HI/Prabhupada 0619 - उद्देश्य है आध्यात्मिक जीवन को बेहतर बनाना । यही गृहस्थ-आश्रम है



Lecture on SB 1.7.24 -- Vrndavana, September 21, 1976

मतिर न कृष्णे परत: स्वतो वा मिथो अभिपद्येत गृह वृतानाम (श्रीमद भागवतम ७.५.३०) | गृह-वृतानाम मतिर न कृष्णे । जिन्होंने यह प्रण लिया है कि "मैं इस परिवारिक जीवन में रहूँगा, और अापनी हालत को सुधारूँगा, "गृह-वृतानाम... गृह-व्रत | गृहस्थ और गृह-व्रत अलग हैं । गृहस्थ का मतलब है गृहस्थ-आश्रम । एक आदमी रह रहा है पति और पत्नी या बच्चों के साथ, लेकिन उद्देश्य है आध्यात्मिक जीवन को बेहतर बनाना । यही गृहस्थ-आश्रम है । और जिसका एसा कोई उद्देश्य नहीं है, वह केवल इंद्रियों का आनंद लेना चाहता है, और उस प्रयोजन के लिए वह घर को सजा रहा है, पत्नी को, बच्चो को सजा रहा है - गृह-व्रत या गृहमेधी कहा जाता है । संस्कृत में अलग अलग अर्थ है अलग अलग शब्द के लिए ।

तो जो गृह-व्रत हैं, वे कृष्ण भावना भावित नहीं हो सकते । मतिर न कृष्णे परत: स्वतो वा | परत: का मतलब है गुरु या प्राधिकारी के निर्देश से, परत: । और स्वतो वा । स्वत: का मतलब है स्वचालित रूप से । और शिक्षा से भी स्वचालित रूप से संभव नहीं है । क्योंकि उसका प्रण है कि "मैं इस तरह से रहूँगा ।" गृह-व्रतानाम । मतिर न कृष्णे परत: स्वतो वा मिथो अभिपद्येत | मित:, सम्मेलन द्वारा नहीं, बैठक रखके, संकल्प पारित करके, "अगर हम कृष्ण भावना भावित बनना चाहते हैं," यह संभव नहीं है । यह सब व्यक्तिगत है । मुझे व्यक्तिगत रूप से कृष्ण के प्रति समर्पण करना होगा । जैसे कि जब तुम हवाई जहाज में जाते हो, यह सब व्यक्तिगत है । अगर एक हवाई जहाज खतरे में है, तो कोई अन्य हवाई जहाज उसे नहीं बचा सकता । यह संभव नहीं है ।

इसी तरह, यह सब व्यक्तिगत है । यह सब परत: स्वतो वा । हमें इसे गंभीरता से लेना होगा, व्यक्तिगत रूप से, की "कृष्ण चाहते हैं, तो मैं आत्मसमर्पण करूँगा । कृष्ण नें कहा, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६), तो मैं यह करूँगा ।" ऐसा नहीं है कि "जब मेरे पिता करेंगे, तो मैं करूँगा ," या "मेरे पति करेंगे, तो मैं करूँगी, " या "मेरी पत्नी करेंगी |" नहीं । यह सब व्यक्तिगत है । यह सब व्यक्तिगत है । और कोई रुकावट नहीं है । कोई रुकावट नहीं है । अहैतुकि अप्रतिहता । अगर तुम कृष्ण को आत्मसमर्पण करना चाहते हो, तो कोई भी तुम्हे रोक नहीं सकता है । अहैतुकि अप्रतिहता यया अात्मा सुप्रसीदति । जब तुम व्यक्तिगत रूप से ऐसा करते हो... अगर तुम... सामूहिक रूप से यह किया जाए, तो यह अच्छा है, लेकिन यह व्यक्तिगत रूप से किया जाना चाहिए ।