HI/Prabhupada 0199 - ये बदमाश तथाकथित टिप्पणीकार, वे कृष्ण से बचना चाहते हैं



Lecture on BG 13.8-12 -- Bombay, September 30, 1973

तत्वज्ञान के बिना कोई भी समझ, वह भावना है । और धार्मिक धारणा के बिना तत्वज्ञान मानसिक अटकलें है । यह दो बातें दुनिया भर में चल रही हैं, संयुक्त तरीके से नहीं । कई तथाकथित धार्मिक प्रणालियों हैं, लेकिन कोई तत्वज्ञान नहीं है । इसलिए यह तथाकथित धार्मिक प्रणाली आधुनिक शिक्षित व्यक्तियों को अाकर्षित नहीं करती हैं । वे धर्म का त्याग कर रहे हैं, मुस्लिम, हिंदू, ईसाई । केवल औपचारिकताए, रस्में, वे पसंद नहीं करते । वे सब कुछ जानना चाहते हैं तत्वज्ञान के आधार पर । यही भगवद गीता है । भगवद गीता तत्वज्ञान पर आधारित है, यह प्रणाली, कृष्ण भक्ति । भगवद गीता का मतलब है कृष्ण भक्ति, कृष्ण के प्रति भक्ति, कृष्ण भावना । यह है भगवद गीता ।

भगवद गीता, का शिक्षण है मनमना भव मद भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु (भ.गी. १८.६५) | यह है भगवद गीता । "हमेशा मेरे बारे में सोचो ।" कृष्ण भावनाभावित, शुद्ध और सरल । मनमना भव मद भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु (भ.गी. १८.६५) हर जगह कृष्ण नें अपने व्यक्तित्व पर जोर दिया है । अहम अादिर हि देवानाम (भ.गी. १०.२) । "मैं सभी देवताअों की उत्पत्ति हूँ ।" मत्त: परतरम् नान्यत किन्चिद अस्ति धनन्जय भ.गी. ७.७) ।

अहम् सर्वस्य प्रभवो
मत्त: सर्वम् प्रवर्तते
इति मत्वा भजन्ते माम
बुधा भाव-समन्विता:
(भ.गी. १०.८)

सब कुछ है । तो सर्व धर्मान परित्यज्य माम एकम (भ.गी. १८.६६), माम, अहम, "मुझे" । तो हर श्लोक में, हर अध्याय में, कृष्ण । मयी अासक्त-मन: पार्थ योगम् युन्जन मद-अाश्रय: (भ.गी. ७.१) । मयी अासक्त, " जो मुझसे अासक्त है," आसक्त-मन: "मन मुझमें संलग्न है, वह ही योग है ।" योगीनाम अपि सर्वेशाम् मद-गतेनान्तरात्मना । मद-गत, फिर से मत ((भ.गी. ६.४७) । मद-गतेनान्तरात्मना, श्रद्धावान भजते यो माम स मे युक्ततमो मत: । तो हर जगह ज़ोर दिया जाता है, कृष्ण । लेकिन बदमाश टिप्पणीकार, वे कृष्ण को निकालना चाहते हैं । इस धूर्तता नें भारत में कहर मचाया है । ये बदमाश तथाकथित टिप्पणीकार, वे कृष्ण को टालना चाहते हैं । इसलिए यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन इन दुष्टों के लिए एक चुनौती है । यह एक चुनौती है कि "तुम कृष्ण के बिना कृष्ण बनाना चाहते हो । यह बकवास है ।"