HI/Prabhupada 0368 - तो तुम मूर्खतापूर्वक सोच रहे हो कि तुम अनन्त नहीं हो



Morning Walk -- January 3, 1976, Nellore

प्रभुपाद: यह थियोसोफिकल सोसायटी है, मुझे लगता है । है ना? यह ट्रेडमार्क । या रामकृष्ण मिशन ।

अच्युतानन्द: नहीं, साल्वेशन आर्मी ।
प्रभुपाद: साल्वेशन आर्मी, ओह ।

हरिकेश: असल में हम ही केवल साल्वेशन आर्मी हैं । (तोड़)

अच्युतानन्द: ... एक प्राधिकरण का अधिकार । हम उसका प्राधिकरण स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन उसका अनुभव अाता है उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति से, जो है, वापस आता है ...

प्रभुपाद: हम इस तरह के अधिकारियों से नहीं लेते जो दूसरों से अनुभव लेते हैं । हम वह अधिकार लेते है जो...

केशवलाल त्रिवेदी: अनुभवी ।

प्रभुपाद: स्वचालित रूप से । परास्य शक्तिर विवधैव श्रुयते स्वभाविकी ज्ञान-बल-क्रिया च । स्वभाव, तुम कर सकते हो .... जैसे यदि तुम मुझसे पूछेते हो कि कैसे कुछ करना है, अगर मैं कहूँ, "हाँ, तुम इस तरह करो," स्वभाविकी । मुझे स्वभाव से ज्ञान मिला है कि कैसे इसे सही तरीके से करना हैं । यही हो रहा है । मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते स-चराचरम (भ.गी. ९.१०) | कृष्ण का हुक्म है "तुम इस तरह से करो ।" तो, जैसा कि तुम देख रहे हो, सब कुछ सही आ रहा है । एक नीम के बीज से एक नीम का पेड़ आएगा । यह बहुत अच्छी तरह से कृष्ण द्वारा किया गया है - बीजो अहम् सर्व-भूतानाम (भ.गी. ७.१०) (BG 9.10), कि यह नीम पेड़ आएगा, न कि आम का पेड़ । रसायण एसे संयुक्त हैं । तुम्हें पता नहीं है, वहाँ क्या है, एक छोटा सा बीज, बट वृक्ष । और एक विशाल बरगद का पेड़ अाएगा, अन्य कोई पेड़ नहीं । यही ज्ञान है । उन्होंने पूरा दिया है, मेरे कहने का मतलब है, एक छोटे से बीज में सभी कार्य। इसलिए कृष्ण कहते हैं, बीजो अहम् सर्व-भूतानाम । कोई गलती नहीं है । तुम बस इसे ले लो और प्रचार करो । तुम्हे परिणाम मिलेगा ।

अच्युतानन्द: तो वह सिद्धांत जो चीजों को उगाता है, सब कुछ, ईशोपनिषद कहता है, सो अहम अस्मि : "मैं वह सिद्धांत हूँ ।" ईशोपनिषद के अंतिम श्लोक में कहते हैं, सो अहम अस्मि "मैं वह हूँ ।"

प्रभुपाद: अस्मी का मतलब है "यह मेरी शक्ति है । यह मेरी शक्ति है ।"

अच्युतानन्द: नहीं, यह कहता है ...

प्रभुपाद: अगर मैं कहुँ कि " मैं इस्कॉन हूँ," क्या गलत है? क्योंकि मैंने इसे बनाया है, इसलिए मैं कहता हूँ, " इस्कॉन मतलब है मैं । मैं इस्कॉन हूँ ।" तो गलत क्या है? ये ऐसा है । कृष्ण की शक्ति से, सब कुछ बाहर आया है । इसलिए कहते हैं, "मैं यह हूँ, मैं यह हूँ, मैं यह हूँ, मैं यह हूँ ।" विभूति-भिन्नम । क्योंकि सब कुछ .... जन्मादि अस्य यत: (श्रीमद भागवतम १.१.१) | सब कुछ कृष्ण से अाया है ।

अच्युतानन्द: नहीं, ईशोपनिषद कहता है कि तुम वह सिद्धांत हो । ईशोपनिषद कहता है कि जो सिद्धांत सूरज को प्रकाशित कर रहा है, कि "मैं वह सिद्धांत हूँ ।" प्रभुपाद: हाँ, एक भक्त स्वीकार करता है .... हम स्वीकार करते हैं ।

अच्युतानन्द : वह जो सूरज को प्रकाशित कर रहा है, मैं वह हूँ ।"

प्रभुपाद: मैं तुम्हे समझ नहीं पा रहा हुँ ।

अच्युतानन्द: सो अहम अस्मि , वह सोलहवॉ ...

हरिकेश: "वैसा ही सूर्य को, जैसा मैं हूँ ।"

प्रभुपाद: हाँ, सो अहम अस्मि - क्योंकि मैं हिस्सा हूँ ।

अच्युतानन्द: नहीं । लेकिन यह कहता है " मैं वह हूँ," यह नहीं कि " मैं उसका हिस्सा हूँ । " मैं वह हूँ ।"

प्रभुपाद: नहीं । अगर वह यह कहता है, यह स्वीकार कर सकते हैं, क्योंकि मैं गुणात्मक समान हूँ ।

केशवलाल त्रिवेदी: मात्रा, काफी फर्क है । प्रभुपाद: हाँ ।

प्रभुपाद: अगर मैं कहता हूँ "मैं भारतीय हूँ," वहाँ क्या गलत है? अगर मैं कहता हूँ, "मैं भारतीय हूँ?"

