HI/Prabhupada 0314 - शरीर के लिए ज्यादा ध्यान नहीं देना, लेकिन आत्मा के लिए पूरा ध्यान देना



Lecture on SB 6.1.10 -- Los Angeles, June 23, 1975

इस युग में, कलयुग, झगड़े और लड़ने और गलतफहमी का युग- इसे कलयुग कहा जाता है - इस युग में यह एकमात्र साधन है: हरि-कीर्तनात । संकीर्तन आंदोलन ही हरि-कीर्तन है । हरि-कीर्तन ... कीर्तन का मतलब है भगवान की स्तुति के बारे में जप करना, हरि-कीर्तन | और श्रीमद-भागवतम में इसकी पुष्टि भी की गई है:

कलेर दोश निधे राजन
अस्ति हि एको महान गुण:
कीर्तनाद एव कृष्णस्य
मुक्त-संग: परम व्रजेत
(श्रीमद भागवतम १२.३.५१)

तो यह सिफारिश की जाती है, अौर इसी तरह, श्री चैतन्य महाप्रभु के बारे में बयान है श्रीमद-भागवतम में, त्विशाकृष्णम...

कृष्ण-वर्णम त्विशाकृष्णम
संगोपांगास्त्र-पार्षदम
यज्ञै: संकीर्तन-प्रायैर
यजन्ति हि सुमेधस:
(श्रीमद भागवतम ११.५.३२) ।

इसलिए हमारा पहला कर्तव्य चैतन्य महाप्रभु की पूजा करना । हम अर्च विग्रह रखते हैं । में ... सबसे पहले हम चैतन्य महाप्रभु को प्रणाम करते हैं उनके सहयोगी के साथ, और फिर, गुरु गौरांग, फिर राधा कृष्ण या जगन्नाथ को प्रणाम करते हैं । तो क्योंकि यह प्रक्रिया है कलयुग में, यज्ञै: संकीर्तन-प्रायैर यजन्ति हि सुमेधस: अगर तुम संकीर्तन करते हो, बस यह प्रक्रिया, भगवान चैतन्य के सामने जितनी बार संभव हो सके, फिर तुम्हारी सफलता निश्चित है । तुम्हे अौर किसी भी चीज़ की आवश्यकता नहीं है ।

यह सिफारिश की है: यज्ञै: संकीर्तन-प्रायैर यजन्ति हि सुमेधस: | इसलिए जो लोग बुद्धिमान हैं, वे आत्म बोध का यह आसान तरीका अपनाते हैं । जितना अधिक तुम मंत्र जपते हो, तो ह्रदय की शुद्धि की प्रक्रिया बहुत अच्छी तरह से चलती है । चेतो दर्पण मार्जनम (चैतन्य चरितामृत अंत्य २०.१२) । यह सिफारिश की है । चेतो दर्प ... यह पहला है, क्योंकि हमारा आध्यात्मिक जीवन शुरू नहीं होता है जब तक चेतो दर्पण मार्जनम, जब तक दिल का दर्पण शुद्ध नहीं होता है । लेकिन यह सबसे आसान प्रक्रिया है । अगर तुम हरे कृष्ण महा मंत्र का जप करते हो परमानंद में, तो पहले लाभ होगा कि तुम्हारा दिल शुद्ध हो जाएगा । तो फिर तुम देख सकते हो कि तुम्हारी स्थिति क्या है, तुम क्या हो, तुम्हारा काम क्या है । अगर तुम्हारा दिल अशुद्ध है, तो ... तो दिल का ये मैल शुद्ध नहीं किया जा सकता है इस प्रक्रिया से, प्रायश्चित करके । यह संभव नहीं है ।

इसलिए ... परिक्षित महाराज बहुत बुद्धिमान हैं । उन्होंने कहा, प्रायश्चित्तम अथो अपार्थम । अप, अप का मतलब है "नकारात्मक", और अर्थ का मतलब है "अर्थ ।" "इसका कोई मतलब नहीं है ।" वे तुरंत खारिज कर देते हैं, प्रायश्चित्तम अथो अपार्थम । "क्या लाभ होगा? वह अशुद्ध रहेगा । वह अपने दिल को साफ नहीं करता है, दिल की गहराई को ।" दिल की गहराई में, सब गंदी बातें हैं: "मैं कैसे धोखा दूँ, मैं काला बाजार कैसे करूँ, मैं कैसे इन्द्रियों का आनंद लूँ, कैसे मैं वेश्या के पास जाऊँ और पीऊँ ।" यह चीजें हैं । तो केवल मंदिर या चर्च जाकर और कुछ प्रायश्चित्त करके, इसका कोई फायदा नहीं होगा । हमें इस विधि को गंभीरता से लेना होगा, संकीर्तनम । चेतो-दर्पण-मार्जनम भव-महा-दावाग्नि-निर्वापणम (चैतन्य चरितामृत अंत्य २०.१२) ।

पहली किस्त है कि तुम अपने दिल को शुद्ध करते हो । अगली किस्त है भव-महा-दावाग्नि-निर्वापणम । अगर तुम्हारा दिल शुद्ध है, तो तुम इस भौतिक दुनिया में तुम्हारी स्थिति क्या है यह समझ सकते हो । और एक गंदे दिल के साथ, तुम नहीं समझ सकते । अगर तुम्हारा दिल साफ है, तो तुम समझ सकते हो कि "मैं यह शरीर नहीं हूँ ।" मैं आत्मा हूं । इसलिए मैं वास्तव में अपने लिए क्या कर रहा हूँ? मैं आत्मा हूं । मैं यह शरीर नहीं हूं । मैं इस शरीर पर साबुन लगा रहा हूँ, लेकिन मैं जैसा हूँ, मैं भूख से मर रहा हूँ ।" यह चल रहा है । भौतिक सभ्यता का मलतब है वे शरीर की देखभाल कर रहे हैं और शरीर के भीतर जो आत्मा है उसकी कोई जानकारी नही है । यह भौतिक सभ्यता है ।

और हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन है, शरीर के लिए ज्यादा ध्यान नहीं देना, लेकिन आत्मा के लिए पूरा ध्यान देना । यह कृष्ण भावनामृत है, बिल्कुल विपरीत । इसलिए वे इस आंदोलन को नहीं समझ सकते हैं । यह पूरी तरह से आध्यात्मिक आंदोलन है । यह भौतिक आंदोलन नहीं है । इसलिए वे कभी कभी गलत समझते हैं, "अापके लोग स्वास्थ्य में कमजोर हैं ।" वे यह और वह हो रहे हैं । वे मांस नहीं खाते हैं, तो जीवन शक्ति कम है ।" तो "हम जीवन की शक्ति को लेकर चिंतित नहीं हैं । हमे आध्यात्मिक जीवन से मतलब है ।" इसलिए वे कभी कभी गलत समझते हैं । तो, लोग समझते हैं या गलत समझते हैं - कोई फर्क नहीं पडता है । तुम अपने कीर्तन के साथ लगे रहो और यह तय रखना कि अब अौर भौतिक जीवन नहीं होगा ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।