HI/Prabhupada 0480 - तो भगवान अवैयक्तिक नहीं हो सकते हैं, क्योंकि हम सभी व्यक्ति हैं



Lecture -- Seattle, October 7, 1968

पशु जीवन में वे इन्द्रिय संतुष्टि के अलावा कुछ अौर नहीं जानते हैं । वे शक्तिहीन हैं । उनकी चेतना विकसित नहीं है । जैसे ग्रीन लेक पार्क में, कई बतख हैं । जैसे ही कोई कुछ भोजन के साथ वहां चला जाता है, वे इकट्ठा हो जाते हैं, "क्वेक! क्वेक! क्वेक! क्वेक!" बस । और खाने के बाद, वे यौन जीवन का आनंद ले रहे हैं । बस । तो, इसी तरह, जैसे बिल्लि और कुत्ते और ये जानवर, मानव जीवन भी यही है अगर कोई सवाल ही नहीं है कि "मैं कौन हूँ?" अगर वे केवल इन्द्रिय वेग से निर्देशित हैं, तो वे इन बतख और कुत्तों से बेहतर नहीं हैं । तो इसलिए, पहले छह अध्यायों में यह निर्णय लिया गया है, कि एक जीव आध्यात्मिक चिंगारी है । यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कि यह चिंगारी कहॉ है, क्योंकि यह इतनी छोटी है, निम्न। कोई भौतिक माइक्रोस्कोप या पता लगाने के लिए कोई यंत्र नहीं है । लेकिन ऐसा है । यह है ।

लक्षण यह है, क्योंकि वह मेरे शरीर में है, क्योंकि यह आपके शरीर में है, इसलिए तुम हिल रहे हो, तुम बात कर रहे हो, तुम योजना बना रहे हो, इतनी सारी चीजें तुम कर रहे हो - बस इस आध्यात्मिक चिंगारी के लिए । तो हम सर्वोच्च आत्मा की बहुत छोटी चिंगारी हैं । जैसे धूप में छोटे कण हैं, चमकते कण । चमक के साथ, ये चमकते कण, जब वे एक साथ मिश्रित होते हैं, यही धूप है । लेकिन वे अणु होते हैं । वे अलग, परमाणु अणु होते हैं । इसी तरह, भगवान और खुद के साथ संबंध में, हम भी छोटे कण हैं भगवान के, चमकते हुए । चमकने का मतलब है कि हममे भी वही प्रवृत्तियॉ मिलेंगी, सोचना, महसूस करना, इच्छा करना, निर्माण करना, सब कुछ । जो भी तुम अपने आप में देखते हो, वह भगवान में भी है ।

तो भगवान अवैयक्तिक नहीं हो सकते हैं, क्योंकि हम सभी व्यक्ति हैं । मेरी इतनी सारी प्रवृतियॉ हैं - यह बहुत छोटी मात्रा मे हैं । वही प्रवृतियॉ कृष्ण, या भगवान में हैं, लेकिन वह असीमित, बहुत महान हैं । यह कृष्ण भावनामृत का अध्ययन है । केवल महानता, मेरी स्थिति बहुत छोटी है । और हम तो बहुत छोटे हैं, सूक्ष्म; फिर भी, हमारी इतनी सारी प्रवृत्तियॉ हैं, इतनी सारी इच्छाऍ, इतनी सारी गतिविधियॉ, कई दिमागी काम । ज़रा सोचो भगवान के इतने बड़े मस्तिष्क का काम, और इच्छा, और प्रवृति, क्योंकि वे महान हैं । उनकी महानता का मतलब है यह सब बातें, तुम्हारे पास जो हैं, जो उनमें विद्यमान है महानता में । बस ।

गुणात्मक, हम एक हैं, लेकिन मात्रात्मक, हम अलग हैं । वे महान हैं, हम छोटे हैं । वे अनंत हैं, हम अत्यल्प हैं । इसलिए निष्कर्ष यह है कि जैसे आग की अनंत कण, चिनगारिआ, जब वे आग के साथ हैं, वे बहुत अच्छी लग रही हैं आग और चिनगारीओ के साथ । लेकिन जब चिनगारिआ आग से अलग हैं, मुख्य आग से, वे बुझ जाती हैं । कोई आग नहीं । इसी तरह, हम कृष्ण या भगवान की चिनगारिआ हैं । जब हम भगवान के साथ संबद्ध जोडते हैं, तो हमारी, वह रोशनी, आग, पुनर्निर्मित होती है । अन्यथा, हम बुझ जाते हैं । हालांकि तुम चिनगारी हो, हमारा वर्तमान जीवन, यह भौतिक जीवन, ढका है । चिंगारी ढकी है या लगभग बुझ गई है । यह केवल उदाहरण है । यह बुझ नहीं सकती । अगर यह बुझ जाती है, तो कैसे हम हमारे जीवन को प्रकट कर रहे हैं? यह बुझी नहीं है, लेकिन यह ढक जाती है ।

जैसे जब आग ढक जाती है, तुम उसके आवरण पर गर्मी महसूस करोगे, लेकिन तुम सीधे आग को नहीं देख सकते । इसी प्रकार, यह आध्यात्मिक चिंगारी भौतिक पोशाक द्वारा ढक गई है, इसलिए हम नहीं देख सकते हैं । चिकित्सक कहते हैं, "ओह, शारीरिक कार्य नाकाम हो गया है; इसलिए हृदय नाकाम है । वह मर चुका है ।" लेकिन क्यों दिल विफल हुअा वह नहीं जानता है । कोई चिकित्सा विज्ञान नहीं है, जो गीन सके । वे कई कारण बताते हैं, की "क्योंकि रक्तकण, लाल कण काम नहीं कर रहे हैं, वो सफेद हो गए हैं... " नहीं । यह सही जवाब नहीं है । खून को लाल किया जा सकता है ... या लालिमा जीवन नहीं है । कई प्राकृतिक चीज़े हैं जो स्वभाव से लाल हैं । इसका यह मतलब नहीं है कि वहॉ जीवन है ।