HI/Prabhupada 0543 - यह नहीं है कि आपको गुरु बनने का एक विशाल प्रदर्शन करना है



Janmastami Lord Sri Krsna's Appearance Day Lecture -- London, August 21, 1973

चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि यारे देख तारे कह कृष्ण-उपदेश (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८) । इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ, चैतन्य महाप्रभु के अनुदेशों का पालन करो, कि अाप भी, अाप अपने घर में एक गुरु बन जाओ । यह नहीं है कि अापको गुरु बनने का एक बड़ा दिखावा करना है । पिता को गुरु बनना है, माँ को गुरु बनना है । दरअसल, शास्त्र में यह कहा जाता है, हमें पिता नहीं बनना चाहिए, एक माँ नहीं बनना चाहिए, अगर हम अपने बच्चों के लिए एक गुरु नहीं हो सकते हैं । न मोचयेद य: समुपेत-मृत्युम । अगर एक व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चंगुल से अपने बच्चे को बचाने में असमर्थ है, तो उसे एक पिता नहीं बनना चाहिए ।

यह असली गर्भनिरोधक विधि है । एेसा नहीं कि बिल्लियों और कुत्तों की तरह यौन संबंध करो, और जब बच्चा आए तो मार डालो अौर गर्भपात करो । नहीं । यह सबसे बड़ा पाप है । असली गर्भनिरोधक विधि है, कि अगर तुम जन्म और मृत्यु के चंगुल से अपने बेटे को छुड़ाने में असमर्थ हो, तो एक पिता मत बनो । यह ज़रूरी है । पिता न स स्यात जननी न स स्यात गुरु न स स्यात न मोचयेद य: समुपेत-मृत्युम । अगर तुम जन्म के चंगुल से अपने बच्चों को नहीं बचा सकते हो...

यही पूरा वैदिक साहित्य है । पुनर्जन्म जयाय: । कैसे अगले जन्म पर विजय प्राप्त करें, अगला भौतिक जन्म, वे नहीं जानते । मूर्ख व्यक्ति वे वैदिक संस्कृति को भूल गए हैं, वैदिक संस्कृति क्या है । वैदिक संस्कृति है अगले जन्म पर जीत पाना, बस । लेकिन वे अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं । निन्यानबे प्रतिशत लोग, वे इतना गिर चुके हैं वैदिक संस्कृति से । भगवद गीता में भी वही तत्वज्ञान है । त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति माम एति कौन्तेय भ.गी. ४.९) । यही वैदिक संस्कृति है ।

वैदिक संस्कृति का मतलब है, हम जीवन के इस मानव रूप में उत्क्रांति की प्रक्रिया से अाए हैं । यहाँ एक दूसरा मौका है शरीर से आत्मा के स्थानांतरगमन को रोकने का । तथा देहान्तर प्राप्तिर (भ.गी. २.१३) , और तुम्हें नहीं पता है कि किस तरह का अगला शरीर मुझे मिलेगा । यह शरीर प्रधानमंत्री का हो सकता है, या कुछ और हो सकता है, और अगला शरीर प्रकृति के नियमों के अनुसार कुत्ते का हो सकता है ।

प्रकृते: क्रियमाणानि
गुणै: कर्माणि सर्वश:
अहंकार विमूढात्मा
कर्ताहम इति मन्यते
(भ.गी. ३.२७)

वे नहीं जानते । वे इस संस्कृति को भूल गए हैं । जानवरों की तरह इस मानव शरीर का दुरुपयोग करके, खाने, सोने, संभोग और बचाव में । यह सभ्यता नहीं है । सभ्यता है पुनर जन्म जयाय:, कैसे अगले भौतिक जन्म पर जीत पाएँ । यही कृष्णभावनामृत आंदोलन है । इसलिए हम इतने सारे साहित्य प्रस्तुत कर रहे हैं । यह पूरी दुनिया में स्वीकार किया जा रहा है, विद्वानों में । इस आंदोलन का लाभ उठाएँ । हमने केन्द्रो को खोलने का प्रयास किया है, हमारा विनम्र प्रयास है यहाँ एक केंद्र खोलने का । हम से ईर्ष्या न करें । कृपया हम पर दया करें । हम... हमारा विनम्र प्रयास हैं । और इसका लाभ लें । यह हमारा अनुरोध है ।

बहुत-बहुत धन्यवाद ।