HI/Prabhupada 0529 - राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं हैं



Radhastami, Srimati Radharani's Appearance Day -- London, August 29, 1971

तो कृष्ण को समझने की कोशिश करो । और जब कृष्ण आनंद लेना चाहते हैं, तो वह किस तरह का आनंद होगा ? इस बात को समझने की कोशिश करें । कृष्ण इतने महान हैं, ईश्वर महान हैं, हर कोई जानता है । तो महान जब आनंद चाहता है, तो उस भोग की गुणवत्ता क्या होगी ? यही समझने की अावश्यकता है । राधा कृष्ण... इसलिए स्चरूप दामोदर गोस्वामी नें एक श्लोक लिखा, राधा कृष्ण-प्रणय-विकृति: । राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं हैं, यह भौतिक प्यार के मामले, हालांकि ये उस तरह से दिखाई देते हैं । लेकिन जो कृष्ण को समझ नहीं सकता है, अवजानन्ति माम मूढा: (भ.गी. ९.११) ।

मूढा, दुष्ट, मूर्ख, वे कृष्ण को आम आदमी के रूप में समझते हैं । जैसे ही हम कृष्ण को हम में से एक के रूप में लेते हैं... मानुषीम तनुम अाश्रिताम, परम भावम अजानन्त: । ये दुष्ट, वे परम भावम को जानते नहीं हैं । वे श्रीकृष्ण की लीला की नकल करने की कोशिश करते हैं, रास-लीला । कई दुष्ट हैं । तो यह बातें चल रही हैं । कृष्ण को कोई समझ नहीं है । कृष्ण को समझना बहुत मुश्किल है ।

मनुष्याणाम सहस्रेशु
कश्चिद यतति सिद्धये
यतताम अपि सिद्धानाम
कश्चिन माम वेत्ति तत्वत:
(भ.गी. ७.३)

लाखों लोगों में से कोई एक अपने जीवन को परिपूर्ण बनाने का प्रयास करता है । हर कोई जानवर की तरह काम कर रहा है । जीवन की पूर्णता का कोई सवाल ही नहीं है । पशु प्रवृत्ति:, खाना, सोना, संभोग और बचाव... तो हर कोई जानवर की तरह लगा हुअा है । उन्हें कोई अन्य काम नहीं है, सिर्फ जानवर, सूअर, कुत्तो, की तरह, पूरा दिन और रात काम करते रहना: "मल कहाँ है ? मल कहाँ है ?" और जैसे ही उसे कुछ मल मिलता है, कुछ फैट मिलता है, "मैथुन कहाँ है ? मैथुन कहाँ है ?" माँ या बहन का कोई विचार नहीं । यह सूअर का जीवन है । तो मानव जीवन सूअर सभ्यता के लिए नहीं है । तो आधुनिक सभ्यता सूअर सभ्यता है, हालांकि यह सभ्य दिखता है शर्ट और कोट के साथ । तो, हम समझने की कोशिश करेंगे । यह कृष्णभावनामृत आंदोलन कृष्ण को समझने के लिए है ।

कृष्ण को समझने के लिए, थोड़ा परिश्रम, तपस्या की आवश्यकता है । तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन च । तपस्या । हमें तपस्या से गुजरना पड़ेगा । ब्रह्मचर्य । अविवाहित जीवन । तपस्या । ब्रह्मचर्य का मतलब है यौन जीवन को रोकना या यौन जीवन को नियंत्रित करना । ब्रह्मचर्य । इसलिए वैदिक सभ्यता, शुरू से ही है, लड़कों को ब्रह्मचारी बनने के लिए प्रशिक्षित करना, अविवाहित जीवन । आधुनिक युग की तरह नहीं, स्कूल, लड़के और लड़कियाँ, दस साल, बारह साल, वे आनंद ले रहे हैं । दिमाग खराब हो गया है । वे उच्च चीज़ोको नहीं समझ सकते । मस्तिष्क के तंतु खो गए हैं । तो ब्रह्मचारी बने बिना, कोई भी आध्यात्मिक जीवन को समझ नहीं सकता है ।

तपस्या ब्रह्मचर्येन शमेन दमेन च । सम का मतलब है मन को नियंत्रित करना, इंद्रियों को नियंत्रित करना; दमेन, इंद्रियों का नियंत्रिण, त्यागेन; शौचेन, सफाई; त्याग, त्याग का मतलब है दान । तो प्रक्रियाऍ हैं ख़ुद को समझने के लिए, आत्म बोध । लेकिन इस युग में इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरना बहुत मुश्किल है । व्यावहारिक रूप से यह असंभव है । इसलिए भगवान चैतन्य ने, स्वयं कृष्ण ने, खुद को आसानी से उपलब्ध कराया है एक प्रक्रिया से:

हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम
कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
(चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१)

इस युग में, कलि-युग में... कलि-युग सबसे गिरा हुआ युग माना जाता है । हम सोच रहे हैं कि हम बहुत ज्यादा सफल हो रहे हैं, लेकिन यह सबसे गिरा हुआ युग है । क्योंकि लोग जानवरों की तरह होते जा रहे हैं । जैसे जानवरों को कोई अन्य रुचि नहीं है शरीर की सैद्धांतिक चार आवश्यकताओं के अलावा, खाना, सोना, संभोग और बचाव - तो इस युग में, लोग शारीरिक माँग के चार सिद्धांतों में रुचि रखते हैं । उन्हे आत्मा की कोई जानकारी नहीं है, न तो वे महसूस करने के लिए तैयार हैं कि आत्मा है क्या । यही इस युग का दोष है । लेकिन मनुष्य जीवन विशेष रूप से खुद को पहचानने के लिए है, "मैं क्या हूँ ?" मानव जीवन का यही लक्ष्य है ।