HI/Prabhupada 0535 - हम जीव, हम कभी नहीं मरते हैं, कभी जन्म नहीं लेते हैं



Janmastami Lord Sri Krsna's Appearance Day Lecture -- London, August 21, 1973

महामहिम, उच्चायुक्त; देवियों और सज्जनों, मैं आपको यहाँ आने के लिए और इस समारोह में भाग लेने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ, जन्माष्टमी, कृष्ण का आगमन । मुझे जिस विषय वस्तु पर बात करने के लिए आदेश दिया गया है, वह है श्रीकृष्ण का आगमन । कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं,

जन्म कर्म च मे दिव्यम
यो जानाति तत्वत:
त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म
नैति माम एति कौन्तेय
(भ.गी. ४.९)

यह तथ्य कि, हम जीवन की ऐसी अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं, जहाँ हम अपने जन्म और मृत्यु को रोक सकते हैं... स अमृतत्वाय कल्पते । आज सुबह, मैं इस श्लोक को समझा रहा था:

यम हि न व्यथयन्ति एते
पुरुषम पुरुषर्षभ
सम-दुःख-सुखम धीरम
सो अमृतत्वाय कल्पते
(भ.गी. २.१५)

अमृतत्व का मतलब है अमरत्व । तो आधुनिक सभ्यता, उन्हें कोई अंदाज़ा नहीं है, या महान तत्वज्ञानी, महान राजनीतिज्ञ या महान वैज्ञानिक, को कि यह अमरत्व की अवस्था को प्राप्त करना संभव है । अमृतत्व । हम सभी अमृत हैं । भगवद गीता में यह कहा जाता है, न जायते न म्रियते वा कदाचिन (भ.गी. २.२०) । हम जीव, हम कभी नहीं मरते हैं, कभी जन्म नहीं लेते हैं । नित्य: शाश्वतो अयम, न हन्यते हन्यमाने शरीरे (Vanisource:BG 2.20 (1972)भ.गी. २.२०) । हम में से हर एक, हम अनन्त हैं, नित्य: शाश्वतो; पुराण, सबसे पुराने । और इस शरीर के विनाश के बाद, हम मरते नहीं हैं । न हन्यते । शरीर खत्म हो जाता है, लेकिन मुझे एक और शरीर स्वीकार करना होगा । तथा देहान्तर प्राप्तिर धीरस तत्र न मुह्यति । देहिनो अस्मिन यथा देहे कौमारम यौवनम जरा (भ.गी. २.१३) ।

यह साधारण बात, वर्तमान समय में, उनमें ज्ञान की कमी है, कि हम, सभी जीव, कृष्ण के अभिन्न अंग हैं, हम अनन्त हैं, हम आनंदित हैं, और हम ज्ञानी हैं । कृष्ण वर्णित हैं वैदिक शास्त्रों में:

ईश्वर: परम: कृष्ण:
सच-चिद-अानन्द-विग्रह:
अनादिर अादिर गोविन्द:
सर्व-कारण-कारणम
(ब्रह्मसंहिता ५.१)

सच-चिद-अानन्द-विग्रह: । भगवान, कृष्ण, जब मैं कृष्ण की बात करता हूँ, इसका मतलब है भगवान । अगर कोई महत्वपूर्ण नाम है... भगवान, ऐसा कभी-कभी कहा जाता है कि भगवान का कोई नाम नहीं है । एक तथ्य है । लेकिन भगवान के नाम उनके कार्यो के द्वारा दिए जाते हैं । जैसे कृष्ण ने महाराज नंद के पुत्र होना स्वीकार किया, या यशोदामायी, या देवकी, या वसुदेव । वसुदेव और देवकी श्रीकृष्ण के असली पिता और माँ थे । कोई भी कृष्ण के असली पिता और माँ नहीं हैं, क्योंकि कृष्ण ही हर किसी के मूल पिता हैं । लेकिन जब कृष्ण यहाँ आते हैं, अवतरित होते है, वे अपनी माँ के रूप में, पिता के रूप में, स्वीकार करते हैं कुछ भक्तों को । कृष्ण मूल हैं, आदि-पुरुषम । अाद्यम पुराण-पुरुषम नव-यौवनम च (ब्रह्मसंहिता ५.३३) । वे मूल व्यक्ति हैं । तो उन्हें बहुत वृद्ध होना चाहिए ? नहीं । अाद्यम् पुराण-पुरुषम नव-यौवनम च । हमेशा नवयुवक । यही श्रीकृष्ण हैं ।