HI/Prabhupada 0575 - उन्हे अंधेरे में और अज्ञानता में रखा जाता है



Lecture on BG 2.19 -- London, August 25, 1973

तो न जायते न म्रियते वा कदाचित | कदाचित का मतलब है, कभी भी, अतीत, वर्तमान और भविष्य, कदाचित । अतीत में, यह पहले ही समझाया गया है, अतीत में हम थे, शायद एक अलग शरीर में । वर्तमान में, हम मौजूद हैं, और भविष्य में भी, हम मौजूद रहेंगे, मौजूद रहेंगे, शायद एक अलग शरीर में । शायद नहीं । वास्तव में । तथा देहांतर प्राप्ति: (भ.गी. २.१३), क्योंकि इस शरीर को त्यागा देने के बाद, हमें एक और शरीर को स्वीकार करना होगा । तो यह हो रहा है । और अज्ञानता, स्वयं के ज्ञान के बिना, हमें अज्ञानता में रखा जा रहा है ।

तथाकथित शिक्षा प्रणाली, पूरी दुनिया में, ऐसी कोई शिक्षा नहीं है । उन्हे अंधेरे में और अज्ञानता में रखा जाता है और फिर भी, इतना पैसा खर्च किया जा रहा है, खासकर पश्चिमी देशों में । उनके पास पैसा है, बड़े, बड़े उच्च विद्यालय, लेकिन उत्पादन क्या है? सभी मूर्ख और दुष्ट । बस । क्योंकि वे नहीं जानते हैं । उन्हें स्वयं क्या है यह पता नहीं है । और इस ज्ञान के बिना... ज्ञान का मतलब है, अात्मसाक्षात्कार, कि "मैं यह शरीर नहीं हूँ, मैं आत्मा हूं ।" यही ज्ञान है । और ज्ञान, कैसे खाना है, कैसे सोना हैं, कैसे रक्षा करना है, कैसे यौन जीवन का आनंद लेना है, और इस विषय पर इतनी सारी पुस्तकें, ये ज्ञान नहीं है । ये तो बिल्लिया और कुत्ते भी जानते हैं । बिल्लि और कुत्ते फ्रॉयड का तत्वज्ञान कभी नहीं पढ़ते हैं, लेकिन वे यौन जीवन का आनंद कैसे लेना है यह जानते हैं ।

तो कुत्ते का यह तत्वज्ञान तुम्हारी मदद नहीं करेगा कि "मुझे यह शरीर मिला है, और कैसे शारीरिक यौन जीवन का आनंद लेना है ।" यह कुत्ते का तत्वज्ञान है । एक कुत्ते को ये बातें पता है । तुम्हारा तत्वज्ञान होना चाहिए कि कैसे यौन जीवन से परहेज करें । यही ज्ञान है । तपो दिव्यम (श्रीमद भागवतम ५.५.१) । तपस्या । यह मानव जीवन तपस्या के लिए है, इन्द्रिय संतुष्टि से परहेज करने के लिए । यही ज्ञान है । न की यौन जीवन या इन्द्रिय संतुष्टि का आनंद कैसे लें । यह बिल्लि और कुत्ते जानते हैं किसी भी शिक्षा के बिना, किसी भी तत्वज्ञान के बिना, यह तत्वज्ञान, प्रवृत्ति: एषम भूतानाम निवृतेस तु महा-फलम |

प्रवृत्ति, हर जीव की यह प्रवृत्ति होती है, मतलब झुकाव । वह क्या है? इन्द्रिय भोग । लोके व्यवाय अामिष मद्य सेवा नित्यस तु जंतु: (श्रीमद भागवतम ११.५.११) | जंतु: का मतलब है जीव । नित्य, हमेशा, उसकी प्रवृत्ति है, व्यवाय अामिष मद्य सेवा | व्यवाय । व्यवाय का अर्थ है यौन जीवन और अामिष का मतलब है मांस खाना । व्यवाय अामिष मद्य सेवा अौर नशा । ये सभी जीवों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है, चींटियों में भी यह प्रवृत्ति होती है । जिन्होंने अध्ययन किया है... चींटियों बहुत ज्यादा शौकीन हैं नशा करने के लिए । इसलिए, वे चीनी ढूँढती हैं, मिठाई । मीठा नशा है । शायद तुम सभी जानते हो । शराब चीनी से बनाती है । चीनी एसिड, सल्फ्यूरिक एसिड, के साथ किण्वित की जाती है, और फिर यह आसुत किया जाता है । यही शराब है । इसलिए बहुत ज्यादा मीठा खाना मना है ।