HI/Prabhupada 0533 - राधारानी हैं हरि प्रिया, कृष्ण की बहुत प्रिय हैं



Radhastami, Srimati Radharani's Appearance Day -- London, August 29, 1971

राधारानी हरि-प्रिया हैं, कृष्ण की बहुत प्रिय हैं । तो अगर हम राधारानी के माध्यम से कृष्ण के समीप जा सकते हैं, राधारानी की दया के माध्यम से, तो यह बहुत आसान हो जाता है । अगर राधारानी सिफारिश करती हैं कि, "यह भक्त बहुत अच्छा है," तब कृष्ण तुरंत स्वीकार करते हैं, भले ही वो व्यक्ति कितना ही मूर्ख क्यों न हो । क्योंकि राधारानी ने सिफारिश की है, कृष्ण स्वीकार करते हैं । इसलिए वृन्दावन में तुम पाअोगे कि सब भक्त, वे कृष्ण की तुलना में राधारानी का नाम अधिक जप रहे हैं । जहाँ भी तुम जाअोगे, तुम भक्तों को सुनोगे संबोधित करते हुए "जय राधे ।" तुम वृन्दावन में अभी-भी पाअोगे । वे राधारानी का गुणगान कर रहे हैं । वे अधिक रुचि रखते हैं राधारानी की पूजा में । क्योंकि कितना भी मैं गिरा हुअा क्यों न हूँ, अगर मैं किसी भी तरह से राधारानी को प्रसन्न कर सकूँ, फिर कृष्ण को समझना मेरे लिए बहुत आसान होगा । अन्यथा,

मनुष्याणाम सहस्रेषशु
कश्चिद यतति सिद्धये
यतताम अपि सिद्धानाम
कश्चिद वेत्ति माम तत्वत:
(भ.गी. ७.३)

अगर तुम कृष्ण को समझने के लिए अटकले करो, तो कई-कई जन्म लगेंगे । लेकिन अगर तुम भक्ति सेवा लेते हो, केवल राधारानी को प्रसन्न करने की कोशिश करो, और कृष्ण बहुत आसानी से मिल जाएँगे । क्योंकि राधारानी कृष्ण को वितरित कर सकती हैं । वह इतनी महान भक्त हैं, महा-भागवत का प्रतीक हैं । कृष्ण भी राधारानी की गुणवत्ता को नहीं समझ सकते हैं । कृष्ण भी, हालांकि वह कहते हैं, वेदाहम समतीतानि (भ.गी. ७.२६) ​​"मैं सब कुछ जानता हूँ," फिर भी, वह राधारानी को समझने में विफल रहते हैं । राधारानी इतनी महान हैं । वह कहते हैं कि... वास्तव मे, कृष्ण सब कुछ जानते हैं ।

राधारानी को समझने के लिए, कृष्ण ने राधारानी की स्थिति को स्वीकार किया । कृष्ण राधारानी की शक्ति को समझना चाहते थे । कृष्ण नें सोचा कि "मैं पूर्ण हूँ । मैं हर मामले में पूर्ण हूँ, लेकिन फिर भी, मैं राधारानी को समझना चाहता हूँ । क्यों ? " इस प्रवृत्ति नें कृष्ण को बाध्य किया राधारानी की प्रवृत्तियों को स्वीकार करने के लिए, कृष्ण को, ख़ुद को, समझने के लिए । ये, अवश्य, बहुत दिव्य, महान विज्ञान है । जो कृष्णभाचनामृत में उन्नत हैं और अच्छी तरह से शास्त्रों से परिचित हैं, वे समझ सकते हैं । लेकिन फिर भी, हम शास्त्र से चर्चा कर सकते हैं । जब कृष्ण खुद को समझना चाहते थे, उन्होंने श्रीमती राधारानी की वृत्ति ले ली । और यह हैं चैतन्य महाप्रभु ।

