HI/Prabhupada 0378 - भुलिया तोमारे का तात्पर्य



Purport to Bhuliya Tomare

यह आत्मसमर्पण प्रक्रिया पर भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा गाया एक गीत है । हमने आत्मसमर्पण के बारे में काफी कुछ सुना है । तो यहाँ कुछ गीत हैं कि कैसे हम आत्मसमर्पण कर सकते हैं । तो भक्तिविनोद ठाकुर का कहना है कि भुलिया तोमारे, संसारे अासिया, "मेरे प्रिय प्रभु, मैं भगवान को भूल कर इस भौतिक दुनिया में अाया हूँ । अब जब मैं यहाँ आया हूँ, मुझे कई परेशानियों का सामना करना पड़ा है, लंबे समय से, जीवन के विभिन्न प्रजातियों के माध्यम से । तो, इसलिए, मैं अापको आत्मसमर्पण करने के लिए अाया हूँ, और आपको प्रस्तुत करने मेरी दुखों की कहानी । पहली बात यह है कि मुझे अपनी माँ के गर्भ के भीतर रहना पड़ा है ।"

जननी जठरे, छीलाम जखोन । "जब मैं वहाँ था, बंध, एक बंद बैग में, हाथ और पैर, मैं अपनी माँ के गर्भ के भीतर था । उस समय, मैने आप की एक झलक देखी थी । उस समय के बाद, मैं अापको देख नहीं सका । उस समय मैं अापको देख सका, एक झलक । उस समय मैंने सोचा था, "ताखोन भाविनु, जनम पाइया, "उस समय मैंने सोचा कि जब मैं इस गर्भ से बाहर निकलूँगा, मैं निश्चित रूप से भगवान की सेवा में शत प्रतिशत संलग्न रहूँगा, भगवान की पूजा करने में । जन्म और मृत्यु का कोई और दोहराव नहीं, यह परेशान करता है । अब मैं संलग्न रहूँगा, इस जन्म में मैं बस भक्ति सेवा में खुद को संलग्न करूँगा, इस माया से बाहर निकलने के लिए । लेकिन दुर्भाग्य से, एकदम मेरे जन्म के बाद, "जनम हौलो पडि माया जाले ना हौलो ज्ञान-लव, "जैसे ही मैं गर्भ से बाहर अाया, तुरंत माया, भ्रामक शक्ति, नें मुझपर कब्जा कर लिया, और मैं भूल गया कि मै इस अनिश्चित हालत में था, और मैं रो रहा था और भगवान से प्रार्थना कर रहा था, कि इस बार मैं बाहर निकलूंगा और भक्ति सेवा में अपने आप को संलग्न करूँगा ।

लेकिन यह सब बुद्धिमत्ता खो गई जैसे ही मैने जन्म लिया ।" फिर अगला चरण है अादरेर छेले, स्व-जनेर कोले । "तो फिर मैं एक बहुत प्यारा बच्चा बना और हर कोई गोद में मुझे लेता है, और मैंने सोचा, "जीवन बहुत अच्छा है, हर कोई मुझसे प्यार करता है ।" फिर मैंने सोचा "यह भौतिक जीवन बहुत अच्छा है ।' अादरेर छेले स्व-जनेर कोले, हासिया काटानु काल । क्योंकि कोई परेशानी नहीं है । जैसे ही मैं थोड़ी मुश्किल में अाता हूँ हर कोई मुझे राहत देने के लिए आगे आता है । इसलिए मैंने सोचा कि मेरा जीवन इस तरह से चलेगा । तो मैंने अपना समय बर्बाद किया बस मुस्कुरा कर, और यह मुस्कान मेरे रिश्तेदारों के लिए आकर्षक हो गई और उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई । "यह जीवन है ।" जनकी ... जनक जननी-स्नेहेते भुलिया, संसार लागिलो । "उस समय, माता - पिता का अपार स्नेह ।

इसलिए मैंने सोचा कि भौतिक जीवन बहुत अच्छा है ।" क्रमे दिन दिन बालक हौया खेलिनु बालक सह । "तो फिर धीरे - धीरे मैं बड़ा हुआ और मैंने अपने बचपन के दोस्तों के साथ खेलना शुरू किया, और यह बहुत अच्छा जीवन था । अौर कुछ दिनों के बाद, जब मैं बुद्धिमान हुअा फिर मुझे स्कूल में डाल दिया गया । तो मैं बहुत गंभीरता से अध्ययन करने लगा । फिर उसके बाद, "विद्यार गौरवे, भ्रमि देशे देशे धन उपर्जन कोरि । "तो फिर फूल कर ..." भक्तिविनोद ठाकुर मजिस्ट्रेट थे । तो वे एक जगह से दूसरे स्थानांतरित होते थे । वे अपने जीवन की बात कर रहे हैं, विद्यार गौरवे, "क्योंकि मैं थोड़ा शिक्षित था, तो मुझे पदवी दी गई थी और मैं अच्छी तरह से कमा रहा था ।

तो मैं सोच रहा था, "यह बहुत अच्छा है ।" "विद्यार गौरवे, भ्रमि देशे देशे धन उपर्जन कोरि । स्व जन पालन कोरि एक-मने । "और एकमात्र कर्तव्य था कैसे पालन करे, कैसे परिवार के सदस्यों को बडा करें, कैसे उन्हें खुश रखें । वह ही मेरा लक्ष्य और जीवन का मिशन बन गया ।" बारधक्ये एखोन, भक्तिविनोद । अब भक्तिविनोद, अपने बुढापे में, कांडिया कातर अति, "अब मुझे दिख रहा है कि मुझे यह सब व्यवस्था छोडनी पडेगी, मुझे जाना होगा और एक और शरीर धारण करना होगा । इसलिए, मुझे पता नहीं है कि किस तरह का शरीर मुझे मिलेगा । इसलिए, मैं रो रहा हूँ, मैं बहुत ज्यादा व्यथित हूं ।" बारधक्ये एखोन, भक्तिविनोद, कांडिया कातर अति, "मैं बहुत ज्यादा व्यथित हूं | " न भजिया तोरे, दिन बृथा गेलो, एखोन कि । "तो आप की सेवा के बिना, आप की पूजा के बिना, मैंने बस इस तरह से अपना समय बर्बाद किया है । मुझे क्या करना है यह पता नहीं है । इसलिए, मैं आत्मसमर्पण करता हूँ । "