HI/Prabhupada 0552 - जन्म और मृत्यु की इस पुनरावृत्ति को कैसे रोकें, मैं जहर पी रहा हूँ



Lecture on BG 2.62-72 -- Los Angeles, December 19, 1968

प्रभुपाद: जानिया शुनिया बिश खाईनु । मैं यह जानता हूँ, मैं सुन रहा हूँ । फिर भी,... जानिया शुनिया बिश... एक चोर की तरह । जानिया शुनिया, ये शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं । जानिया का मतलब है जानना, और शुनिया का मतलब है सुनना । तो एक पेशेवर चोर, वह जानता है कि, "अगर मैं चोरी करूँगा तो मैं जेल जाऊँगा ।" और उसने शास्त्रों से सुना है कि, "चोरी मत करो । अन्यथा तुम्हें नर्क में ड़ाल दिया जाएगा ।" तो उसने शास्त्रों से सुना है और उसने व्यावहारिक रूप से देखा है । उसने व्यावहारिक रुप से अनुभव किया है, लेकिन फिर भी, जैसे ही वह जेल के जीवन से मुक्त होता है, वह फिर से वही गलती करता है । जानिया शुनिया बिश खाईनु । हम जानते हैं, हम शास्त्रों से, अधिकारियों से, वैदिक साहित्य से सुन रहे हैं, कि, "मुझे यह कष्टदायक शरीर मिला है, भौतिक शरीर, तीन प्रकार के भौतिक दुःखों को सहने करने के लिए; फिर भी, मैं जन्म और मृत्यु की इस पुनरावृत्ति को रोकने के लिए बहुत ज्यादा चिंतित नहीं हूँ । मैं ज़हर पी रहा हूँ । जानिया शुनिया बिश खाईनु । हरि हरि बिफले जनम ग्वाइनु । ये गीत बहुत शिक्षाप्रद है । केवल जानबूझ कर, हम ज़हर पी रहे हैं । अागे पढ़ो ।

तमाल कृष्ण: "अत: जो कृष्णभावनाभावित नही है, कितना ही शक्तिशाली क्यों न ह वह कृत्रिम दमन के द्वारा अपनी इंद्रियों को वश में करने में, अंत में अवश्य असफल होगा, क्योंकि विषय सुख का रंचमात्र विचार भी उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए उत्तेजित कर देगा ।" ६३: "क्रोध से मोह उत्पन्न होता है अौर मोह से स्मरणशक्ति का विभ्रम होता है । जब स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाती है, तो बुद्धि नष्ट हो जाती है अौर बुद्धि नष्ट होने पर मनुष्य भव-कूप में पुन: गिर जाता हे ।"

प्रभुपाद: हमारी स्थिति यह है कि, हम इस शरीर के बने हैं । शरीर का मतलब है इंद्रियाँ और इंद्रियों का नियंत्रक या, जिसे कहा जाता है, चालक, इंद्रियों का चालक, मन है । और मन का संचालन किया जाता है, सोचना, अनुभव करना और इच्छा करना, मनोविज्ञान, मनोविज्ञान का विज्ञान, यह बुद्धि के तहत संचालित किया जा रहा है । और बुद्धि से ऊपर, मैं बैठा हूँ । मैं एक आत्मा हूँ । तो कैसे हम इस माया का शिकार हो गए, ये यहाँ वर्णित है । कि क्रोध से भ्रम पैदा होता है, और भ्रम से स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाती है । भ्रमित स्मरणशक्ति । मैं पूरी तरह से भूल गया हूँ कि मैं यह शरीर नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ, अहम ब्रह्मास्मि; मैं पर ब्रह्म, परमात्मा, का अभिन्न अंग हूँ । मैं यह भूल गया हूँ । और जब स्मरणशक्ति भ्रमित होती है, और जैसे ही मैं भूल जाता हूँ कि मैं आत्मा हूँ, मैं इस भौतिक दुनिया के साथ खुद की पहचान करता हूँ, भ्रम । बुद्धि नष्ट हो जाती है । मुझे अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए था अपने मन की गतिविधियों का संचालन करने के लिए, सोचना, अनुभव करना और इच्छा करना, और क्योंकि मेरा मन नियंत्रित नहीं है, मेरी इन्द्रियाँ नियंत्रिण में नहीं हैं, इसलिए मैं पतित हूँ । यही पूरे शारीरिक निर्माण का विश्लेषण है । अागे पढ़ो ।

तमाल कृष्ण: ६४: "जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को संयम द्वारा वश में करने में समर्थ है और जो समस्त राग अौर द्वेष से मुक्त है, भगवान की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकता है ।"

प्रभुपाद: हाँ । हमारा पतन हुअा है । कैसे हमारा पतन हुअा है ? इन्द्रिय संतुष्टि के मंच पर । इसलिए तुम्हे इन्द्रियों से ऊपर उठना होगा, इन्द्रियों को नियंत्रित करके । यही आत्म-साक्षात्कार का रास्ता है । या तो तुम योग का अभ्यास करो या भक्ति का अभ्यास करो, भक्तिमय सेवा का, शुरुआत है इंद्रियों को नियंत्रित करना ।