HI/Prabhupada 0668 - एक महीने में कम से कम दो अनिवार्य उपवास



Lecture on BG 6.16-24 -- Los Angeles, February 17, 1969

तो यहाँ सुझाव यह है कि शरीर बेकार है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हमें देखभाल नहीं करनी चाहिए । जैसे तुम जा रहे हो, एक जगह से दूसरी जगह, अपनी गाडी में । गाडी, ​​तुम यह गाडी नहीं हो, लेकिन क्योंकि तुमने अपने काम के लिए गाडी का उपयोग करना है, तुम्हे गाडी का भी ख़याल रखना है । लेकिन इतना नहीं कि तुम बस गाडी में लगे रहो अौर कोई काम न करो ।

जैसे कोई व्यक्ति, गाडी के लिए बहुत ज्यादा लगाव होने के कारण पूरा दिन गाडी चमकाने में लगा रहता है, तुम देखो, चमकाने में । तो हमें बहुत ज्यादा इस शरीर से अासक्त नहीं होना चाहिए । लेकिन क्योंकि हमें इस शरीर के साथ कृष्ण भावनामृत को निष्पादित करना है, इसलिए हमें इसे चुस्त भी रखना चाहिए । यही युक्त-वैराज्ञ कहा जाता है । हम उपेक्षा नहीं करनी है । हमें नियमित स्नान लेना है, हम करेंगे, नियमित रूप से अच्छा भोजन, कृष्ण प्रसादम, हमारे मन और शरीर को स्वस्थ रखना । यह आवश्यक है ।

तो कृष्ण भावनामृत आंदोलन यह नहीं कहता है कि कृत्रिम रूप से तुम बस कुछ त्याग करो, सब बकवास । और मुआवजा भरने के लिए कुछ दवा ले ली, कुछ नशा ले लिया, नहीं । तुम अच्छा खाना लो । कृष्ण नें अच्छा भोजन दिया है । फल, अनाज, दूध - तुम सैकड़ों और हजारों अच्छी वानगी बना सकते हो, इन खाद्यान्नों के साथ, और हम कर रहे हैं । हमारा उद्देश्य इस प्रीति भोजन में आपको आमंत्रित करने का यह है कि: कृष्ण प्रसादम के साथ अपने सब बकवास खाद्य पदार्थों को बदलिए । वे स्वस्थ नहीं हैं । ये स्वस्थ भोजन हैं । स्वस्थ भोजन । स्वादिष्ट, स्वस्थ भोजन । तो, कृष्ण प्रसादम खाअो, अच्छा प्रसादम ।

अगर तुम्हारी जीभ कुछ अच्छा स्वादिष्ट व्यंजन चाहती है तो हम तुम्हे कृष्ण को अर्पित किए सैकड़ों, हजारों, आपूर्ति कर सकते हैं । समोसा और यह रसगुल्ला, कई चीज़ें हम आपूर्ति कर सकते हैं । तुम समझ रहे हो ? तुम्हे मना नहीं हैं । लेकिन बहुत ज्यादा मत लो । "ओह, यह बहुत स्वादिष्ट है, मुझे एक डज़न रसगुल्ला लेने दो ।" नहीं, एसे नहीं लेना (हंसते हुए) । तो यह अच्छी बात नहीं है । यह लोभ है । तुम्हे अपने शरीर को चुस्त रखने के लिए जितना चाहिए, उतना लो, बस । अपने शरीर को चुस्त रखने के लिए जिनता सोना चाहिए, उतना सो, बस । ज्यादा नहीं । युक्ताहार विहारस्य योगो भवति सिद्धि । इसे युक्त कहा जाता है ।

हमें केवल स्वस्थ हालत में रहने के लिए खाना चाहिए । हमें केवल स्वस्थ रहने के लिए सोना चाहिए । लेकिन अगर तुम कम कर सकते हो, यह अच्छा है । लेकिन बीमार पडने के खतरे के तहत नहीं । क्योंकि शुरुआत में, हमें ज्यादा खाने की अादत है, तो कृत्रिम रूप से कम खाने की कोशिश मत करो । तुम खाअो । लेकिन कम करने का प्रयास करो । जिनता अधिक... इसलिए उपवास का अादेश है । एक महीने में कम से कम दो अनिवार्य उपवास । और अन्य उपवास के दिन भी हैं । जितना अधिक तुम अपनी नींद और खाने को कम कर सकते हो, तुम अच्छा स्वास्थ्य रखोगे, विशेष रूप से आध्यात्मिक प्रयोजनों के लिए । लेकिन कृत्रिम रूप से नहीं । कृत्रिम रूप से नहीं । लेकिन जब तुम उन्नती करोगे, स्वाभाविक रूप से तुम महसूस करोगे... जैसे रघुनाथ दास गोस्वामी । उदाहरण हैं ।

