचपन के बारे में सोच रहा हूँ। इसका मतलब है कि मैं वही "मैं" हूँ जो बचपन में विद्यमान था, अौर मैं याद करता हूँ कि अपने बचपन में मैंने वैसा किया, मैने ऐसा किया। लेकिन वह बचपन का शरीर नहीं रहा। वह चला गया है। इसलिए निष्कर्ष यह है कि मेरा शरीर बदल गया है, लेकिन मैं वही हूँ। क्या ऐसा नहीं है? यह सरल सच है।

तो यह शरीर बदल जाएगा, फिर भी मैं रहूँगा। मैं दूसरे शरीर में प्रवेश कर सकता हूँ, कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन मैं रहूँगा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति (भ गी २.१३)। जैसे मैं वर्तमान परिस्थितियों में भी अपना शरीर बदल रहा हूँ, इसी तरह, अंतिम परिवर्तन का मतलब यह नहीं कि मैं मर गया हूँ। मैं दूसरे में प्रवेश ... यह भी समझाया गया है कि, वासांसि जीर्णानि यथा (भ गी २.२२), मैं बदलता हूँ। जैसे जब मैं सन्यासी नहीं था, तो मैं भी अन्य किसी सज्जन की तरह वस्त्र धारण करता था। अब मैं अपने वस्त्र बदल दिए हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं मर गया। नहीं, मैंने अपने शरीर को बदल दिया है, बस। मैं अपने वस्त्र बदल दिए हैं।