HI/Prabhupada 0509 - ये लोग कहते हैं कि जानवरों की कोई आत्मा नहीं है



Lecture on BG 2.18 -- London, August 24, 1973

प्रभुपाद: विना पशुघ्नात (श्रीमद भागवतम १०.१.४) । यह राजा का बयान है... यह क्या है ?

भक्त: युधिष्ठिर।

प्रभुपाद: युधिष्ठिर नहीं ।

भक्त: परिक्षित । परिक्षित महाराज ।

प्रभुपाद: परिक्षित महाराज । उन्होंने कहा कि भगवद भावनामृत, कृष्ण भावनामृत, पशु हत्यारे द्वारा नहीं समझा जा सकता है । विना पशुघ्नात (श्रीमद भागवतम १०.१.४) । निवृत्त-तर्शैर उपगीयमानात । तुम पाअोगे कि जो पशु हत्यारे हैं, तथाकथित ईसाई और मुसलमान, वे नहीं समझ सकते हैं । वे केवल कट्टरपंथि हैं । आत्मा क्या है, भगवान क्या है, वे समझ नहीं सकते हैं । उनके कुछ सिद्धांतों हैं और वे वे सोच रहे हैं कि हम धार्मिक हैं ।

पाप क्या है, पवित्र गतिविधियॉ क्या है, ये बातें उनके द्वारा समझी नहीं जा सकती हैं क्योंकि वे पशु हत्यारे हैं । यह संभव नहीं है । इसलिए भगवान बुद्ध नें अहिंसा का प्रचार किया । अहिंसा । क्योंकि उन्होंने देखा की पूरी मानव जाति इस जानवर की हत्या की वजह से नर्क में जा रही है । "मुझे उन्हें रोकने दो ताकि वे भविष्य में शांत हो जाऍ ।" सदया-हृदय दर्शीत: दो पहलू । सबसे पहले वे बहुत दयालु थे, कि बेचारे जानवर, वे मारे जा रहे हैं । और दूसरी ओर उन्होंने देखा कि, "पूरी मानव जाति नर्क में जा रही है । तो मुझे कुछ करना चाहिए ।" इसलिए उन्हे आत्मा के अस्तित्व से इनकार करना पड़ा, क्योंकि उनका मस्तिष्क ऐसी चीज़ो को बर्दाश्त नहीं करेगा । इसलिए उन्होंने आत्मा या भगवान के बारे में कुछ नहीं कहा । उन्होंने कहा, "तुम जानवरों की हत्या बंद करो ।" मैं तुम्हें चुटकी काटूँ, तो तुम्हे दर्द महसूस होता है । तो क्यों तुम दूसरों को दर्द देना चाहते हो ? कोई बात नहीं है, कि उसमे कोई आत्मा नहीं है, यह ठीक है । उन्होंने आत्मा के बारे में कुछ भी बात नहीं की । इसलिए ये लोग कहते हैं कि जानवरों की कोई आत्मा नहीं है ।

लेकिन यह ठीक है, लेकिन वह जानवर दर्द महसूस कर रहा है जब तुम उसे मार रहे हो । तो तुम्हे भी दर्द महसूस होता है । तो क्यों तुम दूसरों को दर्द देना चाहते हो ? यही भगवान बुद्ध का सिद्धांत है । सदया-हृदय दर्शीत-पशु-घातम । निन्दसि यज्ञ-विधेर अहह श्रुति-जातम । उन्होंने इनकार किया कि, "मैं वेदों को स्वीकार नहीं करता ।" क्योंकि वेदों में कभी कभी सिफारिश की गई है, हत्या के लिए नहीं, लेकिन एक जानवर को कायाकल्प देने के लिए । लेकिन हत्या, उस अर्थ में, बलिदान के लिए है । लेकिन भगवान बुद्ध नें बलिदान में भी पशु हत्या को स्वीकार नहीं किया । इसलिए, निन्दसि । निन्दसि का मतलब है वे आलोचना कर रहे थे। निन्दसि यज्ञ-विधेर अहह श्रुति-जातम ।

सदया-हृदय दर्शीत-पशु-घातम । क्यों ? वह बहुत कृपालु और दयालु थे । यही कृष्ण भावनामृत है । ईश्वर बहुत दयालु हैं, बहुत दयालु हैं । उन्हे पसंद नहीं है । लेकिन आवश्यकता पडने पर, वे मार सकते हैं । लेकिन उनके द्वारा हत्या और हमारे द्वारा हत्या अलग है । वे सर्व अच्छे हैं । कृष्ण द्वारा कोई भी मारा जाए, उसे तुरंत मोक्ष मिलता है । तो ये बातें हैं । तो, अमाप । तुम आत्मा को माप नहीं सकते हो, लेकिन आत्मा है, और शरीर विनाशशील है । "अगर तुम, तुम लड़ाई न भी करो तो, तुम अपने दादा और शिक्षक और अन्य लोगों के शरीर को बचाते हो, क्योंकि तुम इतने अभिभूत हो रहे हो, तो ये सब विनाशशील हैं । अन्तवन्त का मतलब है आज या कल । अगर तुम्हारे दादा बुजुर्ग हैं | तो तुम उन्हें नहीं मारते हो अभी, या एक साल या छह महीने के बाद, वे मर सकते हैं क्योंकि वे पहले से ही बुजुर्ग हैं । ये तर्क किए गए ।

मुख्य यह है कि कृष्ण चाहते हैं कि अर्जुन लडे । उसे करना ही है, उसे अपने क्षत्रिय होने के कर्तव्य से विचलित नहीं होना चाहिए । उसे शारीरिक विनाश से अभिभूत नहीं होना चाहिए । इसलिए वह शिक्षा दे रहे हैं: "शरीर आत्मा से अलग है । तो मत सोचो कि आत्मा मर जाएगी । तुम खड़े हो जाओ और लड़ो ।" यह निर्देश है । बहुत बहुत धन्यवाद ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।