HI/Prabhupada 0346 - प्रचार के बिना, तत्वज्ञान की समझ के बिना, तुम अपनी शक्ति को नहीं रख सकते हो



Morning Walk -- December 12, 1973, Los Angeles

उमापति : मुझे लगता है कि हम भक्तों को कार्यालय में रखने की राजनीतिक संभावनाओं पर चर्चा कर रहे थे, और हम आश्चर्यजनक खोज पर पहुँचे कि हम लगभग पश्चिमी मूल्यों के खिलाफ़ मौजूद सभी चीजों का प्रतिनिधित्व करते हैं । हम तपस्या का प्रतिनिधित्व करते हैं । हम भगवद भावनामृत का प्रतिनिधित्व करते हैं । हम यौन स्वतंत्रता और नशे के प्रतिबंध का प्रतिनिधित्व करते हैं । सभी चार नियम लगभग पूरी तरह से विपरीत हैं पश्चिमी इच्छाओं के ।

प्रभुपाद: इसका मतलब है कि पश्चिमी लोग सभी राक्षस हैं ।

उमापति: तो समस्या है उन परिस्थितियों में कार्यालयों के अंदर जाने की कोशिश करना, यह बताने के लिए कि, "हम इस बात के लिए खड़े हैं" और किसी को आप के लिए वोट कराना ।

प्रभुपाद: चाहे कोई भी वोट न दे, लेकिन हमें प्रचार करते रहना चाहिए । यह मैंने पहले से ही समझा दिया है, कुछ विश्वविद्यालयों में । पूरा देश अनपढ़ है । क्या इसका मतलब ये है कि विश्वविद्यालय को बंद कर देना चाहिए ? विश्वविद्यालय होना चाहिए । जो भाग्यशाली हैं वह आाएगा और शिक्षा लेगा । यह तर्क नहीं है कि, "लोग अनपढ़ हैं ।" वे इसके लिए परवाह नहीं करते हैं । इसलिए विश्वविद्यालय को बंद कर दिया जाए ।" यह कोई तर्क नहीं है ।

यशोमतीनन्दन: धीरे-धीरे उनमें आकर्षण का विकास होगा ।

प्रभुपाद: हाँ, हमें काम करना है । यही प्रचार है । तुम यह मत सोचो की प्रचार अासान है। खाना, सोना अौर कभी कभी जप, "हरिबोल," बस । यह प्रचार नहीं है । हम दुनिया भर में कृष्णभावनामृत विचारों को समाविष्ट करने के लिए तैयार होने चाहिए । उमापति: यह शायद रातों-रात नहीं होगा, फिर भी ।

प्रभुपाद: अर्चा-विग्रह की पूजा का कार्यक्रम हमें सुरक्षित रखने के लिए है । अगर हम अर्चा-विग्रह की पूजा की उपेक्षा करते हैं, तो हम भी गिर जाएँगे । लेकिन एेसा नहीं है कि सब कर्तव्य खत्म हो गए हैं । अर्चायाम् एव हरये पूजाम य: श्रद्धयेहते । अर्चा का अर्थ है विग्रह । अगर कोई बहुत अच्छी तरह से अर्चा-विग्रह की पूजा कर रहा है, लेकिन न तद्-भक्तेषु चान्येषु, लेकिन वह और कुछ नहीं जानता, कौन भक्त है, कौन अभक्त है, दुनिया के प्रति क्या कर्तव्य है, स भक्त: प्रकृत: स्मृत:, वह प्राकृत भक्त है । वह प्राकृत भक्त है । तो हमें ज़िम्मेदारी लेनी होगी समझने के लिए कि वास्तव में कौन शुद्ध भक्त है । और क्या हमारा कर्तव्य है आम लोगों के प्रति, और फिर तुम उन्नति करते हो । तो फिर तुम मध्यम-अधिकारी बन जाते हो । मध्यम-अधिकारी, उन्नत भक्त । जैसे इन लोगों की तरह, भारत में या यहाँ, वे बस चर्च जाने की क्रिया में रहते हैं, किसी भी समझ के बिना चर्च जा रहे हैं । इसलिए यह असफल है । अब ऐसा है ... चर्च बंद किए जा रहे हैं । इसी प्रकार, अगर तुम स्वयं को प्रचार करने के लिए दुरुस्त नहीं रखते, तो तुम्हारे सब मंदिर समय के साथ बंद हो जाएँगे । प्रचार के बिना, तुम मंदिर में पूजा जारी रखने के लिए उत्साह महसूस नहीं करोगे । और मंदिर में पूजा के बिना, तुम अपने आप को शुद्ध और साफ़ नहीं रख सकते हो । दो बातें समानांतर चलनी चाहिए । तो फिर सफलता है । आधुनिक समय में, या तो हिंदू, मुसलमान या ईसाई, क्योंकि इन स्थानों में कोई तत्वज्ञान नहीं सिखाया जाता है, इसलिए वे, मस्ज़िद या मंदिर या चर्च बंद कर रहे हैं । वे बंद हो जाएँगे ।

