HI/Prabhupada 0168 - नम्र और विनम्र बनने की संस्कृति



Room Conversation -- February 4, 1977, Calcutta

प्रभुपाद: हम भीख माँग सकते हैं । भारत में अभी भी उच्च विद्वान संन्यासी, वे भीख माँगते हैं । इसकी अनुमति है । भिक्षु । उनको यह पसंद है । त्रिदंडी-भिक्षु । तो वैदिक संस्कृति में भीख मांगना न तो अवैध है और न ही शर्मनाक - उचित व्यक्ति द्वारा । भीख माँगना - ब्रह्मचारी को, संन्यासियों को अनुमति है । और वे खुले तौर पर पसंद करते हैं। त्रिदंडी-भिक्षु, भिक्षु का मतलब है भिखारी ।

सतस्वरूप: त्रिदंडी-भिक्षु ।

प्रभुपाद: हाँ । इधर, भारतीय संस्कृति में, ब्रह्मचारी, सन्यासी और ब्राह्मण, उन्हे भीख माँगने की अनुमति दी जाती है । यही वैदिक संस्कृति है । और गृहस्थ उन्हें अपने बच्चों के रूप में मानते हैं । यह संबंध है ।

सतस्वरूप: लेकिन जहां यह उस संस्कृति में किया जाता है जहॉ यह पूरी तरह से अलग है, तो क्या होगा?

प्रभुपाद: इसलिए हिप्पी होते हैं । यह तुम्हारी संस्कृति है, हिप्पी, और कातिल, धर्म के नाम पर । यह उनकी संस्कृति है । और गर्भपात । क्योंकि ऐसी कोई संस्कृति नहीं है , इसलिए परिणाम गर्भपात है और हत्या और बम विस्फोट, पूरे वातावरण घृणित बन रहा है । यह तुम्हारी संस्कृति है । प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक ईसाइयों के बीच लड़ाई और बमबारी ... लोग घबरा रहे हैं । वे गली में बाहर नहीं जा सकते । यह तुम्हारी संस्कृति है । और भीख माँगना बुरा है । लोगों को, पूरी आबादी को डर की हालत में खना बहुत अच्छा है, अगर कोई विनम्र भाव से भीख माँगता है, वह बुरी बात है । यह तुम्हारी संस्कृति है। वैदिक रास्ता ब्रह्मचारी को भीख माँगने के लिए अनुमति देता है सिर्फ विनम्रता सीखाने के लिए, भिखारी बनने के लिए नहीं । बहुत बड़े, बड़े परिवार से सभी आ रहे हैं, वे अभ्यास करते हैं । यह भीख माँगना नहीं है । यह विनम्र और नम्र बनने के लिए सीख है । और मसीह कहते हैं, "विनम्र और नम्र बनने वालों के लिए, भगवान उपलब्ध हैं ।" यह भीख माँगना नहीं है । तुम्हे यह संस्कृति क्या है पता नहीं है । तुम्हारे पास अपनी संस्कृति है, शैतान की संस्कृति, अपने बच्चे को मारने की । तुम क्या समझोगे यह संस्कृति क्या है? मैं सही हूँ या गलत?

सतस्वरूप: अाप सही हो ।

प्रभुपाद: हाँ । पत्र में वर्णन करो । तुम्हे चौथी श्रेणी, दसवीं श्रेणी की संस्कृति मिली है । कैसे तुम नम्र और विनम्र बनने की संस्कृति को समझोगे?

सतस्वरूप: जो जिला अटार्नी हमपर मुकदमा चलाने के लिए कोशिश कर रहा था, आदि-केशव, वह यहां अपनी रणनीति बता रहा है, क्योंकि कई वकीलों का कहना है कि हमें अपने धार्मिक अभ्यास करने का हक है । इस धर्म की स्वतंत्रता है । वह कहते हैं ...

प्रभुपाद: नि: शुल्क ... यह प्रामाणिक धर्म है ।

सतस्वरूप: उन्होंने कहा, "लेकिन यह धर्म का सवाल नहीं है ।" उन्होंने कहा, "हम क्या ..." उन्होंने कहा " मन पर नियंत्रण का धर्म से कोई लेना देना नहीं है । यह व्यक्तिगत स्वतंत्र इच्छा का सवाल है । मुझे नहीं लगता कि एक व्यक्ति जिसका मन सही अवस्था में है वह किसी और को अपने मन पर नियंत्रण करने की अनुमति देगा । बस सम्मोहन के मामले में यह सोचना ।"

प्रभुपाद:. मन पर नियंत्रण सब कुछ है ।

सतस्वरूप: कुछ भी ।

प्रभुपाद: तुम भी कोशिश कर रहे हो । अब वे भी मन पर नियंत्रण की कोशिश कर रहे हैं, बल द्वारा हमारे पुरुषों का अपहरण । यह एक और प्रकार का मन पर नियंत्रण है । उन्होने पहले से ही अपना मन हमें दे दिया है, और तुम मन को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हो बल पूर्वक, अपहरण करके । क्या यह मन पर नियंत्रण नहीं है? यहाँ उसका मन कृष्ण भावनामृत में पहले से ही है, और बल द्वारा तुम उसे विचलित करने की कोशिश कर रहे हो । क्या यह मन पर नियंत्रण नहीं है? "और तुम्हारा मन पर नियंत्रण अच्छा है । मेरे मन पर नियंत्रण बुरा है । " ये तुम्हारा सिद्धांत है । तो कोई भी, कोई भी बदमाश, कहेगा, "मेरी गतिविधिया अच्छी हैं, और तुम्हारी गतिविधिया खराब हैं ।"