HI/Prabhupada 0139 - यह आध्यात्मिक संबंध है



Lecture on SB 3.25.38 -- Bombay, December 7, 1974

अगर तुम कृष्ण से प्यार तो करते हो, तो विनाश नहीं होगा जैसे भौतिक चीज़ें। या तो तुम उन्हें अपने मालिक के रूप में प्रेम करो ... यहां (भौतिक जगत) मालिक, तो जब तक तुम सेवा कर रहे हो, मालिक प्रसन्न है। और नौकर खुश है जब तक तुम वेतन दे रहे हो। लेकिन आध्यात्मिक दुनिया में ऐसी कोई बात नहीं है। अगर मैं निश्चित शर्त के तहत सेवा नहीं कर सकता हूँ, तो मालिक प्रसन्न है। और नौकर भी - मालिक वेतन नहीं दे सकता है - वह भी खुश है। यही एकता कहा जाता है, निरपेक्ष। मतलब ... यह उदाहरण यहाँ है। इस संस्था में इतने सारे छात्र हैं। हम कुछ भी वेतन नहीं दे रहे हैं, लेकिन वे मेरे लिए सब कुछ करते हैं। यह आध्यात्मिक संबंध है। जब पंडित जवाहरलाल नेहरू, वह लंदन में थे उनके पिता, मोतीलाल नेहरू, नें उन्हें दिया, एक नौकर रखने के लिए तीन सौ रुपए फिर एक बार वह लंदन चले गए, तो उन्होने देखा कि नौकर नहीं है।

पंडित कहते हैं "तुम्हारा नौकर कहां है?" उन्होंने कहा, "सेवक का क्या उपयोग है? मुझे नहीं, कुछ नहीं है करने को। मैं व्यक्तिगत रूप से यह करता हूँ। "नहीं, नहीं। मैं चाहता था कि एक अंग्रेज तुम्हारा नौकर बने।" तो उसे वेतन देना पड़ता है। यह एक उदाहरण है। मेरे पास सैकड़ों हजारों नौकर हैं जिन्हें मैं वेतन भी नहीं देता। यह आध्यात्मिक संबंध है। यह आध्यात्मिक संबंध है। वे वेतन के लिए सेवा नहीं कर रहे हैं। मेरे पास है क्या? मैं गरीब भारतीय हूं। मैं क्या दे सकता हूँ? लेकिन नौकर है आध्यात्मिक प्रेम, प्यार के कारण। और मैं भी किसी भी वेतन के बिना उन्हें पढ़ा रहा हूँ। यह आध्यात्मिक है। पूर्णस्य पूर्णम अादाय (इशो मंगलाचरण) । सब कुछ भरा है। अगर तुम कृष्ण को अपने बेटे के रूप में स्वीकार करते हैं, अपने दोस्त के रूप में, अपने प्रेमी के रूप में, तुम्हे कभी धोखा नहीं मिलेगा। तो कृष्ण को स्वीकार करने के लिए प्रयास करो। इस झूठे भ्रम को त्याग दो, नौकर या बेटा या पिता या प्रेमी। तुम को धोखा मिलेगा।