HI/Prabhupada 0286 - आपके और श्रीकृष्ण के बीच के शुद्ध प्रेम का विकृत प्रतिबिंब



Lecture -- Seattle, September 30, 1968

तो कोई कठिनाई नहीं है । तथ्य यह है कि हमें कृष्ण को प्रेम करना सीखना होगा । तो दिशा है और विधि भी है, और हम जहाँ तक संभव हो अापकी सेवा करने की कोशिश कर रहे हैं । हम सड़कों में अौर शहरों में हमारे लड़कों को भेज रहे हैं आपको आमंत्रित करने के लिए । अौर अगर आप कृपया इस अवसर को लेते हैं, तो आपका जीवन सफल हो जाएगा । प्रेम पुम-अर्थो महान । क्योंकि मनुष्य जीवन भगवान के लिए प्रेम को विकसित करने के लिए है । क्योंकि अन्य सभी जीवन में, हमने प्रेम किया है, हमने प्रेम किया है । हमने हमारे बच्चों से प्यार किया है, हमने अपनी पत्नी से प्यार किया है, पक्षी के जीवन में हमारे घोंसले से प्यार किया है, जानवर के जीवन में । प्यार तो है ।

एक पक्षी या जानवर को शिक्षण की कोई जरूरत नहीं है कि कैसे बच्चों को प्यार करना चाहिए । कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यह स्वाभाविक है । अपने पति से प्यार करना, अपने देश से प्यार करना, अपने घर से प्यार करना, अपने बच्चों को प्यार करना, अपनी पत्नी को प्यार करना और इस तरह, आप, यह सब प्यार, अधिक या कम ये जानवरों के साम्राज्य में भी है । लेकिन इस तरह का प्यार आपको खुशी नहीं देगा । आप निराश हो जाएँगे क्योंकि यह शरीर अस्थायी है । इसलिए ये सभी प्यार के मामले भी अस्थायी हैं और वे शुद्ध नहीं हैं । वे केवल विकृत रूप है शुद्ध प्रेम का जो आपके और कृष्ण के बीच विद्यमान है ।

तो अगर आप वास्तव में शांति चाहते हैं, अगर आप वास्तव में संतुष्टि चाहते हैं, अगर आप भ्रमित नहीं होना चाहते हैं, तो कृष्ण को प्रेम करने का प्रयास करें । यही सादा कार्यक्रम है । तो अापका जीवन सफल हो जाएगा । कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को गुमराह करने और धोखा देने के लिए निर्मित नहीं है । यह एक सबसे अधिकृत आंदोलन है । वैदिक साहित्य, भगवद गीता, श्रीमद-भागवतम, वेदांत सूत्र, पुराणों, और बहुत से, कई महान साधु व्यक्तियों नें इसको अपनाया है । और ज्वलंत उदाहरण भगवान चैतन्य हैं । आप उनकी तस्वीर देखते हैं, वह नृत्य के भाव में हैं । तो आपको इस कला को सीखने होगा, तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा । आपको कृत्रिम कुछ अभ्यास करने की अावश्यक्ता नहीं है और अटकलें करने की अौर अपने मस्तिष्क को परेशान करने की ... आपमें दूसरों को प्यार करने की वृत्ति है । यही स्वाभाविक है, सहज ।

बस हम प्यार को गलत जगह रख रहे हैं और इसलिए हम निराश हैं । निराश । उलझन में । तो अगर आप भ्रमित नहीं होना चाहते हैं तो अगर आप निराश नहीं होना चाहते हैं, तो कृष्ण को प्रेम करने की कोशिश करें । और अाप पाअोगे कि अाप प्रगति कर रहे हैं शांति में, खुशी में । आप जो चाहते हो उस हर चीज में ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।