HI/Prabhupada 0305 - हम कहते हैं कि भगवान मर चुके हैं । इसलिए हमें इस भ्रम से हमारी आँखों को बाहर निकालना होगा



Lecture -- Seattle, October 2, 1968

प्रभुपाद: पढो ।

तमाल कृष्ण: "जीव धूप के एक आण्विक हिस्से की तरह है, जबकि कृष्ण की तुलना प्रज्वलित चमकते सूरज के साथ के जाती है । भगवान चैतन्य नें आग से धधकते चिंगारियों के साथ जीव की तुलना की थी । और परम भगवान को सूर्य की धधकते आग के साथ । भगवान इस संबंध में एक श्लोक बोलते हैं विष्णु पुराण से, जिसमें यह कहा गया है कि जो कुछ भी इस लौकिक दुनिया के भीतर प्रकट होता है, परम भगवान की एक ऊर्जा शक्ति है । उदाहरण के लिए, जैसे एक जगह से निकलती आग चारों ओर अपनी रोशनी और गर्मी दर्शाती है, इसी तरह प्रभु, हालांकि वे अाध्यात्मिक दुनिया में एक ही स्थान में स्थित हैं, हर जगह उनकी अलग अलग ऊर्जा शक्ति प्रकट है । "

प्रभुपाद: अब, यह बहुत आसान है । समझने की कोशिश करो । जैसे इस आग की तरह, यह चिराग, एक निश्चित जगह पर स्थित है लेकिन रोशनी पूरे कमरे में वितरित है, इसी प्रकार जो कुछ भी तुम देखते हो, लौकिक अभिव्यक्ति का प्रदर्शन, वे परम भगवान की ऊर्जा शक्ति का प्रदर्शन है । परम भगवान एक स्थान में स्थित हैं । यह हम हमारे ब्रह्म संहिता में कहते हैं कि: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम् भजामि । वे एक व्यक्ति हैं । जैसे तुम्हारे राष्ट्रपति श्री जॉनसन, वे वॉशिंग्टन में अपने कमरे में बैठे हैं, लेकिन उनकी शक्ति, उनकी ऊर्जा, पूरे राज्य में काम कर रही है । अगर यह भौतिक दुनिया में संभव है, तो इसी प्रकार कृष्ण, या भगवान, परम व्यक्ति, वे अपने स्थान पर स्थित हैं, निवास, वैकुन्ठ या परमेश्वर के राज्य में, लेकिन उनकी ऊर्जा काम कर रही है ।

एक अन्य उदाहरण, सूरज । सूरज, तुम देख सकते हो कि सूरज एक निश्चित जगह पर स्थित है, लेकिन तुम देखते हो कि धूप पूरे ब्रह्मांड में फैली हुई है । धूप तुम्हारे कमरे के भीतर है । तो इसी तरह, जो कुछ भी तुम उपयोग कर रहे हो, तुम खुद भी, हम सब परम भगवान की ऊर्जा का प्रदर्शन हैं । हम उन से अलग नहीं हैं । लेकिन जब माया या भ्रम के बादल मेरी आंख को ढक देते हैं, हम सूरज को नहीं देख सकते । इसी प्रकार जीवन की भौतिक अवधारणा जब मुझे ढक लेती है, तब हम भगवान क्या हैं यह समझ नहीं सकते हैं । हम कहते हैं कि भगवान मर चुके हैं । इसलिए हमें इस भ्रम से हमारी आँखों को बाहर निकालना होगा । तो तुम सीधे भगवान को देखोगे: "यहाँ भगवान हैं ।" हां । ब्रह्म संहिता में यह कहा जाता है,

प्रेमान्जन-छुरित भक्ति विलोचनेन
संत: सदैव ह्रदयेशु विलोकयन्ति
यम श्यामसुन्दरम अचिन्त्य गुण स्वरूपम
गोविन्दम अादि पुरुषम तम अहम भजामि
(ब्रह्मसंहिता ५.३८)

वह पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान है, वे श्यामसुन्दर हैं । श्यामसुन्दर । श्याम का मतलब है काले लेकिन बहुत, बहुत सुंदर । वह सुंदर व्यक्ति, श्रीभगवान, कृष्ण, हमेशा साधु व्यक्तियों द्वारा देखे जा रहे हैं । प्रेमान्जन-छुरित भक्ति विलोचनेन । क्यों वे देख रहे हैं? क्योंकि उनकी आँखें भगवान के प्रेम का मरहम लगाए हुए हैं । जैसे अगर तुम्हारी आँखें खराब हैं, तो तुम कुछ मरहम लगाते हो, चिकित्सक से कुछ मरहम लेकर, और तुम्हारी दृष्टि स्पष्ट और उज्ज्वल हो जाती है, तुम बहुत अच्छी तरह से चीजों को देख सकते हो । इसी प्रकार, जब तुम्हारी, इन भौतिक आंखों में मरहम लगेगा भगवान के प्यार का, तब तुम भगवान को देखोगे, "यहाँ भगवान हैं ।" तुम नहीं कहोगे कि भगवान मर चुके हैं । और उस परदे को हटना होगा, और उस परदे को हटाने के लिए तुम्हे इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को स्वीकार करना होगा ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।