प्रजापति: वे अपनी गतिविधियों के लिए कोई अच्छा परिणाम नहीं दिखा सकते ।

प्रभुपाद: हाँ । यही प्रचार है । इसलिए हम कई सारी किताबें लिख रहे हैं । जब तक हम पुस्तकों की देखभाल नहीं करते हैं और प्रचार नहीं करते हैं और खुद नहीं पढ़ते हैं, तत्वज्ञान को नहीं समझते हैं, यह हरे कृष्ण कुछ वर्षों के भीतर खत्म हो जाएगा । कोई जीवन नहीं रहेगा । कृत्रिम रूप से कब तक हम चला सकते हैं, "हरे कृष्ण ! हरिबोल !" यह कृत्रिम होगा, कोई जीवन नहीं ।

यशोमतीनन्दन: यह सही है प्रभुपाद । हम इतने मूर्ख हैं, हम कुछ भी एहसास नहीं कर पाते, जब तक कि आप हमें उस तरह से नहीं बताते । प्रचार के बिना...

प्रभुपाद: प्रचार के बिना, तत्वज्ञान की समझ के बिना, तुम अपनी शक्ति को सुरक्षित नहीं रख सकते हो । हर किसी को अच्छी तरह से समझ होनी चाहिए उस तत्वज्ञान की जो हम प्रस्तुत कर रहे हैं । इसका मतलब है कि तुम्हें हर दिन अच्छी तरह से पढ़ना होगा । कई किताबें हैं हमारे पास । और भागवत इतना पूर्ण हैं कि कोई भी श्लोक तुम पढ़ो, तुम्हें एक नया साक्षात्कार होता है । यह इतना अच्छा है । भगवद गीता या भागवत । लेकिन यह साधारण लेखन नहीं है ।

उमापति: मैं कुछ स्कूलों में अापकी भगवद्गीता को रखवाने की कोशिश कर रहा हूँ, और वे कहते हैं कि, "ठीक है," उनमें से कुछ, अगर उनके पास है एक भगवद्गीता, तो वे कहते हैं, "ठीक है, हमारे पास एक भगवद्गीता है ।" तो उम्म, "यह भगवद्गीता की पूरी तरह से अलग समझ है," और वे कहते हैं, "ठीक है, यह सिर्फ किसी और का मत है और हमें एक ही किताब पर विभिन्न मतों में इतनी रुचि नहीं है ।"

प्रभुपाद: यह मत नहीं है । हम रख रहे हैं, यथार्थ, बिना मत के ।

उमापति: ठीक है, ये उनका कहना है । उन पर काबू पाना बहुत मुश्किल है ...

प्रभुपाद: तो प्रचार हमेशा मुश्किल होता है । यह मैं बार- बार कहता हूँ । तुम प्रचार को बहुत आसान नहीं ले सकते हो । प्रचार युद्ध है । तुम्हारे कहने का मतलब क्या है कि युद्ध करना आसान बात है ? युद्ध करना आसान बात नहीं है । जब युद्ध होता है, वहाँ खतरा है, ज़िम्मेदारी है । तो प्रचार का मतलब ... प्रचार क्या है? क्योंकि लोग अज्ञानी हैं, इसलिए हमें उन्हें ज्ञान देना है। यही प्रचार है ।

नर-नारायण: जब अाप पश्चिमी दुनिया में अाए थे, किसी को भी यकीन नहीं था कि यह सफल होगा, मुझे लगता है । लेकिन वास्तव में, यह बहुत सफल हो गया है, प्रचार से ।

प्रभुपाद: मुझे खुद विश्वास नहीं था कि मैं सफल हो जाऊँगा, बाकी लोगो की क्या बात करें । लेकिन, क्योंकि मैंनें उचित परम्परा में किया, इसलिए यह सफल हो गया है ।

यशोमतीनन्दन: हाँ, कृष्ण बहुत दयालु हैं कि हम कुछ उम्मीद करते हैं और वे हमें सौ-गुना अधिक देते हैं ।

प्रभुपाद: अरे हाँ ।

यशोमतीनन्दन: तो अगर हम बस अापके निर्देशों का पालन करें, तो फिर मुझे यकीन है कि यह गौरवशाली बनेगा । नर-नारायण: तो अगर हम उचित परम्परा में हैं, हमारी राजनीतिक गतिविधियाँ भी सफल होंगी ?

प्रभुपाद: अरे हाँ । क्यों नहीं ? कृष्ण राजनीति में थे । तो कृष्णभावनामृत का मतलब है हर तरफ से: सांस्कृतिक, धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक, राजनीतिक, सब कुछ । यह एक तरफा नहीं है । वे इसे लेते हैं... वे नहीं जानते । इसलिए वे इसे एक धार्मिक आंदोलन मान रहे हैं । नहीं, यह सर्व-सहित, सर्व-सहित, सर्व-व्यापक है ।