HI/Prabhupada 0290 - जब तुम्हारी वासना पूरी नहीं होती, तो तुम गुस्सा करते हो



Lecture -- Seattle, September 30, 1968

उपेंद्र: प्रभुपाद, क्रोध की प्रकृति क्या है? क्रोध कैसे ...

प्रभुपाद: गुस्से का मतलब है वासना | जब तुम कामी हो और तुम्हारी वासना पूरी नहीं होती तो तुम नाराज हो जाते हो । बस। यह वासना की एक और विशेषता है। काम एश क्रोध एश रजो जुण समुदभव । जब तुम बहुत ज्यादा रजो गुण से प्रभावित हो, तो तुम कामी हो जाते हो। और जब तुम्हारी वासना पूरी नहीं होती, तो तुम गुस्सा करते हो, अगला चरण। और अगला चरण है संभ्रमित होना। और फिर अगला चरण प्रणश्यति, फिर तुम राह भटक जाते हो। तो इसलिए इस वासना और क्रोध को नियंत्रित करना है। इस नियंत्रिण का मतलब है तुम्हे रजो गुण में नहीं, सतो गुण में अपने अाप को रखना होगा।

भौतिक प्रकृति के तीन गुण हैं: तमो गुण, रजो गुण अौर सत्व गुण। इसलिए जो भगवान के विज्ञान को जानना चाहता है, तो उसे अपने अाप को सत्व जुण में रखना होगा। अन्यथा वह नहीं कर सकता। इसलिए हम हमारे छात्रों को पढ़ा रहे हैं "तुम ऐसा मत करो, तुम ऐसा मत करो, तुम ऐसा मत करो, तुम ऐसा मत करो," क्योंकि उसे अापने अाप को सत्व गुण में रखना होगा । अन्यथा वह समझने में सक्षम नहीं होगा। कृष्ण भावनामृत तमो और रजो गुण के मंच पर नहीं समझा जा सकता है। पूरी दुनिया तमो अौर रजो गुण के प्रभाव में है। लेकिन यह विधि इतनी आसान है कि तुम बस प्रतिबंध के चार सिद्धांतों का पालन करो और मंत्र जपो हरे कृष्ण, तुम तुरंत भौतिक प्रकृति के सभी गुणों को पीछे छोड़ रहे हो। तो गुस्सा रजो गुण के मंच पर है।