HI/Prabhupada 0184 - लगाव को भौतिक ध्वनि से आध्यात्मिक ध्वनि मे स्थानांतरित करें



Lecture on SB 3.26.47 -- Bombay, January 22, 1975

तो ध्वनि बहुत ही महत्वपूर्ण बात है । ध्वनि इस भौतिक संसार में हमारे बंधन का कारण है । जैसे बड़े बड़े शहरों में वे अासक्त हैं सिनेमा कलाकार की ध्वनि से । और यह ही नहीं केवल, तो कई अन्य बातें हम रेडियो संदेश के माध्यम से सुन रहे हैं । ध्वनि के लिए लगाव । अौर क्योंकि यह यह भौतिक आवाज़ है, हम हक़ीक़त में उलझ रहे हैं, उलझना अधिक से अधिक । कोई अभिनेत्री, कोई सिनेमा कलाकार, गायन, और लोगों को इतना शौक है वह गायन सुनने का, कि उस कलाकार को पन्द्रह हज़ार रुपय दिए जाते हैं एक गाने के लिए । यहाँ कई हैं मुंबई में । इसलिए देखो कितना आकर्षण है हमें इस भौतिक ध्वनि के लिए । इसी प्रकार, वही लगाव, अगर हम हरे कृष्ण महा मंत्र के बारे में सुनें, तो हम मुक्त हो जाते हैं, वही ध्वनि । एक भौतिक है, एक आध्यात्मिक है । तो तुम अभ्यास करो इस आध्यात्मिक ध्वनि कंपन से जुड़े रहने की । तो फिर तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा ।

चेतो-दर्पण-मार्जनम भव_महा-दावाग्नि-निर्वापनम
श्रेय:-कैरव-चंद्रिका-वितरनम विद्या-वधु-जीवनम
अानन्दामबुधि-वर्धनम प्रति-पदम पूरनाम्रतस्वादनम
सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्ण-संकीर्तनम्
(चैतन्य चरितामृत अन्त्य २०.१२) ।

तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन इस उद्देश्य के लिए है, कि "तुम्हे ध्वनि के लिए लगाव पहले से ही है । अब सिर्फ इस लगाव को हस्तांतरण करो आध्यात्मिक ध्वनि के लिए । तो फिर तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा ।" यह हरे कृष्ण आंदोलन है, लोगों को सिखााता है कि कैसे लगाव स्थानांतरित करें भौतिक ध्वनि से आध्यात्मिक ध्वनि को । नरोत्तम दास ठाकुर इसलिए गाते हैं, , गोलोकेर प्रेम-धन, हरि-नामा-संकीर्तन, रति न जन्मिलो मोरे ताय । यह ध्वनि आध्यात्मिक दुनिया से अा रही है, गोलोकेर प्रेम-धन, जप करके, इस आवाज को सुनने से, भगवान के लिए हमारे मूल निष्क्रिय प्यार का विकास होगा । यही ज़रूरी है । प्रेम-पुमार्थो महान ।

भौतिक संसार में हम स्वीकार कर रहे हैं, धर्मार्थ-काम-मोक्ष (श्रीमद भागवतम ४.८.४१) बहुत ही महत्वपूर्ण रूप में । पुरुषार्थ । धर्म, धार्मिक होना, और धार्मिक बनने से, हमारा आर्थिक विकास होता है । धनम देहि, रुपम देहि, यशो देहि, देहि देहि । काम । क्य़ों देहि देहि ? अब, काम, अपनी इच्छाऍ पूरी करने के लिए, कामुक इच्छाऍ । धर्मार्थ-काम, और जब हम निराश हो जाते हैं या इच्छाओं को पूरा करने में असमर्थ हैं, तो हम मोक्ष चाहते हैं, भगवान के साथ एक होना । यह चार प्रकार के भौतिक व्यापार है । लेकिन आध्यात्मिक व्यापार है प्रेम-पुमार्थो महान । भगवद प्रेम प्राप्त करना , यह उच्चतम पूर्णता है । प्रेम-पुमार्थो महान ।

तो जीवन के इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, प्रेम-पुमार्थो महान । इस युग में विशेष रूप से, कली युग, क्योंकि हम कोई भी अन्य बात नहीं कर सकते हैं, यह बहुत, बहुत मुश्किल है । समय बाधाओं से भरा है । इसलिए कलौ... यही विधि है, हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम (चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१) | " हरे कृष्ण मंत्र जपो," केवलम, "केवल ।" कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा । कली-युग में, क्योंकि मुख्य कार्य है कि इस भौतिक बंधन से कैसे राहत पाऍ...... भुत्वा भुत्वा प्रलियते (भ.गी. ८.१९) | लोग यह भी समझ नहीं पाते हैं, कि हमारी परेशानी वास्तव में है क्या ।

कृष्ण कहते हैं, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान खुद कहते हैं, "ये तुम्हारा दुख है ।" क्या? जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि (भ.गी. १३.९) | "जन्म और मृत्यु का पुनरावर्तन । यह तुम्हारे जीवन का असली दुख है ।" तुम क्या सोच रहे हो इस दुख या उस दुख के बारे में? वे सभी अस्थायी हैं । वे सभी भौतिक प्रकृति के नियमों के तहत हैं । तुम इससे बाहर निकल नहीं सकते हो । प्रकृते क्रियमाणानी गुणै: कर्माणी सर्वश: (भ.गी. ३.२७) | प्रकृति तुम्हे मजबूर करेगी क्योंकि तुम प्रकृति के भौतक गुणों से दूषित हो । इसलिए तुम्हे इस प्रकृति के निर्देशन के अाधीन काम करना होगा, भौतिक प्रकृति | और जब तक तुम इस भौतिक प्रकृति के तहत हो, तुम्हे इस जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी को स्वीकार करना होगा । यह तुम्हारा वास्तविक दुख है ।