रघुनाथ दास गोस्वामी बहुत अमीर आदमी के पुत्र थे । और उन्होंने घर छोड़ दिया । तो उन्होंने प्रभु चैतन्य की शरण ली । तो उनके पिता - वे इकलौते पुत्र थे, बहुत प्रिय पुत्र । बहुत अच्छी पत्नी । सब कुछ छोड़ दिया । और छोडने का मतलब बिना बताए चले जाना । किसी तरह से उन्होंने घर छोड़ दिया । और पिता समझ गए कि वह पुरी में भगवान चैतन्य के पास गया है । तो उन्होंने चार नौकर भेजे, क्योंकि वे बहुत अमीर आदमी थे । और चार सौ रुपए - पांच सौ साल पहले चार सौ रुपए का अर्थ वर्तमान मूल्य में बीस बार ज्यादा । तो सब से पहले उन्होंने स्वीकार किया कि "ओह, पिता नें भेजा है, ठीक है ।" तो कैसे वे उस पैसे को खर्च कर रहे थे ?

तो वे सभी संन्यासी को आमंत्रित कर रहे थे - जगन्नाथ पुरी में कई संन्यासी थे । और हर महीने वे दावत दे रहे थे । फिर कुछ दिनों के बाद, भगवान चैतन्य नें उनके सचिव, स्वरूप दामोदर, से पूछा, "ओह, आजकल मुझे रघुनाथ से कोई निमंत्रण नहीं मिलता है । क्या हुआ?" "ओह, प्रभु, उन्होंने अपने पिता के पैसे को स्वीकार करना बंद कर दिया है ।" "ओह, यह बहुत अच्छा है ।" उन्होंने सोचा कि, "मैंने सब कुछ त्याग दिया है और मैं अपने पिता के पैसे का आनंद ले रहा हूँ । यह सब बकवास है ।" उन्होंने मना कर दिया । उन्होंने अादमी से कहा, "तुम घर जाओ । मुझे पैसे नहीं चाहिए । तो फिर कैसे वे रह रहे हैं ? "ओह, वे जगन्नाथ मंदिर की सीढ़ी पर खड़े हैं, और जब पुजारी घर जाते समय अपने प्रसाद के साथ, वे कुछ देते और वे उसके साथ संतुष्ट हैं ।" तो चैतन्य महाप्रभु ने कहा, "ओह, ठीक है, यह बहुत अच्छा है ।"

तब चैतन्य महाप्रभु नें पता किया वे कैसे खड़े हैं । तो उन्होंने देखा, खड़े थे । तो रघुनाथ दास गोस्वामी, कुछ दिनों के बाद, उन्होंने खड़े होना बंद कर दिया । तब चैतन्य महाप्रभु नें अपने सचिव नें पूछताछ की "मैं रघुनाथ को वहॉ खड़े नहीं देख रहा हूँ । क्या कर रहा है ? "नहीं प्रभु, उन्होंने त्याग दिया है खडा होना क्योंकि उन्होंने सोचा, 'ओह, मैं सिर्फ एक वेश्या की तरह खड़ा हूँ, कोई अाएगा अौर मुझे कुछ... नहीं, नहीं, मुझे यह पसंद नहीं है ।' "ओह, यह बहुत अच्छा है । तो फिर कैसे वह खा रहा है?" "वे रसोई में कुछ अस्वीकार चावल का संग्रह कर रहे हैं, और वे खा रहे हैं ।"

तो रघुनाथ दास गोस्वामी को प्रोत्साहित करने के लिए, एक दिन चैतन्य महाप्रभु उनके कमरे में चले गए । "रघुनाथ ? मैंने सुना है कि तुम बहुत अच्छा खाद्य पदार्थ खा रहे हो, और तुम मुझे आमंत्रित नहीं कर रहे हो ?" तो वह जवाब नहीं दे रहा था । तो वे पता करने लगे कि उसने चावल को कहॉ रखा है, और उन्होंने ले लिया और तुरंत खाने लगे । "प्रभु, आप यह मत खाअो, यह अापके योग्य नहीं है । " "ओह ! यह जगन्नाथ का प्रसादम है, तुम कैसे कहते हो की ये योग्य नहीं है ?" बस उसे प्रोत्साहित करने के लिए । वे न सोचें कि, "मैं इस अस्वीकार को खा रहा हूँ," तुम समझ रहे हो? इस तरह, रघुनाथ दास गोस्वास्मी नें अपने खाद्य पदार्थों को कम किया - अंत में, हर दूसरे दिन केवल एक टुकड़ा, मक्खन, इतना । और वे सैकड़ों बार प्रणाम कर रहे थे, और कई बार जप कर रहे थे ।

