HI/Prabhupada 0183 - श्रीमान उल्लू, कृपया अपनी आँखें खोलो और सूरज को देखो



Lecture on SB 6.1.37 -- San Francisco, July 19, 1975

भगवान प्रचार कर रहे हैं, "मैं यहाँ हूँ । मैं आ गया हूँ ।" परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम (भ.गी. ४.८) | "मैं तुम्हारे सामने प्रकट हुअा हूँ सिर्फ तुम्हे राहत देने के लिए। " परित्राणाय साधुनाम । "तुम मुझे समझने की कोशिश कर रहे हो, इसलिए मैं यहाँ हूँ । मैं यहॉ हूँ । क्यों तुम भगवान निराकार है सोच रहे हो? यहाँ हूँ मैं, कृष्ण, रूप । तुम देखो, मेरे हाथ में मेरी बांसुरी है । मैं गायों का बहुत शौकीन हूँ । मैं गायों और ऋषि और ब्रह्मा से प्यार करता हूँ, हर किसी को समान रूप से, क्योंकि वे सभी मेरी संतान हैं विभिन्न शरीरों में ।" कृष्ण खेल रहे हैं । कृष्ण बोल रहे हैं । फिर भी, यह दुष्ट कृष्ण को नहीं समझेंगे । तो कृष्ण की गलती क्या है? यह हमारी गलती है । अंधा । बस उल्लू की तरह । उल्लू आंखें कभी नहीं खोलेगा सूरज की रोशनी को देखने के लिए । तुम यह पता है, उल्लू ? तो वे नहीं खोलते । कितना भी तुम कहो, "श्री उल्लू, कृपया अपनी आँखें खोलो और सूरज को देखो " "नहीं, सूरज नहीं है । मैं नहीं देखता ।" (हंसी) यह उल्लू सभ्यता । तो तुम्हे इन उल्लूअों के साथ लड़ना होगा । तुम्हें बहुत मजबूत होना चाहिए, विशेष रूप से संन्यासी । हमें उल्लूअों के साथ लड़ना होगा । हमें बल के द्वारा उनकी आंखों को खोलना होगा, मशीन के साथ । (हंसी) तो यह चल रहा है । तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन सब उल्लूअों के खिलाफ एक लड़ाई है ।

तो यहाँ एक चुनौती है: यूयम वै धर्म-राजस्य यदि निर्देश-कारिण: (श्रीमद भागवतम ६.१.३८)। निर्देश-कारिण: । नौकर का मतलब है कि गुरु के हुक्म की तामील करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है उसके पास । इसलिए निर्देश-कारिण: । वे बहस नहीं कर सकते । नहीं । जो भी आदेश दिया जाता है , वह सेवा की जाती है । तो अगर कोई भी दावा करता है बनना ... वह उम्मीद कर रहा है ... मुझे लगता है ... यहाँ विष्णुदूत का भी उल्लेख है, वासुदेवोक्त- कारिण: । वे भी नौकर हैं । उक्त का मतलब जो भी आदेश वासुदेव द्वारा दिया जाता है, वे उसका पालन करते हैं । इसी तरह, यमदूत, वे यमराज के सेवक हैं । वे भी संबोधित हैं: निर्देश-कारिण: अगर तुम वास्तव में यमराज के सेवक हो, तो तुम उनकी अादेश के अनुसार कार्य करोगे, फिर तुम्हे पता होना चाहिए, क्या धर्म है और क्या अधर्म है । "

तो वे यमराज के वास्तव में प्रामाणिक नौकर हैं, इसके बारे में कोई संदेह नहीं है । अब वे इस तरह से उनकी पहचान दे रहे हैं, यमदूत उचु: वेद-प्रणिहितो धर्म: , तुरंत जवाब दिया । "धर्म क्या है?" यह सवाल था । तुरंत जवाब दे दिया । वे जानते हैं कि धर्म क्या है । वेद-प्रणिहितो धर्म: (श्रीमद भागवतम ६.१.४०)"धर्म का मतलब है जो वेदों में स्पष्ट किया गया है ।" तुम धर्म नहीं बना सकते । वेद, मूल ज्ञान, वेद का मतलब है ज्ञान । वेद-शास्त्र । तो निर्माण के समय से, वेद ब्रह्मा को दिया गया था । वेद ... इसलिए इसे अपौरुषेय कहा जाता है, यह निर्मित नहीं है । यही श्रीमद-भागवतम में समझाया गया है, तेने ब्रह्मा ह्रद आदि-कवये (श्रीमद भागवतम १.१.१) | ब्रह्म, ब्रह्म का अर्थ है वेद । वेदों का दूसरा नाम ब्रह्म, आध्यात्मिक ज्ञान, या पूर्ण ज्ञान, ब्रह्म । तो तेने ब्रह्मा आदि-कवये ह्रद । तो वेद का अध्ययन आध्यात्मिक गुरु से किया जाना चाहिए ।

तो कहा जाता है कि यह ब्रह्मा पहले व्यक्ति हैं जिसने वेद को समझा । तो वह कैसे समझे? शिक्षक कहां है? कोई अन्य प्राणी नहीं है । कैसे वह वेद समझे? शिक्षक कृष्ण थे, और वे हर किसी के ह्रदय में स्थित हैं । ईश्वर: सर्व-भूतानाम ह्रद-देशे अर्जुन तिष्ठति (भ.गी. १८.६१) । तो वे ह्रदय से सिखा रहे हैं | तो कृष्ण सिखाते हैं - वह बहुत दयालु हैं - चैत्य-गुरु के रूप में, ह्रदय से, और वे बाहर से उनके प्रतिनिधि को भेजते हैं । चैत्य-गुरु और गुरु, दोनों तरीकों से, कृष्ण कोशिश कर रहे हैं । कृष्ण बहुत दयालु हैं । तो इसलिए वेद, वे मानव निर्मित किताबें नहीं हैं । वेद, अपौरुषेय, अपौरुषेय का मतलब है नहीं बनाया गया..... हमें वेदों को साधारण मानसिक अटकलें की पुस्तक के रूप में नहीं लेना चाहिए । नहीं । यह पूर्ण ज्ञान है । यह पूर्ण ज्ञान है । और हमें इसे यथार्थ रूप में लेना चाहिए, बिना किसी भी मिलावट के, अर्थघटन के । तो यह भगवान द्वारा बोला गया है । इसलिए भगवद गीता भी वेद है । यह कृष्ण द्वारा बोला गया है । तो तुम कुछ भी जोड नहीं सकते, या परिवर्तन नहीं कर सकते हो । तुम्हे इसे यथार्थ रूप में लेना चाहिए । तो फिर तुम्हे सही ज्ञान मिलता है ।