HI/Prabhupada 0133 - मैं एक छात्र चाहता हूँ जो मेरे आदेशों का पालन करे



Arrival Lecture -- San Francisco, July 15, 1975

तो कभी-कभी लोग मुझे बहुत ज़्यादा श्रेय देते हैं कि मैंने संसार भर में कुछ आश्चर्यजनक किया है । लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं अत्युत्तम व्यक्ति हूँ । लेकिन मुझे एक बात पता है कि मैं वही बात करता हूँ जो कृष्ण ने कही हैं । बस । मैं कुछ भी जोड़ नहीं रहा, न परिवर्तन कर रहा हूँ । इसलिए मैं भगवद्गीता यथारुप प्रस्तुत कर रहा हूँ । यह श्रेय मैं ले सकता हूँ कि मैं कोई भी बकवास नहीं जोड़ता या परिवर्तन नहीं करता । और मैं व्यवहारिक रूप से देखता हूँ कि यह सफल हो गया है । मैंने इतने सारे यूरोपी और अमरिकी को रिश्वत नहीं दी है । मैं गरीब भारतीय हूँ । मैं अमरिका चालीस रुपए के साथ आया और अब मेरे पास चालीस करोड़ हैं । तो कोई जादू नहीं है । आप पीछे जा सकते हैं । आप सो रहे हैं । इसलिए यह रहस्य है, यदि आप वास्तव में गुरु बनना चाहते हैं... यदि आप धोखा देना चाहते हैं, तो वह एक अन्य विषय है ।

इतने सारे धोखेबाज़ हैं । लोग धोखा खाना चाहते हैं । जैसे ही हम कहते हैं कि, "अगर आप मेरे शिष्य बनना चाहते हैं, तो आपको चार चीजें छोड़नी पडे़ंगी, अवैध संबंध न करना, कोई नशा न करना चाय पीने से और धूम्रपान करने तक, मांस न खाना और कोई जुआ न खेलना," और वे मेरी आलोचना करते हैं, "स्वामीजी बहुत रूढ़िवादी हैं ।" और अगर मैं कहूँ कि, " जो भी तुम्हें पसंद हो, तुम वो सब बकवास कर सकते हो । आप बस यह मंत्र लो और मुझे एक सौ पच्चीस डॉलर दे दो, वे पसंद करेंगे । क्योंकि अमरिका में एक सौ पच्चीस डॉलर कुछ भी नहीं है । कोई भी आदमी तुरंत भुगतान कर सकता है । तो मैं करोड़ों डॉलर एकत्र कर लेता अगर उस तरह धोखा देता । लेकिन मैं यह नहीं चाहता । मैं एक छात्र चाहता हूँ जो मेरे अादेशों का पालन करे । मुझे लाखों रुपय नहीं चाहिए । एकस् चंद्रस् तमो हन्ति न च तार-सहस्र: । यदि आसमान में एक चाँद हो, तो यह रोशनी के लिए पर्याप्त है । लाखों सितारों की कोई आवश्यकता नहीं है । तो मेरी स्थिति यह है कि मैं कम से कम एक शिष्य को शुद्ध भक्त बनते हुए देखना चाहता हूँ । निश्चित ही, मेरे पास कई गंभीर और शुद्ध भक्त हैं । यह मेरा सौभाग्य है । लेकिन अगर मैं केवल एक ही ढूँढ पाता, तो मैं संतुष्ट हो जाता । लाखों तथाकथित सितारों की कोई आवश्यकता नहीं है ।

तो इसलिए यहाँ प्रक्रिया है और यह बहुत आसान है, और अगर हम भगवद्गीता की सभी शिक्षाओं को समझ जाते हैं और फिर हम श्रीमद्-भागवतम का अध्ययन करते हैं... या अगर आप अध्ययन न भी करें, चैतन्य महाप्रभु ने बहुत सरल विधि दी है । यह शास्त्रों में भी संस्तुत किया गया है:

हरेर् नाम हरेर् नाम हरेर् नाम एव केवलम्
कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर् अन्यथा
(चैतन्य चरितामृत अादि १७.१२१)

अगरआप वैदिक साहित्य का अध्ययन करना चाहते हैं, यह बहुत अच्छा है । वह पक्का आधार है । तो हमारे पास पहले से ही पचास किताबें हैं । आप पढ़िए । तत्वज्ञान में बहुत महान विद्वान बनिए, धर्म में, समाजशास्त्र में । सब कुछ है श्रीमद्-भागवतम में, राजनीति भी । और आप पूर्ण ज्ञान के साथ, उत्तम मनुष्य बन जाइए । और अगर आपको लगता है कि आपके पास समय नहीं है, आप इतने अच्छे विद्वान नहीं हैं, आप इन सभी पुस्तकों को नहीं पढ़ सकते हैं, तो आप हरे कृष्ण मंत्र का जप करें । किसी भी तरह से आप उत्तम बन जाएँगे, या तो दोनों या कम से कम एक । अगर आप किताबें नहीं पढ़ सकते, तो हरे कृष्ण मंत्र का जप किजिए । आप उत्तम बन जाएँगे । और अगर आप किताबें पढ़ेंगे और हरे कृष्ण मंत्र का जप करेंगे, यह बहुत ही अच्छा है । लेकिन कोई नुकसान नहीं है । अगर आप हरे कृष्ण मंत्र का जप करते हैं लेकिन अाप किताबें नहीं पढ़ सकते, तो कोई नुकसान नहीं है । कोई नुकसान नहीं है । यह जप पर्याप्त है । लेकिन अगर तुम पढ़ो, तो तुम विरोधी दलों से अपना बचाव करने में सक्षम हो जाअोगे । यह आपके प्रचार कार्य में सहयोग करेगा । क्योंकि प्रचार कार्य में आपको इतने सारे सवालों के जवाब देने होंगे, इतने सारे विरोधी तत्वों से मिलना होगा, तो यदि आप किताबें पढ़कर अपनी स्थिति में दृढ़ हैं, वैदिक साहित्य, तो आप कृष्ण के बहुत, बहुत प्रिय बन जाएँगे । कृष्ण कहते हैं,

ना च तस्मात् मनुश्येशु
कस्चित् मे प्रिय-कृत्तम:
(भ गी १८.६९)
य इमम् परमम् गुह्यम्
मद-भक्तेशू अभिदास्यति
(भ गी १८.६८)

जो भी इस गोपनीय ज्ञान का उपदेश देता है, सर्व-धर्मान् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज (भ गी १८.६६), अगर वह संसार को इस संदेश का प्रचार करने के लिए सक्षम है, फिर तुरंत वह परम भगवान द्वारा बहुत, बहुत अधिक मान्यता प्राप्त कर लेता है ।