अच्युतानन्द: वह कुछ और है ।

प्रभुपाद: हाँ । नहीं कुछ और नहीं ।

अच्युतानन्द : लेकिन सीधे श्रुति को स्वीकार करने के लिए, यह कहता है कि तुम वही सिद्धांत हो ।

प्रभुपाद: और इसलिए तुम्हे गुरु से सीखना है । अगर तुम सीधे लेते हो, तो तुम एक मूर्ख रहते हो । इसलिए तुम्हे एक गुरु की आवश्यकता है । यही श्रुति का निर्देश है तद-विज्ञानार्थम स गुरुम एवाभीगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२) | तुम्हे श्रुति सीखना होगा । तुम्हे एक गुरु के पास अाना होगा ।

अच्युतानन्द: नहीं, लेकिन यह उसके बाद है । वह उपनिषद का अंतिम निष्कर्ष, श्रुति, प्राधिकरण, यह है कि तुम वही सिद्धांत हो ।

प्रभुपाद: हाँ, मैं वही सिद्धांत हूँ । नित्यो नित्यानाम ।

अच्युतानन्द: ठीक है, कुछ भी और अनन्त नहीं हो सकता है दूसरे अनन्त से ।

प्रभुपाद: हर कोई शाश्वत है ।

अच्युतानन्द: यह तो विरोधाभासी है । नित्यो नित्यानाम | आप यह नहीं कह सकते हो कि एक बात एक और बात से अधिक अनन्त है ।

प्रभुपाद: नहीं, नहीं । यह मुद्दा नहीं है । हर कोई शाश्वत है ।

अच्युतानन्द: तो कैसे एक अधिक अनन्त हो सकता है ...

प्रभुपाद: जैसे भगवान अनन्त हैं, तो तुम भी अनन्त हो । क्योंकि तुमने यह भौतिक शरीर स्वीकार किया है, तो तुम मूर्खतापूर्वक सोच रहे हो कि तुम अनन्त नहीं हो । अन्यथा, जैसे भगवान अनन्त हैं, तुम भी अनन्त हो ।

अच्युतानन्द : तो फिर क्यों वे एक दूसरे से अलग होने चाहिऍ अगर वे दोनों शाश्वत हैं ?

प्रभुपाद: जैसे सूरज से धूप भिन्न है, लेकिन गुणात्मक रूप से गर्मी और रोशनी है । लेकिन क्योंकि धूप है तुम यह नहीं कह सकते हो कि सूरज है । यह तुम नहीं कह सकते हो । मत-स्थानि सर्व-भूतानी नाहम् तेशु अवस्थित: (भ.गी. ९.४) । स्पष्ट रूप से कहा गया है ।

केशवलाल त्रिवेदी: मुझे लगता है, स्वामीजी, आपने समझाया इसे, और मैं इसे में से सम्बन्ध निकाल सका, "मैं ईश हूँ, लेकिन मैं सर्वेश नहीं हूँ । मैं आत्मन हूँ लेकिन परमात्मन नहीं हुँ ।" "मैं अंश हूँ लेकिन परमांश नहीं हूँ ।"

प्रभुपाद: हाँ । यह अन्य कहीं विस्तार से बताया है कि .... आपको संदर्भ लेना होगा ।

ईश्वर: परम: कृष्ण: (ब्रह्मसंहिता ५.१) |

मैं भी ईश्वर हूँ । मैंने कई बार समझाया है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं परमेश्वर हूँ । परमेश्वर कृष्ण हैं । यह इमारत क्या है? केशवलाल त्रिवेदी: अहम् ब्रह्मास्मि । मैं व्याख्या करने में सक्षम नहीं था जब तक मैंनें स्वामीजी को सुना पहले दिन राजेश्वर में मंदपुर में । यह फिट बैठता है । वरना मायावादी, "ठीक है, लेकिन शंकराचार्य कहते हैं, अहम् ब्रह्मास्मि । क्यों तुम ना कहते हो? क्योंकि कितने लोग मुझसे सवाल पूछते हैं"? और जब मुझे सामना करना पड़ता, मैं यह नहीं कह पाया । लेकिन जिस तरह से मुक्ति को परिभाषित किया गया, हाँ, मुक्ति, व्याख्यान में, और ईश, सर्वेश, उन सभी बातों को - आत्मा, परमात्मा, अंश, परमांश - वहाँ मैंने पाया कि यह समझाया जा सकता है । क्योंकि कई व्यक्ति, वे जनसभा में पूछते हैं जैसे लायंस क्लब, जहॉ हम इन विषयों पर बात करते हैं । तो फिर हम परेशान हो जाते हैं । लेकिन अब मुझे लगता है कि मैं उन्हें समझा सकता हूँ । प्रभुपाद: तो मेरा स्पष्टीकरण सही था?

केशवलाल त्रिवेदी: हाँ, मुझे एसा लगता है । और यह ही अच्युतानन्द स्वामी के प्रश्न के लिए भी लागू होगा, मुझे लगता है ।

अन्युतानन्द: नहीं, मैं सिर्फ दीवार बना रहा था ।

केशवलाल त्रिवेदी: नहीं, नहीं, बस .... मुझे पता है ।

अच्युतानन्द : तो दुर्गा विष्णु की तुलना में उन्नत है, क्योंकि विष्णु को आवश्यकता पडी दुर्गा की योग निद्रा से उन्हे जगाने के लिए मधु और कैटभ को मारने के लिए । तो वे उन्हे नियंत्रित करती है ।

प्रभुपाद: हाँ, अगर मैं अपने सेवक को कहता हूँ कि " मुझे सात बजे उठाना," इसका मतलब यह नहीं है .... (हंसी)