HI/Prabhupada 0164 - वर्णाश्रम धर्म की भी स्थापना करनी चाहिए जिससे पद्धति सरल हो जाये



Room Conversation Varnasrama System Must Be Introduced -- February 14, 1977, Mayapura

हरी सौरी : किन्तु चैतन्य महाप्रभुने केवल जप करने का ही आदेश दिया हैं।

प्रभुपाद : किन्तु साधारण मनुष्यों के लिए यह संभव नहीं।

हरी सौरी: क्या, लोगों को जप की प्रेरणा देना? उन्होंने केवल जाप को ही प्रस्तुत किया था। प्र

भुपाद: किन्तु कौन जप करेगा? कौन ?

सत्व्स्वरूप: किन्तु यदि वह जाप नहीं करेंगे तो वह वर्णाश्रम धर्म में प्रशिक्षित नहीं होंगे। यही सबसे सरल विधि हैं।

प्रभुपाद :जप तो रहेगा किन्तु यह आशा नहीं की जा सकती की लोग चैतन्य महाप्रभु जैसा जप करे। वह सोलह माला भी जाप नहीं कर सकते। और यह मूर्ख चैतन्य महाप्रभु बनने चले हैं।

सतस्वरूप: किन्तु यदि वह जप करे और प्रसाद ग्रहण करे...

प्रभुपाद: जप चलता रहेगा। वो बंध नहीं होगा । किन्तु साथ ही साथ वर्णाश्रम धर्म की भी स्थापना करनी चाहिए जिससे पद्धति सरल हो जाये।

हरी सौरी: मैंने यह ही समझा था की जप को इसलिए प्रस्तुत किया गया था क्योंकि कलि युग में वर्णाश्रम धर्म संभव नहीं हैं।

प्रभुपाद : क्योंकि वह मन को शुद्ध करता हैं । जप चलता रहेगा।

हरी सौरी: अतः जप को इसलिए प्रस्तुत किया गया था क्योंकि वह वर्णाश्रम धर्म को प्रतिस्थापित कर सके।

प्रभुपाद: हाँ वह प्रतिस्थापित कर सकता हैं किन्तु कौन करेगा? लोग इतने उन्नत नहीं हैं। आप हरिदास ठाकुर के जप का अनुकरण नहीं कर सकते।

सतस्वरूप: हम उन्हें उनके कार्यों के साथ साथ जप करने का उपदेश दे सकते हैं।

प्रभुपाद: हाँ,भक्तिविनोद ठाकुर ने कहा हैं, थाकह आपनार काजे, आपनार काज की. चैतन्य महाप्रभु ने उपदेश दिया हैं, स्थाने स्थित: और यदि वे स्थानमें नहीं रहते, तब तो सहजिया जप हो जायेगा। सहजिया के पास भी जप माला होती हैं लेकिन साथ में तिन डझन औरते भी होती हैं। यही सब चल रहा हैं। जैसा हमारा मधुद्विष । वह संन्यास के योग्य नहीं था लेकिन तब भी उसे दिया गया। और उसने बताया की वह पांच औरतों का संग करता था। अतः वर्णाश्रम धर्म की आवश्यकता हैं। केवल दिखावे से काम नहीं चलेगा। अतः वर्णाश्रम धर्म का प्रसार पूरे विश्व में होना चाहिए।

सतस्वरूप: इस्कॉन समाज से इसकी शुरुआत होगी?

प्रभुपाद: हाँ ब्राह्मण, क्षत्रिय ...नियमित शिक्षा दी जाएगी।

हरी सौरी: किन्तु हमारे समाज में तो केवल वैष्णव बनने की शिक्षा दी जाती हैं।

प्रभुपाद: हाँ | हरी सौरी, फिर समाज में वर्गीकरण कैसे होगा?

प्रभुपाद: वैष्णव बनना सरल नहीं। वर्णाश्रम धर्म वैष्णव बनने में सहायता करेगा। वैष्णव बनना सरल नहीं।

हरी सौरी: हाँ, वैष्णव बनना सरल नहीं।

प्रभुपाद: अतः यह होना चाहिए। वैष्णव बनना सरल नहीं। यदि वैष्णव बनना इतना सरल होता तो इतने पतन क्यों होते? यह सरल नहीं। संन्यास, सबसे उच्च कोटि के ब्राह्मण के लिए हैं। और केवल बाह्य वेशभूषा से अनुकरण करना तो पतन हैं,

हरी सौरि: अतः वर्णाश्रम धर्म केवल कनिष्ठ अधिकारियों के लिए हैं।

प्रभुपाद: कनिष्ठ?

हरी सौरी: जो नया भक्त हैं।

प्रभुपाद: हाँ. हाँ. कनिष्ठ अधिकारियों के लिए।

हरी सौरी : वर्णाश्रम धर्म लाभदायक हैं।

प्रभुपाद: कनिष्ठ अधिकारी को ब्राह्मण होना चाहिए। कनिष्ठ अधिकारी को योग्य ब्राह्मण होना चाहिए। वह कनिष्ठ हैं। जो भौतिक जगत में बहुत उच्च माना जाता हैं, ब्राह्मण, वह कनिष्ठ अधिकारी हैं ।