HI/Prabhupada 0268 - कृष्ण का शुद्ध भक्त बने बिना कोई भी कृष्ण को नहीं समझ सकता है



Lecture on BG 2.10 -- London, August 16, 1973

तो यह बहुत मुश्किल है । कोई भी कृष्ण का एक शुद्ध भक्त बने बिना उनको समझ नहीं सकता । क्योंकि कृष्ण कहते हैं, भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश चास्मि तत्वत: (भ.गी. १८.५५) | तत्वत:, सच में । तत्वत: का मतलब है सच्चाई । अगर हम कृष्ण को यथार्थ समझना चाहते हैं, तो हमें भक्ति सेवा की इस प्रक्रिया को अपनाना होगा, भक्त, भक्ति । ऋषिकेण- ऋषिकेश सेवनम भक्तिर उच्यते (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१७०)| जब हम एक ऋषिकेश के नौकर के रूप में नियुक्त किए जाते हैं, इंद्रियों के मालिक । मालिक अौर ऋषिकेण, जब तुम्हारी इन्द्रियॉ इंद्रियों के मालिक की सेवा में लगी हुई हैं, तो तुम भी इंद्रियों के मालिक बन जाते हो | तुम भी । क्योंकि तुम्हारी इन्द्रियॉ ऋषिकेश की सेवा में लगी हुई हैं, इन्द्रियों को कोई अन्य अवसर नहीं है लिप्त होने का । बंद । स वै मन: कृष्ण-पदारविन्दयो: (श्रीमद भागवतम ९.४.१८) |

तो यह भक्तिमय सेवा की प्रक्रिया है । अगर तुम इन्द्रियों के मालिक बनना चाहते हो, गोस्वामी, स्वामी । तो तुम्हे हमेशा अपनी इन्द्रियों को ऋषिकेश की सेवा में लगाए रखना चाहिए । यही एकमात्र रास्ता है । अन्यथा यह संभव नहीं है । जैसे हि तुम सुस्त हो जाते हो इंद्रियों को इन्द्रियों के मालिक की सेवा में संलग्न करने के लिए, तुरंत माया है, "कृपया, आ जाओ ।" यह प्रक्रिया है । कृष्ण भुलिया जीव भोग वान्छा करे, पाशते माया तारे जापटिया धरे । जैसे ही तुम श्री कृष्ण को भूल जाते हो, एक पल के लिए भी, तुरंत माया है: "मेरे प्रिय मित्र, यहाँ अाअो ।" इसलिए हमें बहुत सतर्क रहना चाहिए । हम एक क्षण के लिए भी कृष्ण को नहीं भूल सकते हैं । इसलिए जप का कार्यक्रम, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम ... हमेशा कृष्ण को याद रखो । फिर माया तुम्हे छूने में सक्षम नहीं होगी । माम एव ये प्रपद्यन्ते मायाम एतान तरन्ति (भ.गी. ७.१४) । माया छू नहीं सकती । जैसे हरिदास ठाकुर की तरह । वे ऋषिकेश की सेवा में लगे हुए थे । माया पूर्ण शक्ति से अाई । फिर भी, वह हार गई; हरिदास ठाकुर पराजित नहीं हुए ।