राधा भाव-द्युति-सुवलितम । चैतन्य महाप्रभु श्रीकृष्ण हैं, लेकिन उन्होंने राधारानी की वृतियों को स्वीकार किया । जैसे राधारानी कृष्ण से जुदाई की भावनाओं में हमेशा रहती हैं, इसी तरह, राधारानी की स्थिति में, भगवान चैतन्य भी कृष्ण की जुदाई महसूस कर रहे थे । यही भगवान चैतन्य की शिक्षा है, जुदाई की भावना, मिलन नहीं । भक्ति सेवा की जो प्रक्रिया चैतन्य महाप्रभु ने सिखाई, और उनकी गुरु परम्परा ने की कृष्ण से जुदाई कैसे महसूस करें । यही राधारानी की स्थिति है, हमेशा जुदाई का एहसास । गोस्वामी, वे भी, जब वे वृन्दावन में थे, उन्होंने कभी नहीं कहा कि, "मैंने कृष्ण को देखा है ।" हालांकि वे पूर्ण थे, उन्होंने कभी नहीं कहा कि, "मैंने कृष्ण को देखा है ।"

उनकी प्रार्थना इस तरह से थी: हे राधे व्रज-देविके च ललिते हे नंद-सुनो कुत: । हे राधे, राधारानी, ​​हे राधे व्रज-देविके च... राधारानी अकेले नहीं रहती हैं । वे उनके दोस्तों के साथ हमेशा रहती हैं, व्रज-देवी, ललिता या विशाखा और वृन्दावन की अन्य गोपियाँ । तो गोस्वामी प्रार्थना कर रहे हैं, उनके परिपक्व चरण में, जब वे वृन्दावन में रह रहे थे, वे इस तरह से प्रार्थना कर रहे थे, हे राधे व्रज-देविके च ललिते हे नंद-सुनो कुत: । "कहाँ, राधारानी, ​​आप कहाँ हैं ? अापके सहयोगी कहाँ हैं ? आप कहाँ हैं, नंद-सुनो, नंद महाराज के बेटे, कृष्ण ? अाप कहाँ हो, सब? " वे खोज रहे थे । उन्होंने कभी नहीं कहा कि "मैंने कृष्ण को देखा है गोपियों के साथ नृत्य करते हुए । कल रात को मैंने देखा ।" (हँसी) यह सहजिया है । यह परिपक्व भक्त नहीं है ।

यह कहा जाता है... वे सहजिया कहे जाते हैं । वे बहुत सस्ते से लेते हैं सब कुछ - कृष्ण बहुत सस्ते, राधारानी बहुत सस्ती, जैसे कि वे हर रात देख सकते हैं । नहीं । गोस्वामी हमें यह नहीं सिखाते हैं । वे खोज कर रहे हैं । हे राधे व्रज-देविके च ललिते हे नंद-सुनो कुत: । श्री गोवर्धन-पादप-तले कालिंदी-वन्ये कुत: "क्या अाप गोवर्धन पर्वत के नीचे हैं, या यमुना के तट पर ?" कालिंदी-वन्ये कुत: । घोषान्ताव इति सर्वतो व्रज पुरे खेदैर महा-विह्वलौ । उनका काम था इस तरह से रोना, "कहाँ हैं अाप ? आप कहाँ हैं राधारानी ? कहाँ हैं अाप ललिता, विशाखा, राधारानी के सहयोगी ? अाप कहाँ हो कृष्ण ? आप गोवर्धन पर्वत के पास हैं या यमुना के तट पर ?" घोषान्ताव इति सर्वतो व्रज पुरे । तो वृन्दावन के पूरे पथ पर वे रो रहे थे और उन्हें खोज रहे थे, खेदैर महा-विह्वलौ, पागल आदमी की तरह । खेदैर महा-विह्वलौ, वन्दे रूप-सनातनौ रघु-यगौ श्री जीव-गोपालकौ ।