HI/Prabhupada 0735 - हम इतने मूर्ख हैं कि अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं



Lecture on SB 7.9.41 -- Mayapura, March 19, 1976

अब कई लड़के हैं । अगर...अगर वो कहें, "नहीं, नहीं, नहीं । मैं एक जवान आदमी नहीं बनूँगा । मैं एक बच्चा ही रहूगा," यह संभव नहीं है । उसे अपने शरीर को बदलना होगा । कोई सवाल ही नहीं है कि वह अपने शरीर को बदलना नहीं चाहता है । नहीं, उसे करना ही होगा । तो इसी तरह, यह शरीर, जब यह समाप्त हो जाता है, तुम कह सकते हो की "मुझे विश्वास नहीं है की दुसरा शरीर ​​है" लेकिन है - "होगा ही |" बिल्कुल वैसा ही, जैसे एक जवान आदमी, वह सोच सकता है, "यह शरीर बहुत अच्छा है । मैं आनंद ले रहा हूँ । मैं बूढ़ा आदमी नहीं बनूँगा ।" नहीं, तुम्हे बनना ही होगा । यही प्रकृति का नियम है । तुम यह नहीं कह सकते हो ।

इसी प्रकार, मौत के बाद, जब यह शरीर समाप्त हो जाता है, तुम्हे एक और शरीर पाना ही होगा । तथा देहांतर - प्राप्ति: | और कौन बोल रहा है ? परम भगवान, वे बोल रहे हैं, सर्वोच्च प्राधिकारी । और अगर तुम, अपने साधारण तर्क से, तुम समझने की कोशिश करते हो कि कानून क्या है, एक बहुत ही सरल उदाहरण दिया गया है । तो जीवन है । तुम इससे इनकार नहीं कर सकते । जीवन है । अब, यह जीवन, यह शरीर, तुम्हारे हाथ में नहीं है । वर्तमान समय में जब जीवन है, तुम अपने ज्ञान पर बहुत गर्व करते हो । तुम बहुत बेशर्म हो भगवान के अस्तित्व को स्वीकारने के लिए । तुम मूर्खतावश ऐसा कर सकते हो । लेकिन मौत के बाद तुम पूरी तरह से प्रकृति के नियंत्रण में हो । यह तो है । तुम बच नहीं सकते हो ।

जैसे जब तुम मूर्ख होते हो, तुम कह सकते हो, "मैं सरकार के कानून में विश्वास नहीं करता । मैं जो चाहुँ वह करूँगा ।" लकिन जब तुम गिरफ्तार होते हो, तो सब कुछ खत्म हो जाता है । फिर बस थप्पड़ और जूते, बस । इसलिए हम इतने मूर्ख हैं कि अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं । यह बस मूर्खता है । अगला जन्म है, खासकर जब कृष्ण कहते हैं । तुम कह सकते हो, "हमें विश्वास नहीं है ।" तुम विश्वास करो या न करो, कोई फर्क नहीं पडता है । तुम प्रकृति के नियमों के तहत हो । प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणी सर्वश: (भ.गी. ३.२७) | कारणम गुण संगो अस्य सद-असद जन्म योनिषु (भ.गी. १३.२२), कृष्ण ने कहा है । क्यों कोई अच्छी तरह से स्थित बन गया है ? क्यों कोई स्थित है, एक आदमी है... एक जीव बहुत अच्छी तरह से खा रहा है, बहुत अच्छा खाद्य पदार्थ, और एक अन्य पशु मल खा रहा है ? यह आकस्मिक नहीं है । यह आकस्मिक नहीं है ।

कर्मणा दैव नेत्रेण (श्रीमद भागवतम ३.३१.१) । क्योंकि उसने काम एसा किया है कि उसे मल खाना पडेगा, उसे खाना पडेगा । लेकिन माया, भ्रामक शक्ति इतनी चालाक है, की जब पशु मल खा रहा है वह सोच रहा है "मैं स्वर्ग का आनंद ले रहा हूँ ।" इसे माया कहा जाता है । तो मल खाते हुए भी वह सोच रहा है कि वह स्वर्गीय खुशी का आनंद ले रहा है । वह उस अज्ञान से ढका है, वह... अगर वह याद करे कि "मैं था... अपने पिछले जीवन में मैं मनुष्य था, और मैं इतने अच्छा खाद्य पदार्थ खा रहा था । अब मैं मल खाने के लिए बाध्य हूँ," फिर वह यह नहीं कर सकेगा । यही कहा जाता है प्रक्षेपात्मिका शक्ति माया । हम भूल जाते हैं । विस्मरण ।