HI/Prabhupada 0362 - जैसे हमारे बारह जीबीसी हैं, इसी प्रकार श्री कृष्ण के जीबीसी हैं



Lecture on SB 1.13.15 -- Geneva, June 4, 1974

अगर तुम सड़क पर चल रहे हो, अौर तुम चलने से एक चींटी को मार देते हो, तुम दंडित किए जाअोगे । यह प्रकृति का नियम है । हम इस तरह की एक खतरनाक स्थिति में हैं । हर गमन-आगमन में सजा है । अब, अगर तुम शास्त्र को मानते ​​हो, तो यह अलग बात है । अगर तुम विश्वास नहीं करते हो, तो तुम अपने मन की कर सकते हो । लेकिन शास्त्र से हम प्रकृति, या भगवान, के नियमों को समझ सकते हैं, जो की बहुत-बहुत सख्त, बहुत-बहुत सख्त हैं । तो मण्डुक मुनि ने भी यमराज को ड़ाँटा कि, "मेरे बचपन में, किसी भी जानकारी के बिना मैंने कुछ किया, और जिसके लिए आपने मुझे इतनी बड़ी सज़ा दी है । तो तुम एक ब्राह्मण या क्षत्रिय बनने के लायक नहीं हो । तुम शूद्र हो जाअो ।" तो उन्हें शूद्र बनने का शाप मिला । इसलिए यमराज नें विदुर के रूप में जन्म लिया और एक शूद्र माँ की कोख से पैदा हुए । यह विदुर के जन्म का इतिहास है ।

तो उनकी अनुपस्थिति में, अर्यमा, देवताओं में से एक, वे यमराज की जगह पर काम कर रहे थे । इसलिए यह कहा जाता है, अभिभ्रद अर्यमा दण्डम् । कार्यालय चलते रहना चाहिए, मजिस्ट्रेट का पद खाली नहीं हो सकता । किसी को आकर कार्य करना होगा । तो अर्यमा काम कर रहे थे । यथावद अघ-कारिषु । अघ-कारिषु । अघ-कारि का मतलब ... अघ का मतलब है पाप कार्य और कारिषु । कारिषु का मतलब है जो पाप कार्य करते हैं । और यथावत् । यथावत् का मतलब है वास्तव में, कैसे उसे सज़ा दी जानी चाहिए । यथावद अघ-कारिषु । यावद दधार शूद्रत्वम । जब तक यमराज एक शूद्र के रूप में थे, अर्यमा यमराज की जगह कार्य कर रहे थे । यह तात्पर्य है ।

(तात्पर्य पढ़ते हैं:) "विदुर, एक शूद्र माता की कोख से पैदा हुए, जिनको मना किया गया था यहाँ तक ​​कि अपने भाइ धृतराष्ट्र और पाण्डु के साथ शाही विरासत का हिस्सा बनने के लिए । तो फिर कैसे वे ऐसे प्रचारक बन सकते हैं अौर निर्देश दे सकते हैं एसे विद्वान को....? जवाब है, हालाँकि यह स्वीकार किया जाता है कि वे जन्म से एक शूद्र थे, क्योंकि उन्होंने जगत का त्याग किया आध्यात्मिक ज्ञान के लिए, मैत्रेय ऋषि के प्राधिकार से और पूरी तरह से दिव्य ज्ञान में शिक्षित थे, वे एक आचार्य या आध्यात्मिक गुरू के पद पर विराजमान होने के लिए काफी सक्षम थे । " विदुर एक शूद्र थे, जन्म से शूद्र । तो फिर कैसे वे एक प्रचारक बन गए ?

तो कारण है ... " श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुसार जो कोई भी दिव्य ज्ञान या परम विज्ञान के क्षेत्र में परिचित है, चाहे वह एक ब्राह्मण या शूद्र, एक गृहस्थ या एक संन्यासी हो, वह एक आध्यात्मिक गुरु बनने का पात्र है । " ऐसा नहीं है कि क्योंकि वे एक शूद्र पैदा हुए थे, वे प्रचार नहीं कर सकते हैं, वे आचार्य या आध्यात्मिक गुरु का पद नहीं ले सकते हैं । यह चैतन्य का तत्वज्ञान नहीं है । चैतन्य तत्वज्ञान का इस शरीर, बाहरी शरीर के साथ कुछ लेना देना नहीं है । चैतन्य तत्वज्ञान का संबंध आत्मा के साथ है । यह आंदोलन है आत्मा की उन्नति का अांदोलन, आत्मा को पतन से बचाने का । इसलिए लोग कभी-कभी हैरान होते हैं । जीवन की शारीरिक अवधारणा, वही गतिविधियाँ कर्म होगीं । आध्यात्मिक जीवन के मंच पर, वही कर्म भक्ति हो जाएंगे । वही कर्म भक्ति हो जाएंगे ।

तो भक्ति निष्क्रियता नहीं है । भक्ति सर्व-सक्रिय है । यत करोषि यज जुहोषि यद अश्नासी यत तपसयसि कुरुश्व तद मद-अर्पणम (भ.गी. ९.२७) । यह भक्ति है, भक्ति-योग । कृष्ण हर किसी से कहते हैं, "अगर तुम अपने कर्म को नहीं त्याग सकते हो, तो कोई बात नहीं । लेकिन अपने कर्म का परिणाम, मुझे दो। तो यह भक्ति हो जाएगी।" तो विदुर यमराज थे । इतना ही नहीं कि वे यमराज थे, लेकिन वे महान अधिकारियों में से एक हैं । शास्त्र में वर्णित बारह अधिकारी हैं । उनमें से एक यमराज हैं । बलिर वैयासकिर् वयम् । यह श्रीमद-भागवतम् में कहा गया है । यमराज कृष्ण की जीबीसी में से एक हैं । हाँ । जैसे हमारे बारह जीबीसी हैं, इसी प्रकार श्री कृष्ण के बारह जीबीसी हैं ।

स्वयमभूर् नारद: शम्भु:
कुमार: कपिलो मनु:
प्रहलादो जनको भीष्मो
बलिर् वैयासकिर् वयम्
(श्रीमद भागवतम् ६.३.२०)

बारह पुरुष कृष्णभावनामृत प्रचार करने के लिए अधिकृत हैं । तो हमें पालन करना है । महाजनो येन गत: स पंथा:(चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१८६) । इसलिए हमने इस जीबीसी को बनाया है । तो उन्हें बहुत ज़िम्मेदार पुरुष होना होगा । अन्यथा, वे दंडित होंगे । वे एक शूद्र बनने के लिए दंडित होंगे । हालाँकि यमराज एक जीबीसी हैं, लेकिन उन्होंने एक छोटी-सी गलती की है । वे शूद्र बनने के लिए दंडित हो गए थे । तो जो जीबीसी हैं, उन्हें इस्कॉन के कार्य प्रशासन के लिए बहुत-बहुत सावधान रहना चाहिए । अन्यथा वे दंडित किए जाएँगे । क्योंकि पद बहुत बड़ा है, उसी प्रकार, सज़ा भी बहुत बड़ी है । यही कठिनाई है । तुम इस उदाहरण से देख सकते हो, विदुर । उनको तुरंत दंडित किया गया था। उन्होंने छोटी सी गलती की थी। क्योंकि ऋषि, मुनि, वे शाप देते हैं ।