HI/Prabhupada 0287 - अपनी स्मृति को पुनर्जीवित करो, कृष्ण के लिए तुम्हारा प्यार



Lecture -- Seattle, September 30, 1968

प्रभुपाद: कोई प्रश्न?

मधुद्वीश: प्रभुपाद? क्या हमारा श्रीमद-भागवतम को पढ़ना ठीक है अापके भगवद गीता को प्राप्त करने के बाद, जब वह प्रकाशित होकर अाता है? या हमें अभी पूरी तरह से सारा समय समर्पित करना होगा भगवद गीता का अध्ययन करने के लिए, और फिर हम ..., और फिर वहाँ से प्रगति करें, या हम श्रीमद-भागवतम के हमारे अध्ययन को जारी रखें?

प्रभुपाद: नहीं, तुम्हे यह भगवद गीता यथार्थ को पढ़ना चाहिए । यह केवल एक प्रारंभिक विभाजन है । आध्यात्मिक मंच में, सब कुछ निरपेक्ष है । यदि तुम भगवद गीता पढते हो, तुम्हे वही प्रस्ताव मिलेगा जो श्रीमद-भागवतम में है । एसा नहीं है कि क्योंकि तुम श्रीमद-भागवत का अध्ययन कर रहे हो तुम्हे भगवद गीता का अध्ययन करने की ज़रूरत नहीं है | ऐसा नहीं है । तुम इन साहित्य को पढ़ो और हरे कृष्ण मंत्र का जप करो, नियम और कानून का पालन करो और खुशी से रहो । हमारा कार्यक्रम बहुत खुशी भरा कार्यक्रम है । हम जप करते हैं, हम नृत्य करते हैं, हम कृष्ण प्रसाद खाते हैं, हम कृष्ण की अच्छी तस्वीरें बनाते हैं और उन्हें अच्छी तरह से सजा सवरा देखते हैं, और हम तत्वज्ञान पढ़ते हैं । फिर तुम और अधिक क्या चाहते हैं? (हंसते हुए)

जाह्नवा: कैसे और क्यों हमने शुरुआत में कृष्ण के लिए हमारे सच्चे प्यार की हमारी जागरूकता को खो दिया?

प्रभुपाद: हम्म?

तमाल कृष्ण: कैसे और क्यों ... कैसे और क्यों हमनें शुरुआत में कृष्ण के लिए हमारे प्यार को खो दिया?

झानवा: नहीं, प्यार नहीं । बस प्यार की जागरूकता, कृष्ण के लिए हमारे सच्चे प्यार की ।

प्रभुपाद: हमारी जागरूकता है, तुम किसी को प्यार करते हो । लेकिन कृष्ण को प्यार करना तुम्हारा काम है, तुम यह भूल गए हो । तो विस्मृति हमारी प्रकृति है । कभी कभी हम भूल जाते हैं । और विशेष रूप से क्योंकि हम बहुत छोटे हैं, सूक्ष्म, इसलिए मैं भी याद नहीं कर सकता हूँ ठीक से कि मैं इस समय पर कल रात को क्या कर रहा था । तो विस्मृति हमारे लिए अस्वाभाविक नहीं है । और फिर, अगर कोई हमारी स्मृति को जागृत करता है, उसे स्वीकारना, यह भी अस्वाभाविक नहीं है ।

इसलिए हमारे प्रेम का विषय कृष्ण हैं । किसी तरह से, हम उन्हे भूल गए हैं । हम भूले हुए इतिहास का पता नहीं लगाते हैं । यह बेकार श्रम है । लेकिन हम भूल गए हैं, यह एक तथ्य है । अब इसे पुनर्जीवित करो । यहां याद दिलाते हैं । तो अवसर लो । कोशिश मत करो, इतिहास, जो तुम भूल गए हो, और मेरे भुलक्कड़पन की तारीख क्या थी । अगर तुम जान भी जाते हो, तो भी क्या फायदा है? तुम भूल गए हो । यह स्वीकार करो ।

जैसे तुम एक चिकित्सक के पास जाते हो, वह तुमसे नहीं पूछेगा कि तुम्हे यह बीमारी हुई, इस रोग का इतिहास क्या है, क्या तारीख में, क्या समय पर तुम संक्रमित हुए । नहीं । वह बस अापकी नाड़ी सुनता है और देखता है कि तुम्हे एक बीमारी है और तुम्हे दवा देता है : "हाँ | तुम इसे लो ।" इसी तरह, हम पीड़ित हैं । यह एक तथ्य है । कोई भी इनकार नहीं कर सकता । क्यों तुम पीड़ित हो? कृष्ण को भूल कर । बस ।

अब तुम्हे अपनी कृष्ण के बारे में स्मृति को पुनर्जीवित करना होगा, तुम खुश हो जाते हो । बस । बहुत साधारण बात है । अब तुम भूल हुए इतिहास का पता करने की कोशिश नहीं करो । तुम भूल गए हो, यह एक तथ्य है, क्योंकि तुम पीड़ित हो । अब यहाँ एक अवसर है, कृष्ण भावनामृत आंदोलन । अपनी स्मृति को पुनर्जीवित करो, कृष्ण के लिए तुम्हारा प्यार । साधारण बात है । हरे कृष्ण मंत्र का जप करो, नृत्य करो, और कृष्ण प्रसाद लेते रहो । और अगर तुम शिक्षित नहीं हो, तुम अनपढ़ हो, तो सुनो ।

जैसे तुम्हे प्राकृतिक उपहार, कान मिला है । तुम्हे प्राकृतिक जीभ मिली है । तो तुम हरे कृष्ण मंत्र का जाप कर सकते हो और तुम भगवद गीता या श्रीमद-भागवत ज्ञान को सुन सकते हो उन व्यक्तियों से जो ज्ञानी हैं । तो कोई बाधा नहीं है । कोई बाधा नहीं । कोई भी पूर्व योग्यता की आवश्यकता नहीं है । बस तुम्हारे पास जो भी संपत्ति है उसका उपयोग करना है । बस । तुम्हे सहमत होना होगा । यह ज़रूरी है । "हाँ, मैं कृष्ण भावनामृत को अपनाऊँगा ।" यह तुम पर निर्भर करता है क्योंकि तुम स्वतंत्र हो । यदि तुम असहमत हो, "नहीं । क्यों मैं कृष्ण को क्यों अपनाऊँ ?" कोई भी तुम्हे नहीं दे सकता है । लेिकन अगर तुम सहमत हो, यह बहुत आसान है । इसे स्वीकार करो ।