HI/Prabhupada 0587 - संभव नहीं है । तो हम में से हर एक आध्यात्मिक भूख में है



Lecture on BG 2.20 -- Hyderabad, November 25, 1972

तो अगर मुझे लगता है कि मैं यह कोट हूँ, यह मेरी अज्ञानता है । और यह चल रहा है । यह तथाकथित मानवता की सेवा का मतलब है कोट को धोना । जैसे अगर आप भूखे हैं और मैं साबुन के साथ बहुत अच्छी तरह से अपने कोट को धोता हूँ, तो क्या आप संतुष्ट हो जाअोगे ? नहीं, यह संभव नहीं है । तो हम में से हर एक आध्यात्मिक तौर पे भूखा है ।

ये लोग कोट और शर्ट धोकर क्या करेंगे? कोई शांति नहीं हो सकती है । तथाकथित मानवीय सेवा का मतलब है वे इस वासांसी जीर्णानि को धो रहे हैं । बस । और मौत का मतलब है, यह बहुत अच्छी तरह से समझाया गया है, कि जब वस्त्र, तुम्हारा वस्त्र, मेरा वस्त्र, बहुत पुराना हो जाता है, हम इसे बदल देते हैं । इसी तरह, जन्म और मृत्यु का मतलब है वस्त्र बदलना । यह बहुत स्पष्ट रूप से समझाया गया है । वासांसी जीर्णानि यथा विहाय (भ.गी. २.२२) ।

जीर्णानि, पुराना वस्त्र, पुराना वस्त्र, हम इसे फेंक देते हैं, और एक और नया वस्त्र, नए वस्त्र लेते हैं । इसी तरह, वासांसी जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृणाति । एक नया, ताजा वस्त्र । इसी तरह, मैं बूढ़ा आदमी हूँ । तो अगर मैं मुक्त नहीं हूँ, अगर, अगर मेरे पास इस भौतिक संसार में निष्पादित करने के लिए कई योजनाऍ हैं, तो मुझे एक और शरीर को स्वीकार करना होगा । लेकिन अगर आपकी कोई और योजना नहीं है, और कोई योजना नहीं, निष्किन्चन... यही निष्किन्चन कहा जाता है ।

निष्किन्चनस्य भगवद भजनोमुखस्य । चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, निष्किन्चन । हमें पूरी तरह से स्वतंत्र होना होगा, पूरी तरह से इस भौतिक दुनिया से स्वतंत्र । हमें घृणा होनी चाहिए । तब हमें आध्यात्मिक दुनिया को हस्तांतरित किए जाने की संभावना है ।