HI/Prabhupada 0255 - भगवान की सरकार में इतने सारे निर्देशक होने चाहिए, वे देवता कहे जाते हैं



Lecture on BG 2.8 -- London, August 8, 1973

तो अब कृष्ण कह सकते हैं: "यह सब ठीक है । तुम हो, अस्थायी रूप से .... तुम लड़ते रहो । अौर जब तुम्हे अपना राज्य मिल जाएगा, तुम खुश हो जाअोगे । मुझे गुरु बनाने की कोई जरूरत नहीं है । न तो यह है ... " जैसे साधारण लोग, उन्हें लगता है, " हम इतना पैसा कमा रहे हैं । गुरु बनाने का क्या फायदा है? मैं अपने तरीके से सब कुछ समझ सकता हूँ ।" और एक और बदमाश है: "हाँ, यत मत तत पथ । जो भी उनकी राय है, सब ठीक है । तुम अपनी राय बना सकते हो ।" यह चल रहा है । तुम अपनी राय भगवान को समझने के लिए बना सकते हो । तो ये सब मूर्ख दुष्ट, वे अपनी राय बना रहे हैं । नहीं, यह संभव नहीं है । इसलिए अर्जुन कहते हैं: अवाप्य भूमाव् असप्तनम ऋद्धम (भ.गी. २.८) |

यह एक बहुत महत्वपूर्ण शब्द है । सपत्नि । सपत्नि का मतलब है, प्रतिद्वंद्वी पत्नी, सह पत्नी ।" अगर एक आदमी की दो, तीन पत्नियॉ हैं ... क्यों दो, तीन? हमारे प्रभु की १६,१०० थीं । तो यह भगवान हैं । सपत्न्य, लेकिन वहाँ कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है । तुम्हे सभी रानियों के बयानों में मिलेगा कृष्ण किताब में, जब वे द्रौपदी के साथ बात कर रही थीं, हर पत्नी विवरण दे रही थी कि वह कितनी कृष्ण की दासी बनने के लिए उत्सुक थी । कोई भी प्रतिद्वंद्वी नहीं है ।

इस भौतिक दुनिया में, अगर एक आदमी को एक से अधिक पत्नी है, तो प्रतिद्वंद्विता है । स्पर्द्धा । श्रीमद-भागवतम में यह उदाहरण दिया जाता है, कि जैसे हमारी इन्द्रियॉ हैं, इसी प्रकार, अगर किसी की अलग पत्नी है , तो एक पत्नी उसे छीन रही है: "तुम मेरे कमरे में आअो," एक और पत्नी छीन रही है: "तुम मेरे कमरे में आअो । " तो वह उलझन में है । इसी प्रकार हमारी यह पत्निया हैं, इंद्रियॉ । आंखें घसीट रही हैं: " कृपया सिनेमा के लिए आअो ।" जीभ खींच रही है: "कृपया होटल में आअो ।" हाथ कहीं और चला रहा है । पैर कहीं चला रहा है । हमारी स्थिति ऐसी ही है । वही आदमी, जिसकी विभिन्न पत्नियॉ है और उसे अलग कमरे में घसीट रही हैं । यह हमारी स्थिति है ।

तो क्यों यह स्थिति है? क्योंकि ये पत्नियॉ प्रतिद्वंद्वि हैं । यहाँ: सपत्न्यम ऋद्धम । अगर कई राजा एक संपत्ति पर दावा करें, तो कठिनाई होती है । और अर्जुन कहते हैं: अवाप्य भूमाव असप्त्न्यम ऋद्धम (भ.गी. २.८) | "धन प्राप्त करना जिसका कोई अन्य दावेदार नहीं । मैं अकेला मालिक हूँ, भले ही मुझे इस तरह का धन मिलता है, राज्यम, ऐसे राज्य, सुराणाम अपि चाधिपत्यम, इस दुनिया का राज्य ही नहीं, लेकिन उच्च ग्रह प्रणाली का राज्य भी ... " ये लोग चंद्र ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन एक और राज्य भी है, एक और राज्य । तो वह राज्य उच्च जीवों के अंतर्गत आता है, जो देवताओं के रूप में जाने जाते हैं । वे बहुत शक्तिशाली हैं । जैसे इंद्र । इंद्र बहुत शक्तिशाली नियंत्रक हैं वर्षा के । उनके पास वज्रपात है । लेकिन लोग इस पर विश्वास नहीं करते हैं, लेकिन हम विश्वास करते हैं । जो भी वैदिक साहित्य में वर्णित है ... विश्वास नहीं । तुम्हे विश्वास करना होगा । यह तथ्य है ।

कहाँ से यह वज्र आ रहा है? कौन वर्षा की व्यवस्था कर रहा है? कोई निर्देशक होना चाहिए । जैसे सरकारी कार्यालयों या राज्य में, कई विभागीय प्रबंधन हैं, इसी प्रकार भगवान की सरकार में इतने सारे निर्देशक होने चाहिए, कई अधिकारी । वे देवता कहे जाते हैं । देवर्षि-भूताप्त-नृणाम पितृणाम (श्रीमद भागवतम ११.५.४१) | देवता:, देवता, वे भी श्री कृष्ण के आदेश से हमें आपूर्ति कर रहे हैं । जैसे इंद्र । इंद्र हमें आपूर्ति कर रहे हैं । इसलिए इंद्र यज्ञ, विभिन्न देवताओं को संतुष्ट करने के लिए यज्ञ हैं । कृष्ण नें इस इंद्र यज्ञ को बंद कर दिया, तुम जानते हो, गोवर्धन । जब नंद महाराज इंद्र यज्ञ के लिए व्यवस्था कर रहे थे, कृष्ण ने कहा: "मेरे प्रिय पिता, इंद्र यज्ञ की कोई जरूरत नहीं है ।"

इसका मतलब है कि जो भी श्री कृष्ण के प्रति सजग है, उसके लिए, किसी भी यज्ञ की कोई जरूरत नहीं है । खास तौर पर इस युग में, कलियुग, यज्ञ के विभिन्न प्रकार करना बहुत मुश्किल है । वो त्रेता युग में संभव था । कृते यद ध्यायतो विष्णुम त्रेतायाम यजतो मखै: (श्रीमद भागवतम १२.३.५२) | मखै: का मतलब है यज्ञ, यज्ञ करना । यज्ञार्थे कर्मणो अन्यत्र लोको अयम् कर्म-बंधन: (भ.गी. ३.९) | तो ये सूत्र, ये निर्देश, कोई भी पालन नहीं कर रहा है । यह इस युग में संभव नहीं है । इसलिए शास्त्र आज्ञा है: यज्ञै: संकीर्तनैर प्रायैर यजन्ति हि सुमेधस: | जिनको अच्छा दिमाग मिला है, तो बजाय इतनी सारी चीज़ो के साथ परेशान होने के, एक संकीर्तन-यज्ञ करता है । ये शास्त्र में बयान हैं ।