HI/Prabhupada 0416 - बस, जप नृत्य, और अच्छी मिठाई खाना, कचौरि



Lecture & Initiation -- Seattle, October 20, 1968

तो, इस आंदोलन की एक बड़ी जरूरत है, और हम इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को फैला रहे हैं, और यह व्यावहारिक है, बहुत आसान है, और इस युग के लिए उपयुक्त है । यह विचार नहीं करता कि तुम कितने योग्य हो । यह विचार नहीं करता । जो भी तुम्हारा पिछला जीवन रहा होगा, तुम बस इधर आओ, अपनी जीभ से हरे कृष्ण का जप करो, भगवान नें तुम्हे एक जीभ दी है - और कृष्ण प्रसाद का स्वाद लो, प्रीतिभोजन, और अपने जीवन को सफल बनाअो । बहुत ही आसान प्रक्रिया । तो यह हमारा कार्यक्रम है । इसलिए इस आंदोलन में शामिल होने के लिए सभी को आमंत्रित करो और तुमको भी लाभ मिलेगा । और तुम व्यावहारिक रूप से देखोगे । यह प्रत्यक्षावगमम् धर्म्यम |

भगवद गीता में यह कहा जाता है कि आत्म - बोध की इस प्रक्रिया को सीधे देखा जा सकता है । सीधे देखना । प्रत्यक्षावगमम् धर्म्यम | जैसे जब तुम खाते हो, तुम समझ सकते हो कि तुम खा रहे हो, तुम समझ सकते हो कि तुम्हारी भूख की संतुष्ट हो रही है, तुम समझ सकते हो कि तुम्हे शक्ति मिल रही है । तो तुम्हे इसके लिए प्रमाण पत्र लेने की अावश्यक्ता नहीं है । तुम अपने आप समझ सकते हो कि यह तो अच्छी बात है । प्रत्यक्षावगमम । प्रत्यक्ष का मतलब है सीधे, अवगमम । तुम सीधे इसे समझते हो । अगर तुम ध्यान करते हो, तथाकथित ध्यान, तो तुमने कितनी प्रगति की है यह तुम नहीं जानते हो । तुम देखो । तुम गुमनामी में हो । तुम्हें पता नहीं है । लेकिन यहॉ, अगर तुम हरे कृष्ण का जप करते हो, तुम्हे सीधे महसूस होगा, सीधे महसूस होगा ।

मेरे इतने सारे छात्र हैं, इतने सारे पत्र, कैसे वे सीधे महसूस कर रहे हैं । यह इतना अच्छा है । प्रत्यक्षावगमम धर्म्यम सु सुखम कर्तुम अव्ययम (भ.गी. ९.२) । और बहुत अच्छा है करने में भी । मंत्र जपो और नृत्य करो और खाअो । तुम्हे और अधिक क्या चाहिए? (हंसी) बस, जप करना, नृत्य करना, और अच्छी मिठाई खाना, कचौरी । तो सु-सुखम अौर कर्तुम अव्ययम । इसे करते हुए, इस प्रक्रिया का अभ्यास करते समय, यह बहुत सुखद है, और अव्ययम है । अव्ययम का मतलब है जो कुछ भी तुम करते हो, चाहे वह इस आंदोलन का एक प्रतिशत है, वह तुम्हारी स्थायी संपत्ति है । स्थायी संपत्ति । अगर तुम दो प्रतिशत, तीन प्रतिशत, चार प्रतिशत करते हो.... लेकिन अगले जीवन के लिए इंतजार मत करो । खत्म करो, शत प्रतिशत ।

इसे लागू करना बहुत आसान नहीं है, इसलिए खत्म करो । इंतजार मत करो, "मैं इस जीवन में आत्म बोध का एक निश्चित प्रतिशत खत्म करता हूँ, और अगले जीवन में मैं करूँगा । " और बोध की कसौटी क्या है, पूर्ण प्रतिशत खतम करना ? कसौटी यह है कि तुमने भगवान, कृष्ण, से प्यार करना कितना सीखा है, बस । तुम किसीसे प्यार करते हो, लेकिन अगर तुम अपने प्यार को विभाजित करते हो, कि, मैं इस देश और अपने समाज, मेरी प्रेमिका और यह और वह, या प्रेमी से प्यार करूँगा, और मैं कृष्ण से भी प्यार करने की कोशिश करूँगा...." नहीं । वह भी अच्छा है, लेकिन अगर तुम प्रबलता देते हो, पूर्ण प्रबलता, केवल कृष्ण से प्रेम करने के लिए, तुम स्वचालित रूप से अन्य चीजों से प्यार करोगे, और तुम्हारा जीवन परिपूर्ण हो जाएगा । दूसरे प्यार के मामले शून्य नहीं होंगे । जैसे एक कृष्ण के प्रति जागरूक व्यक्ति, वह अपने परिवार और समाज से ही केवल प्यार नहीं करता है; यहां तक ​​कि वह जानवर से प्यार करता है, वह चींटी से भी प्यार करता है, उसका प्यार इतना विस्तारित है । यह इतनी अच्छी बात है ।

तुम कितना प्यार कर सकते हो? कुछ भी हो, जैसे ही कुछ गलतफहमी होती है, प्यार टूट जाता है । लेकिन कृष्ण का प्रेम इतना मज़बूत है कि तुम कभी नहीं टूटोगे, और तुम्हारा प्यार सार्वभौमिक विस्तारित होगा । यह इतनी अच्छी बात है । और प्यार तुम्हारे पास है । तुमने बस इतनी सारी चीज़ो में अपने प्यार को गलत जगह लगाके रखा है । तुम सिर्फ कृष्ण की अोर वापस मुड जाअो, और जब तुम पूरी तरह से कृष्ण से प्रेम करोगे, तुम देखोगे कि तुम अपने देश, अपने समाज, अपने दोस्त, से ज्यादा प्यार कर रहे हो, पहले से ज्यादा । यह इतनी अच्छी बात है ।