HI/Prabhupada 0328 - यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन सब को शामिल करने वाला है



University Lecture -- Calcutta, January 29, 1973

तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन सब को शामिल करने वाला है । यह दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान कर सकता है - राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक सब कुछ । यह सब को शामिल करने वाला है । इसलिए मेरा अनुरोध है कि मैं अब अपने अमेरिकी शिष्यों और यूरोपीय शिष्यों के साथ काम कर रहा हूँ । भारतीय क्यों नहीं ? मुझे लगता है कि इस बैठक में कई युवा पुरुष, शिक्षित, विद्वान हैं । इस आंदोलन में शामिल हो जाअो, और श्रीचैतन्य महाप्रभु के आदेश के अनुसार,

भारत भूमिते मनुष्य जन्म हइल यार
जन्म सार्थक करी करो परोपकार
(चैतन्य चरितामृत अादि ९.४१)

यह समय है पूरी दुनिया के लिए कल्याणमय गतिविधियों को करने के लिए । वे भ्रम में विलय हो रहे हैं, हर जगह । तुम्हें पता है कि पश्चिमी देशों में, हिप्पी आंदोलन । हिप्पी क्या हैं ? वे भी शिक्षित हैं, बहुत अमीर परिवार से अाते हैं, लेकिन उन्हें अाज का वातावरण पसंद नहीं अाया अपने पिता और दादा की तरह । उन्होंने नकार दिया है । तो यह सुनहरा मौका है पूरी दुनिया में कृष्ण पंथ का प्रचार करने के लिए । तुम विलाप कर रहे हो कि कुछ गज ज़मीन तुम्हारे देश से चली गई है पाकिस्तान के रूप में, लेकिन अगर तुम इस कृष्णभावनामृत आंदोलन को फैलाते हो, तो पूरी दुनिया हिंदुस्तान बन जाएगा ।

ऐसी शक्ति है, मैं तुम्हें अपनी प्रत्यक्ष धारणा देता हूँ । लोग उत्कंठित हैं इसके लिए । जब तक मैं भारत में हूँ, व्यावहारिक रूप से मैं अपना समय बर्बाद कर रहा हूँ । भारत के बाहर, इस स्वागत को इतनी गंभीरता से लिया जाता है कि मेरे हर पल ठीक से उपयोग किया जाता है । तो मैं इस विश्वविद्यालय में आया हूँ, एक आशा के साथ कि आप में से कुछ वास्तव में ब्राह्मण बनेंगे । संस्कृत विभाग ब्राह्मणों के लिए है । पठन पाठन यजन याजन् दान प्रतिग्रह । एक ब्राह्मण को पंडित कहा जाता है । क्यों ? क्योंकि एक ब्राह्मण को विद्वान होना चाहिए । ब्राह्मण को मूर्ख नहीं कहा जाता है । तो यह विभाग, संस्कृत विभाग, ब्राह्मणों के लिए है । तो मैं चाहूँगा कि अाप में से कुछ इस आंदोलन में शामिल हों, विदेशी देशों में जाओ, चैतन्य महाप्रभु के इस उदात्त पंथ का प्रचार करें । पृथ्वीते अाछे यत यत नगरादि ग्राम । बड़ी ज़रूरत है ।

हमारे पास हैं, ज़ाहिर है, इतने सारे मंदिरों की स्थापना की है, लेकिन अभी भी हमें मंदिरों की स्थापना करने की आवश्यकता है, राधा कृष्ण मंदिर, चैतन्य महाप्रभु का मंदिर, हर गाँव में, दुनिया के हर शहर में । अब हमारे प्रत्येक केन्द्र से, हम बसों में भक्तों को भेज रहे हैं । वे यूरोप और अमेरिका के गाँवों में, अंदरूनी जगह में जा रहे हैं, और वे बहुत अच्छी तरह से स्वीकार किए जा रहे हैं । इंग्लैंड में विशेष रूप से, वे गाँव-गाँव में जा रहे हैं । वे बहुत ज़्यादा अच्छी तरह से स्वीकार किए जा रहे हैं । यह पंथ इतना अच्छा है । यहाँ तक ​​कि ईसाई पादरी, वे हैरान हैं । वे हैरान हैं । बोस्टन में एक पुजारी, उसने पैम्फलेट जारी किए हैं कि, "ये लड़के, वे हमारे लड़के हैं, ईसाई और यहूदियों में से । इस आंदोलन से पहले, वे चर्चों में आने के लिए ध्यान नहीं देते थे । अब वे भगवान के पीछे पागल हो रहे हैं ।" वे स्वीकार कर रहे हैं ।

ईसाई पुरोहित वर्ग, वे हमारे खिलाफ़ नहीं हैं । जो समझदार वर्ग है, वे स्वीकार कर रहे हैं कि, "स्वामीजी कुछ ठोस दे रहे हैं ।" उनके पिता और पूर्वज मेरे पास आते हैं । वे झुकते हैं । वे कहते हैं, "स्वामीजी, यह हमारे लिए एक महान सौभाग्य है कि अाप हमारे देश में आए हैं ।" तो मैं अकेले काम कर रहा हूँ और आंदोलन की सराहना की जा रही है । और अगर व्यक्ति, इस विश्वविद्यालय से विद्वान आगे आएँ अौर इस आंदोलन को सिखाएँ ... यह उसी के लिए है । ब्राह्मण का कार्य है, प्रचार । ब्रह्म जानाति । व्यक्ति को ब्रह्म का पता होना चाहिए और ब्रह्म ज्ञान के ज्ञान को वितरित करना चाहिए । यह ब्राह्मण का कार्य है ।