संख्या-पूर्वक-नाम - तुमने सुना है छ: गोस्वामी के गीत गाते हुए । संख्या-पूर्वक-नाम-गान-नटीभी: कालावसानि-कृतौ । तो कम करने के बहुत अच्छे उदाहरण हैं । सभी भौतिक आवश्यकताएं कम से कम । शून्य के स्तर तक । तुम समझ रहे हो ? लेकिन यह हर किसी के लिए संभव नहीं है । रघुनाथ दास गोस्वामी की नकल करने की कोशिश मत करो । लेकिन क्योंकि वे भगवान चैतन्य के सहयोगी थे, उनमें से हर एक नें कुछ उदाहरण दिया, अनूठा उदाहरण की कैसे कृष्ण भावनामृत में उन्नत हो सकते हैं । लेकिन हमारा काम उनकी नकल करना नहीं है, लेकिन उनका अनुसरन करने का प्रयास करना है । उनका अनुसरण करने की कोशिश करो जहां तक ​​संभव हो । कृत्रिम रूप से नहीं ।

इसलिए यहां यह कहा गया है "किसी के योगी बनने की कोई संभावना नहीं है..." अगर तुम तुरंत रघुनाथ दास गोस्वामी बनने की कोशिश करते हो, नकल करके, तुम असफल रहोगे । जितनी प्रगति तुमने की है, यह खत्म हो जाएगी । ऐसा नहीं है । नहीं । तुम खाअो । लेकिन अधिक मत खाअो । बस । अधिक भोजन करना अच्छा नहीं है । तुम खाअो । अगर तुम हाथी हो, तो तुम १०० मन खाअो, लेकिन अगर तुम चींटी हो तो एक अनाज खाअो । हाथी की नकल करके १०० मन मत खाओ । तुम समझ रहे हो ?

भगवान नें हाथी को और चींटी को भोजन दिया है । लेकिन अगर तुम वास्तव में हाथी हो फिर तुम हाथी की तरह खाअो । लेकिन अगर तुम चींटी हो, तो तुम हाथी की तरह मत खाअो, फिर तुम मुसीबत में पड जाअोगे । तो यहाँ कहा गया है, "किसी के योगी बनने की कोई संभावना नहीं है, हे अर्जुन, अगर वह बहुत अधिक खाता है, या बहुत कम खाता है ।" बहुत अच्छा कार्यक्रम । बहुत कम मत खाओ । तुम अपनी आवश्यकता के अनुसार खाअो । लेकिन अधिक मत खाअो । इसी प्रकार अधिक मत सोना । यदि तुम कर सको... अपने स्वास्थ्य को सही रखो, लेकिन इसे कम करने का प्रयास करो ।

मान लो तुम दस घंटे सो रहे हो । लेकिन अगर मैं पांच घंटे सोने से चुस्त रहता हूँ, तो मुझे क्यों दस घंटे सोना चाहिए? तो यह प्रक्रिया है । कृत्रिम रूप से कुछ भी मत करो । जहॉ तक शरीर का संबंध है, हमारी चार मांगें हैं । खाना, सोना, संभोग और बचाव | दोष यह है, आधुनिक सभ्यता का, की वे सोच रहे हैं कि अगर वे इस खाने की प्रक्रिया, सोने की प्रक्रिया को बढाऍ तो यह बहुत अच्छा है । अगर हम शनिवार और रविवार को पूरे दिन और रात सो सकते हैं, अरे यह महान लाभ है, भोग, तुम देख रहे हो ? यही सभ्यता है । वे सोच रहे हैं कि यह एक अवसर है आनंद लेने के लिए, सोना, तीस घंटे एक दिन में । तुम समझ रहे हो ? नहीं, ऐसा मत करो । इसे कम करो । इसे कम करने के लिए प्रयास करें लेकिन कृत्रिम रूप से नहीं । अागे पढो ।