HI/Prabhupada 0730 - फिर सिद्धांत बोलिया चित्ते, कृष्ण को समझने में आलसी मत बनो



Lecture on SB 7.9.32 -- Mayapur, March 10, 1976

प्रभुपाद: भगवान सदैव अच्छे होते हैं | परन्तु हमारी गणना, सीमित गणना, यदि हम देखते हैं कि वे कोई पाप कर रहे हैं, वह पाप नहीं है; यह रोगाणुनाशन है | वही उदाहरण: तेजीयासाम न दोषाय (श्रीमद भागवतम १०.३३.२९) | यदि उनके पवित्र नाम का जप करके हम निष्पाप हो जाते हैं, तो भगवान पापी कैसे बन सकते हैं ? यह संभव नहीं है | यह सामान्य ज्ञान है | उनका पवित्र नाम, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण का जप करने से तो...

भक्त: कृष्ण कृष्ण हरे हरे / हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे |

प्रभुपाद: ... तो हम शुद्ध हो जाते हैं, कृष्ण अपवित्र कैसे हो सकते हैं ? यह संभव नहीं है | पवित्रम परमम भवान | कृष्ण को समझने का प्रयास करें | यह स्पष्टीकरण है कि स्थितो न तु तमो न गुणांस च युन्क्षे | यह कृष्ण हैं | यह विष्णु, कृष्ण हैं | कभी भी नहीं सोचना... कुछ ऐसे लोग हैं जो कहते हैं "हम कृष्ण, बाल-कृष्ण, लड़के कृष्ण की पूजा करते हैं |" कभी कभी वे ऐसा तर्क देते हैं कि... क्यों नहीं, मेरे कहने का अर्थ है कि वयस्क कृष्ण क्यों नहीं ? वे कहते हैं "वयस्क कृष्ण रासा लीला से प्रदूषित हो गए थे |" मूर्ख का बकवास देखो ! ऐसा नहीं है... कृष्ण हमेशा कृष्ण हैं | यह मूर्ख निष्कर्ष है कि बालक कृष्ण युवा कृष्ण से अधिक शुद्ध हैं | यह गलत अवधारणा है |

कृष्ण हैं... ठीक उसी तरह कि कृष्ण, जब वे तीन महीने के था, तब उन्होंने एक बड़ी, विशाल राक्षस, पूतना की हत्या की | क्या एक तीन महीने की उम्र का शिशु इतनी बड़ी राक्षस को मार सकता है...? नहीं | कृष्ण सदैव भगवान हैं | चाहे वे तीन महीने या तीन सौ वर्ष या तीन हजार वर्ष में प्रकट हों, वे समान हैं | अद्वैतम अच्युतम अनादिम अनंत-रूपम आद्यम पुराण पुरुषम नवयौवनम च (ब्रह्मसंहिता ५.३३) | यह कृष्ण हैं | कृष्ण का अध्ययन करके आप मुक्त हो जाते हैं | इसीलिए इन श्लोकों को अति ध्यानपूर्वक अध्ययन करना चाहिए, प्रत्येक शब्द को बहुत ध्यान से समझते हुए | तो फिर आप कृष्ण को समझ पायेंगे |

कविराज गोस्वामी ने कहा है, सिद्धांत बोलिया चित्ते ना कोरो आलस, इहा होइते कृष्ण लागे सुदृढ़ मानस | सिद्धांत, कृष्ण क्या हैं, यदि आप शास्त्रों से अध्ययन करें, फिर सिद्धांत बोलिया चित्ते... कृष्ण को समझने में आलसी मत बनो, क्योंकि यदि आप कृष्ण को समझने का प्रयास करते हैं - साधु-शास्त्र-गुरु वाक्यम चित्तेते कोरिया ऐक्य, साधु, शास्त्र और गुरु के माध्यम से - फिर आप कृष्ण को समझते हैं, वे क्या हैं | फिर आप उन्हें साधारण व्यक्ति नहीं समझेंगे, जैसा कि मूर्ख व्यक्ति लेते हैं |

अवजानन्ति माम मूढ़ा मानुषीम तनुम आश्रित: (भ.गी. ४.९) | मूढ़, दुष्ट, वे कृष्ण को हमारे जैसा समझते हैं | फिर आप एक मूढ़ नहीं रहेंगे | आप बुद्धिमान होंगे | और इसका प्रभाव क्या है ? कृष्ण स्वयं कहते हैं, जन्म कर्म च दिव्यम में यो जानाति तत्त्वत (भ.गी. ४.९) | यदि आप पूरी तरह से अच्छी तरह से कृष्ण को समझते हैं... अवश्य, हम पूरी तरह से कृष्ण को समझ नहीं सकते हैं | वे इतने बड़े हैं और हम इतने छोटे हैं कि यह असंभव है | यह संभव नहीं है | परन्तु आप कृष्ण को उतना समझ सकते हैं जितना वे भगवद गीता में स्वयं अपने सम्बन्ध में कहते हैं | इतने से आपकी सहायता होगी | आप कृष्ण को नहीं समझ सकते | यह संभव नहीं है | कृष्ण अपने आप को नहीं समझ सकते | इसीलिए वे चैतन्य के रूप में आये, अपने आप को समझने के लिए |

इसीलिए कृष्ण को समझना संभव नहीं है, परन्तु कृष्ण अपने सम्बन्ध में दे रहे हैं, अपने सम्बन्ध में ज्ञान, जितना कि हम समझ सकें | यह भगवद गीता है | तो कम से कम आप कृष्ण को उतना समझने का प्रयास करिए जितना कि भगवद गीता में कहा गया है | चैतन्य महाप्रभु का उपदेश है, जारे देख तारे कह कृष्ण-उपदेश (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८) | मनुष्य जीवन कृष्ण को समझने के लिए है | इसका कोई अन्य उपयोग नहीं है | यदि आप इस कार्य में लगे रहें, तो आपका जीवन सफल होता है | हमारे कृष्णभावनामृत आंदोलन का यही उद्देश्य है | हम इतने सारे केंद्र खोल रहे हैं ताकि विश्व के लोग इस अवसर का लाभ उठा सकें और कृष्ण को समझें और अपने जीवन को सफल बनायें |

बहुत बहुत धन्यवाद |

भक्त: जय! (समाप्त)